जनसंख्या के लिहाज से देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की राजनीति में सियासी हलचल है. गृह मंत्री अमित शाह के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को 'मेरे मित्र' कहकर संबोधित करने के बाद भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में सियासी कयासबाजियों का दौर चल ही रहा था कि अखिलेश यादव ने 2027 का चुनाव भी कांग्रेस के साथ गठबंधन में लड़ने का ऐलान कर दिया. अब सियासी चर्चा का केंद्र स्वामी प्रसाद मौर्य बन गए हैं. कभी मायावती पर निजी हमले कर, गंभीर आरोप लगा बहुजन समाज पार्टी छोड़ने वाले स्वामी के तेवर इन दिनों बदले-बदले से लग रहे हैं.
स्वामी प्रसाद मौर्य ने एक दिन पहले यूपी के बाराबंकी में बीजेपी के साथ ही समाजवादी पार्टी (सपा) पर भी हमला बोला, लेकिन बसपा की ओर उंगली उठाने से परहेज किया. उन्होंने बसपा प्रमुख मायावती की तारीफ करते हुए उन्हें अब तक का सबसे बेहतर मुख्यमंत्री भी बता दिया. हालांकि, उन्होंने आगे यह भी जोड़ा कि बहनजी अब वो नहीं रहीं, जो पहले थीं. इस बयान से एक दिन पहले ही स्वामी प्रसाद ने बसपा के नेशनल कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद को भी बधाई दी थी और कहा था कि वह राजनीति में अभी बहुत नए हैं. उन्हें (आकाश आनंद को) पार्टी में और महत्व दिया जाना चाहिए.
स्वामी प्रसाद मौर्य के दो दिन में आए इन दो बयानों के बाद सवाल उठ रहे हैं कि वह अचानक मायावती के फैन क्यों हो गए हैं? यूपी की राजनीति में घाट-घाट का पानी पी चुके स्वामी की बसपा पर नरमी, मायावती के सीएम कार्यकाल की तारीफ करना, आकाश आनंद को बधाई देकर महत्व की वकालत करना... कहीं ये उनके सियासी सफर के फिर से अपनी पुरानी पार्टी की ओर मुड़ने का संकेत तो नहीं?
दल बदले, लेकिन नहीं रहा बसपा जैसा रुतबा
दरअसल, स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपने सियासी सफर का आगाज बसपा के ही साथ किया था. 1996 में बसपा के टिकट पर डलमऊ सीट से पहली बार विधायक निर्वाचित हुए स्वामी की गिनती मायावती के सबसे करीबी, सबसे ताकतवर नेताओं में होती थी. मायावती की अगुवाई वाली यूपी की बसपा सरकार के कार्यकाल में भी स्वामी प्रसाद मौर्य का रुतबा था. वह सबसे ताकतवर मंत्रियों में गिने जाते थे. 2012 के यूपी चुनाव में बसपा की सत्ता से विदाई के बाद हालात बदले और स्वामी की सियासी नाव भी डंवाडोल होने लगी. 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा शून्य पर सिमट गई और स्वामी नए सियासी ठौर की तलाश में जुट गए.
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स्वामी प्रसाद मौर्य ने अगस्त 2016 में मायावती पर पैसे लेकर टिकट बेचने जैसे गंभीर आरोप लगा पार्टी छोड़ दी और बीजेपी का दामन थाम लिया. 2017 के यूपी चुनाव में बीजेपी की जीत के बाद योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली सरकार में स्वामी मंत्री भी बने, लेकिन 2022 के चुनाव से पहले पार्टी से उनका मोहभंग हो गया और मंत्री पद से इस्तीफा देकर वह सपा की साइकिल पर सवार हो गए. 2022 के यूपी चुनाव में स्वामी प्रसाद मौर्य अपनी सीट भी नहीं जीत सके. बसपा छोड़ने के बाद स्वामी ने पहले बीजेपी का दामन थामा, मंत्री बने और फिर सपा में गए, लेकिन वैसा रुतबा नहीं रहा जैसा बसपा में हुआ करता था.
बसपा में वापसी की पिच तैयार कर रहे स्वामी?
स्वामी के हालिया बयानों को अतीत का रुतबा हासिल करने की उम्मीद के साथ बसपा में वापसी के लिए सॉफ्ट सिग्नल भेजने की कवायद के रूप में भी देखा जा रहा है. कहा तो यह भी जा रहा है कि अपना सियासी अस्तित्व बचाने के लिए स्वामी प्रसाद मौर्य अब बसपा में वापसी की पिच तैयार करने में जुटे हैं.
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स्वामी प्रसाद मौर्य ने भले ही अपनी जनता पार्टी नाम से दल बना लिया हो, लोक मोर्चा नाम से गठबंधन बना खुद को सीएम फेस घोषित करा लिया हो, लेकिन वह रुतबा नहीं लौट सका जो कभी बसपा में हुआ करता था. शायद उन्हें अंदाजा हो गया है कि बीजेपी और सपा की सीधी फाइट में तीसरा मजबूत कोण बसपा ही दे सकती है. बसपा भी पुराने नेताओं के पार्टी छोड़ने के बाद अपने वजूद की लड़ाई लड़ रही है और स्वामी सियासत में खुद को प्रासंगिक बनाए रखने की.