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बाबा मसाननाथ के दरबार में नगरवधुओं का रूहानी नृत्य... महाश्मशान में साधना कर बदनामी वाली जिंदगी से मांगी मुक्ति

वाराणसी की पावन और रहस्यमयी धरती पर एक ऐसी परंपरा आज भी है, जो जीवन और मृत्यु के बीच की अद्भुत कड़ी को दर्शाती है. मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के सामने नगरवधुएं जब बाबा मसाननाथ को नृत्यांजलि अर्पित करती हैं, तो नजारा भक्तिभाव, विरह, अध्यात्म और जीवन की कठोर सच्चाई का संगम बन जाता है. यह परंपरा सदियों पुरानी है. मोक्ष की कामना के साथ आत्मशुद्धि की एक अनोखी यात्रा भी है.

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मणिकर्णिका घाट पर नृत्य प्रस्तुत करतीं नगरवधुएं. (Screengrab)
मणिकर्णिका घाट पर नृत्य प्रस्तुत करतीं नगरवधुएं. (Screengrab)

एक तरफ जलती चिताएं, तो दूसरी ओर संगीत की ताल पर थिरकती नगरवधुएं. जीवन और मृत्यु का ये अनोखा संगम वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर दिखा. यहां नगरवधुओं ने महाश्मशान में बाबा मसाननाथ को नृत्यांजलि अर्पित की. यह परंपरा चैत्र नवरात्रि की सप्तमी तिथि को हर साल निभाई जाती है, जिसकी शुरुआत सत्रहवीं शताब्दी में राजा मान सिंह के समय से मानी जाती है.

काशी की गलियों में बदनाम कही जाने वाली नगरवधुएं पूरे श्रृंगार में मणिकर्णिका घाट पर आकर बाबा मसाननाथ के मंदिर में नृत्य करती हैं. वे श्रद्धा और आत्मशुद्धि के भाव के साथ सांस्कृतिक प्रस्तुति देते हुए आत्ममंथन और अगले जन्म की मुक्ति की प्रार्थना भी करती हैं.

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सत्रहवीं शताब्दी में जब राजा मान सिंह ने मसाननाथ मंदिर का निर्माण करवाया, तब उन्होंने श्मशान की तपोभूमि पर संगीत का आयोजन करने की इच्छा जताई, लेकिन घाट की गंभीरता और जलती चिताओं के कारण कोई वहां प्रस्तुति देने को तैयार नहीं हुआ. ऐसे में नगरवधुएं आगे आईं और उन्होंने घाट पर प्रस्तुति देकर परंपरा की नींव रखी. तब से हर साल नगरवधुएं बाबा मसाननाथ को नृत्यांजलि अर्पित करती आ रही हैं.

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मंदिर व्यवस्थापक चयनु गुप्ता बताते हैं कि यह न सिर्फ एक सांस्कृतिक परंपरा है, बल्कि आध्यात्मिक समर्पण भी है. इन महिलाओं के लिए यह अवसर है अपनी गलतियों का प्रायश्चित करने का और मोक्ष की कामना करने का.

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बाबा मसाननाथ के दरबार में नगरवधुओं का रूहानी नृत्य... साधना कर कलंकित जीवन से मांगी मुक्ति

यह आयोजन लोगों को चौंकाता जरूर है, लेकिन गहराई से देखने पर इसमें जीवन का गूढ़ दर्शन छिपा है. एक ओर जहां चिताएं जल रही होती हैं, वहीं दूसरी ओर नगरवधुएं अपने पूरे समर्पण भाव से नृत्य कर रही होती हैं. जीवन और मृत्यु के इस संतुलन का गवाह बनता है मणिकर्णिका घाट.

बाबा मसाननाथ के दरबार में नगरवधुओं का रूहानी नृत्य... साधना कर कलंकित जीवन से मांगी मुक्ति

आयोजन प्रमुख पप्पू कहते हैं कि नगरवधुएं किसी इनविटेशन के बिना यहां आती हैं. उनका एक ही उद्देश्य होता है- बाबा मसाननाथ के दरबार में आकर अगला जन्म सुधारना. वे चाहती हैं कि अगला जीवन इस बदनाम पेशे में न गुजरे.

देशभर से आए सैलानी भी इस आयोजन को देखकर चकित होते हैं. बिहार से आए एक सैलानी उपेंद्र ने कहा कि पहले तो यह दृश्य अजीब लगा, लेकिन जब इसके पीछे की परंपरा और भाव समझ आया, तो लगा कि यही तो काशी है, जहां मृत्यु भी उत्सव होती है. नगरवधुओं का यह नृत्य एक श्रद्धा है, एक पुकार है कि अगले जन्म में उन्हें समाज में सम्मान और सच्चा जीवन मिले.

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