श्रीराम की नगरी अयोध्या आज एक ऐतिहासिक और आध्यात्मिक क्षण की साक्षी बनी. जब हनुमानगढ़ी के गद्दीनशीन महंत प्रेमदास महाराज पहली बार अपनी पारंपरिक सीमाओं को पार कर रामलला के दर्शन के लिए निकले. यह कदम हनुमानगढ़ी की सैकड़ों वर्षों पुरानी परंपरा को पीछे छोड़ते हुए आध्यात्मिक प्रेरणा के तहत लिया गया.
भव्य शोभायात्रा, गाजे-बाजे, घोड़े, ऊंट, बग्घी और पुष्पवर्षा के बीच श्रद्धालुओं की भारी भीड़ की मौजूदगी में निकाली गई. महंत प्रेमदास ने शोभायात्रा की शुरुआत सरयू घाट पर विधिवत स्नान और आरती-याचमन से की. इसके बाद उन्होंने श्रीरामलला के दरबार में पहुंचकर 56 भोग अर्पित किए और आरती में सम्मिलित हुए. यह पहला अवसर था जब हनुमानगढ़ी के महंत ने 52 बीघे की सीमा से बाहर आकर रामलला के दर्शन किए.
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महंत प्रेमदास जी के उत्तराधिकारी डॉ. महेश दास ने बताया कि गद्दीनशीन महंत को स्वप्नों के माध्यम से लगातार संकेत मिल रहे थे कि उन्हें रामलला के दर्शन करने चाहिए. यह संकेत किसी और के नहीं, बल्कि स्वयं भगवान हनुमान जी के थे. गद्दीनशीन महंत को हनुमान जी का प्रतिरूप माना जाता है, इसलिए यह निर्णय सामान्य नहीं, बल्कि आध्यात्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण था.
उन्होंने बताया कि इस निर्णय को अमलीजामा पहनाने के लिए हनुमानगढ़ी की गद्दी पंचायत की बैठक बुलाई गई, जिसमें सभी चारों शाखाओं - सागरिया, उज्जैनिया, बसंतिया और हरिद्वारी के महंत शामिल हुए. सर्वसम्मति से यह तय किया गया कि अगर प्रेरणा हनुमान जी की है, तो वह सर्वोपरि है और रामलला के दर्शन अवश्य होने चाहिए. शोभायात्रा में रास्ते भर श्रद्धालुओं ने फूल बरसाकर स्वागत किया और हाथ जोड़कर जयकारे लगाए.