कैसे पहाड़ों से खोदकर लाते हैं शिलाजीत, देखें पूरी प्रोसेस

11 Dec 2025

Credit: Yioutube

कुछ ऐसी आयुर्वेदिक चीजें हैं जिन्हें शुरू से ही शारीरिक कमजोरी से जोड़कर देखा गया है. ऐसे ही एक आयुर्वेदिक दवाई की तरह प्रयोग होने वाले पदार्थ का नाम है शिलाजीत. 

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सदियों से लोग कहते आ रहे हैं कि इसका सेवन धात रोग या फिर मर्दाना कमजोरी को दूर करने में किया जाता है. लेकिन ऐसा नहीं है. शिलाजीत का उपयोग आयुर्वेद में सदियों से होता आ रहा है. स्वामी रामदेव का भी कहना है कि शिलाजीत शरीर के लिए काफी फायदेमंद होती है.

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नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के मुताबिक, यह एक शक्तिशाली और बहुत ही सुरक्षित डाइट्री सप्लीमेंट है जो एनर्जी बैलेंस को बनाए रखता है और संभावित रूप से कई बीमारियों को रोकने में सक्षम है.

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लेकिन क्या आप जानते हैं, शिलाजीत बनती कैसे है और इसे बनाने के पूरी प्रोसेस क्या होती है? अगर नहीं जानते तो इस स्टोरी में हम आपको बताते हैं.

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शिलाजीत मुख्य रूप से हिमालय में पाया जाने वाला हल्के भूरे या डार्क भूरे रंग का एक प्राकृतिक चिपचिपा पदार्थ है जो सूक्ष्मजीवों की क्रिया द्वारा कुछ पौधों की क्रियाओं के द्वारा कई सालों में बनता है. कई वैज्ञानिकों का मानना है कि शिलाजीत एक पौधे का जीवाश्म है.

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शिलाजीत क्या है?

शिलाजीत चट्टानों से निकाला जाता है. मुख्यत: यह भारत और नेपाल के बीच हिमालय के पहाड़ों में पाया जाता है.

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शिलाजीत एक प्रकार से मेटामॉर्फिक चट्टानों जैसा होता है जो पहाड़ों में पत्थरों के बीच बनता है. मेटामॉर्फिक चट्टानें वे होती हैं जो अत्यधिक गर्मी या दबाव से अपने मूल रूप से बदल जाती हैं. इसी कारण इनमें मिनरल्स भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं.

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शिलाजीत निकालने की प्रोसेस?

कई लाखों साल तक जड़ीबूटी पर जियोथर्मल प्रेशर लगता है जिसके चलते ये एक बहुत कंसंट्रेटेड फॉर्म में तैयार हो जाती हैं. जब कुछ खास प्रकार की धातुओं और पौधों पर चट्टानों का दबाव बनता है तो वहां शिलाजीत का पत्थर बन जाता है.

Credit: Instagram/Amar Sirohi

इकट्ठा करने का काम बहुत ही ज्यादा खतरनाक और जानलेवा हो सकता है क्योंकि शिलाजीत पहाड़ों की ऊंची चोटियों और गुफाओं में पाया जाता है. प्रोफेशनल लोग ही शिलाजीत को ढूंढते हैं और इसी कारण इसकी कीमत इतनी अधिक होती है.

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शिलाजीत निकालने के लिए प्रोफेशनल लोग रस्सियों के सहारे पहाड़ों पर चढ़ते हैं और वहां जाकर चोटियों और गुफाओं में इसे ढ़ूंढते हैं. अगर उन्हें शिलाजीत मिलता है तो वे इसे लोहे के हथियारों से पहाड़ से अलग करते हैं और बोरियों में भर लेते हैं.

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इकट्ठा करने के बाद शिलाजीत की पहचान की जाती है कि कहीं वह सिर्फ काला पत्थर तो नहीं है? सही पहचान के बाद बारी आती है, उसकी प्रोसेसिंग और साफ-सफाई की.

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इसके लिए कच्ची शिलाजीत को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ दिया जाता है और एक बड़ बर्तन में उन पत्थरों को डाल दिया जाता है. 

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इसके बाद उस बर्तन में एक नियमित मात्रा में पानी डाला जाता है फिर कुछ घंटों बाद पानी की सतह से पूरी गंदगी को निकाल लिया जाता है. फिर इस बचे शिलाजीत वाले पानी को करीब एक हफ्ते के लिए इसी हालत में छोड़कर रख दिया जाता है.

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एक हफ्ते बाद जब इसे खोल कर देखते हैं तो इस पानी का रंग पूरा का पूरा गाढ़ा काला हो चुका होता है और फिर उसके बाद इस ताजी बनी शिलाजीत को छानकर अलग कर लेते हैं. अब वह उपयोग और पैकिंग के लिए तैयार है.

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लेकिन कुछ दुकानदार ज्यादा पैसा कमाने के लिए इसे बिल्कुल ही जल्दबाजी वाले तरीके से बनाते हैं या फिर उसमें मिलावट कर देते हैं.  असली शिलाजीत की पहचान ये है कि अगर उसे दो उंगुलियों के बीच लेकर खींचा जाए तो वह अधिक खिंचता नहीं है, टूट जाता है.

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