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मुनीर PAK के दूसरे फील्ड मार्शल... जो पहले थे, उन्होंने किया था तख्तापलट, फिर...

ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय सेना की कार्रवाई से बुरी तरह पस्त पाकिस्तान अब ऐसा लगता है आर्मी रूल की तरफ बढ़ता दिख रहा है. कई संकेत ऐसे सामने आ रहे हैं कि जिससे लग रहा है कि पाकिस्तान में तख्ता पलट होने वाला है. पाकिस्तान पूरी तरह सेना के शिंकजा में जकड़ने जा रहा है.

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मुनीर बने पाकिस्तान के दूसरे फील्ड मार्शल, पहले वाले ने किया था तख्तापलट!
मुनीर बने पाकिस्तान के दूसरे फील्ड मार्शल, पहले वाले ने किया था तख्तापलट!

ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत की सैन्य कार्रवाई से बुरी तरह पस्त पाकिस्तान अब आर्मी रूल की ओर बढ़ता नजर आ रहा है. हालात और घटनाओं की कड़ियां कुछ ऐसा ही संकेत दे रही हैं कि जल्द ही  पाकिस्तान में तख्ता पलट होने वाला है. पाकिस्तान पूरी तरह सेना के शिंकजा में जकड़ने जा रहा है.

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ऐसा कहने के पीछे कई वजह है. लेकिन हाल की वजह से सामने आ गया. पाकिस्तान की सरकार ने अपने मौजूदा सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर सैन्य पदवी फील्ड मार्शल दे दी है. अब जनरल मुनीर पाकिस्तान के सैन्य इतिहास में पूर्व सैन्य शासक जनरल मोहम्मद अयूब खान के बाद फील्ड मार्शल बनने वाले दूसरे सेना प्रमुख बन गए हैं. 

पहली ये पद जिसे दिया गया था उसने पाकिस्तान में आर्मी रूल लगा दिया था. पाकिस्तान के हालात ये है कि सेना के बढ़ते दबदबे और जनरल मुनीर की नई ताकत के बाद शहबाज शरीफ की सत्ता की जमीन खिसकती नजर आ रही है.

जनरल अयूब खान जिसने पाकिस्तान को अंधे कुएं में धकेल दिया

भारत से अलग होकर नया-नवेला पाकिस्तान अभी संभल ही रहा था कि वहां का लोकतंत्र दम तोड़ गया. इसका जिम्मेदार था जनरल अयूब खान, जिसने तख्तापलट कर सत्ता पर कब्जा कर लिया. यही वह मोड़ था, जहां से पाकिस्तान की किस्मत का रास्ता सेना की बैरकों से होकर गुजरने लगा.

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इसके बाद से पाकिस्तान का इतिहास ऐसे ही चलता रहा,जहां लोकतंत्र केवल नाम का रहा और असली ताकत हमेशा आर्मी के हाथों में रही. आर्मी के साये में वहां आतंकवाद पनपा, अलगाववाद फला-फूला और धार्मिक कट्टरता ने जड़ें मजबूत कीं. लोकतंत्र की उम्मीदें हर बार आर्मी बूटों से कुचली जाती रहीं.


साल 1958 पाकिस्तान के इतिहास में लोकतंत्र की पहली हत्या के तौर पर दर्ज है. उस वक्त देश के पहले राष्ट्रपति मेजर जनरल इसकंदर मिर्जा ने संसद और तत्कालीन प्रधानमंत्री फिरोज खान नून की सरकार को भंग कर देश में मार्शल लॉ लागू कर दिया. इसके साथ ही उन्होंने आर्मी चीफ जनरल अयूब खान को सत्ता की कमान सौंप दी. लेकिन सत्ता का स्वाद चखते ही अयूब खान ने 13 दिन बाद ही इसकंदर मिर्जा को भी सत्ता से बाहर कर खुद राष्ट्रपति की गद्दी संभाल ली. इसके बाद 1969 तक अयूब खान पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने रहे और देश की सियासत पूरी तरह फौज के शिकंजे में आ गई.

पाकिस्तान में पहले तख्ता पलट के हालात कैसे बने

1950 के दशक में पाकिस्तान बुरी तरह राजनीतिक अस्थिरता और आंतरिक कलह से जूझ रहा था.ठीक आज जैसे ही हालात थे. बार-बार सरकारें बदली जा रही थीं. 1957 में बनी फिरोज खान नून की सरकार भी पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच बढ़ते क्षेत्रीय तनावों और जबरदस्त भ्रष्टाचार के कारण कमजोर पड़ती गई. ऐसे वक्त पाकिस्तानी फौज की निगाहें भी उनकी गद्दी पर टिक गईं. मौका पाते ही 1958 में सेना ने दखल दिया और फिरोज खान नून को हटा दिया गया. इसके बाद जनरल अयूब खान ने पाकिस्तान की सत्ता संभाल ली,और यहीं से शुरू हुआ सैन्य हुकूमत का लंबा दौर.

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1965 में भारत से हारे अयूब खान

अयूब खान वही नेता थे जिनके दौर से पाकिस्तान में आर्मी का शिकंजा मजबूत हुआ और पाकिस्तान की हार का सिलसिला शुरू हो गया. 1962 में जब चीन ने भारत पर हमला किया, तब अयूब खान ने चीन से नजदीकियां बढ़ाईं और सैन्य मदद भी ली.

इसके बाद 1965 में अयूब खान ने जम्मू-कश्मीर को लेकर भारत से जंग छेड़ दी. करीब दो हफ्तों तक लड़ाई चली, लेकिन आखिर में पाकिस्तान को हार माननी पड़ी. UN की मध्यस्थता से सीजफायर हुआ और सीमा समझौता किया गया.

इस हार के बाद अयूब खान ने राजनीति से दूरी बनाने का फैसला किया और 26 मार्च 1969 को राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया. 19 अप्रैल 1974 को इस्लामाबाद में उनकी मौत हो गई.
 

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