8 Sep 2025
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7 सितंबर से श्राद्ध पक्ष की शुरुआत होने जा रही है. मान्यता है कि पितृपक्ष में हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं और अपने परिवार को आशीर्वाद देते हैं.
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लेकिन कई बार मन में यह प्रश्न उठता है कि क्या छोटे बच्चे या जिन भ्रूण का जीवन गर्भ में ही समाप्त हो जाता है, उनका श्राद्ध किया जाता है?
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या फिर किस उम्र तक के बच्चों का श्राद्ध मरणोप्रांत किया जा सकता है?
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शास्त्रों के अनुसार, यदि संतान की मृत्यु गर्भावस्था के दौरान हो जाए तो उसका श्राद्धकर्म नहीं किया जाता. ऐसी स्थिति में अजन्मी संतान की आत्मा की शांति के लिए मलिन षोडशी परंपरा का पालन किया जाता है.
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हिंदू धर्म में यह एक विशेष अनुष्ठान है जो मृत्यु के बाद आत्मा की शांति और परिवार को नकारात्मक प्रभावों से बचाने के लिए किया जाता है. यह क्रिया मृत्यु से लेकर अंतिम संस्कार तक की अवधि में संपन्न की जाती है.
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जिन बच्चों की मृत्यु जन्म के बाद 2 वर्ष से कम उम्र में हो जाती है, उनका पारंपरिक श्राद्ध नहीं किया जाता. ऐसे बच्चों के लिए भी मलिन षोडशी और तर्पण विधि की जाती है.
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अगर बच्चा 6 वर्ष से ज्यादा आयु का है और उसका निधन हो जाए, तो उसकी मृत्यु तिथि पर ही श्राद्ध किया जाता है. लेकिन यदि मृत्यु तिथि ज्ञात न हो तो पितृपक्ष की त्रयोदशी तिथि पर विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण करना चाहिए.
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बच्चों के श्राद्ध में हाथ में गमछा और कुशा लेकर अंगूठे की तरफ से तर्पण किया जाता है.
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