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सिर्फ लुंगी और कमीज लेकर दुबई गया था ये शख्स, ऐसे बिजनेस किया और बना करोड़पति!

केरल का एक शख्स 22 साल की उम्र में सिर्फ लुंगी और कमीज पहनकर दुबई पहुंचा था. आज उसने वहां करोड़ों का बिजनेस एम्पायर खड़ा कर दिया है. जानते हैं कौन है वो शख्स और क्या है उसकी कहानी.

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बिना पासपोर्ट और पैसा के पहुंचा था दुबई, बन गया करोड़पति बिजनेसमैन (Photo - AI Generated)
बिना पासपोर्ट और पैसा के पहुंचा था दुबई, बन गया करोड़पति बिजनेसमैन (Photo - AI Generated)

केरला के त्रिशूर स्थित वडक्केकड़ से 22 साल की उम्र में एक युवक ने अपना घर छोड़ दिया और कई दिनों तक समुद्र में यात्रा कर दुबई पहुंचा. जब वह दुबई पहुंचा तो संपत्ति के नाम पर उसके पास सिर्फ एक लुंगी और कमीज थी, जो उसने पहन रखा था. आज यह शख्स दुबई में एक बड़े समूह का मालिक है. 

यहां बात हो रही है एमवी कुन्हू मोहम्मद की. कुन्हू ने काफी संघर्ष के बाद गरीबी से अमीरी तक का सफर तय किया. उनकी कहानी काफी प्रेरक है.  22 साल की उम्र में भारत छोड़कर दुबई आना और अपनी कंपनी खड़ी करना, उनकी अद्भुत दृढ़ संकल्प और इच्छाशक्ति का प्रमाण है.

बिना पासपोर्ट और पैसे के पहुंचे थे दुबई
कुन्हू मोहम्मद ने खलीज टाइम्स को बताया कि कैसे उन्होंने 1967 में यूएई पहुंचने पर एक प्लंबर के सहायक के रूप में काम करना शुरू किया, उस समय जब देश अभी आकार ले रहा था. वे बिना पासपोर्ट, बिना पैसे और बिना किसी स्पष्ट भविष्य के केरल स्थित अपने गृहनगर से निकल गए थे. अपनी लंबी और कठिन यात्रा को याद करते हुए, उन्होंने बताया कि मुझे आज भी पाल से टकराती हवा की आवाज़ याद है.

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उन्होंने केरल से ख्वाजा मोइदीन नाम की एक लकड़ी की नाव पर अपनी यात्रा शुरू की थी. ओमान के डिब्बा अल बया तक पहुंचने में उन्हें चालीस दिन लगे थे. उन्होंने बताया कि हमारे पास कोई इंजन नहीं था, बस हवा और अल्लाह पर भरोसा था. हम हवा की दिशा के अनुसार पाल को संतुलित करते थे. कभी समुद्र शांत होता, कभी उग्र, लेकिन उम्मीद हमें आगे बढ़ने में मदद करती थी.

दुबई आने पर संपत्ति के नाम पर थी एक लुंगी और कमीज
जब नाव ने ओमान के तट से बहुत दूर लंगर डाला, तब मोहम्मद समुद्र में कूद गए. उन्होंने कहा कि मेरे पास सिर्फ़ एक लुंगी और एक कमीज़ थी. दोनों भीग गए थे. मुझे उन्हें अपने हाथों से निचोड़कर सुखाना पड़ा और फिर से पहनना पड़ा.

जैसे-जैसे उनकी यात्रा आगे बढ़ी, वो डिब्बा अल बया से ओमान-यूएई सीमा तक ले चलते गए. उसके बाद, उन्हें और उनके साथी यात्रियों को खोरफक्कन तक घंटों पैदल चलना पड़ा. उन्होंने कहा कि हमें बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था कि हम कहां जा रहे हैं. बस इतना पता था कि यह अवसरों की धरती है.

पाल वाली नाव से की थी समुद्री यात्रा
लंबी यात्रा के बाद, उन्हें तरबूजों से भरा एक ट्रक दिखाई दिया. उस पल को याद करते हुए, उन्होंने कहा कि हमने पैसे दिए और चढ़ गए. इस तरह मैं शारजाह पहुंच गया. जब वे आखिरकार यूएई पहुंचे, तो हालात आज जैसे नहीं थे.देश अभी आकार ले रहा था. हमारे देश में लोग कहते थे कि यहां ज़मीन पर कुछ नहीं है, बस नीचे सोना है. सब मानते थे कि इस रेगिस्तान में खजाना छिपा है.

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शारजाह में, वह एक ऐसे दोस्त के यहां रहे जो एक अमीराती मालिक के यहां काम करता था. मालिक का दरवाजा हमेशा जरूरतमंद लोगों के लिए खुला रहता था. यही उदारता आज भी अमीरातियों की पहचान है.

शुरुआत में प्लम्बर के सहायक की नौकरी की 
कुन्हू ने एक प्लंबर के सहायक के रूप में अपनी नई जिंदगी शुरू की, लेकिन जल्द ही उन्हें एहसास हुआ कि वह अपनी नई नौकरी जारी नहीं रख पाएंगे. उन्होंने बताया कि मेरे हाथों में हमेशा पसीना आता रहता था. मैं औजारों को पकड़ नहीं पाता था. एक हफ़्ते बाद, उन्होंने मुझे कुछ दिन की छुट्टी लेने को कहा, मुझे तब एहसास नहीं हुआ, इसका मतलब था कि मुझे नौकरी से निकाल दिया गया है.

100 रियाल थी पहली सैलरी
उन्होंने आगे कहा कि लेकिन नियोक्ता ने मुझे बीस दिनों के लिए 100 रियाल दिए. यह मेरी पहली सैलरी थी. इसके बाद उन्होंने दूसरे काम भी किए, जिनमें गायों का दूध दुहना, बर्तन साफ करना और मछलियों की टोकरियां बनाना शामिल था. उन्होंने याद किया कि उन्होंने कभी किसी काम के लिए मना नहीं किया. उनके समर्पण को जल्द ही उनके एक नियोक्ता ने देखा और उनका वेतन बढ़ा दिया.

बर्तन धोने से लेकर ड्राइवरी तक 
मोहम्मद बताते हैं कि जब मैं बर्तन साफ कर रहा था, तो मैंने अपने मालिक की कार गंदी देखी. मैंने उसे धोया, पॉलिश की और अंदर बुख़ूर (अगरबत्ती) जलाई. वह इससे प्रभावित हुए और उन्होंने मेरी तनख्वाह 100 कतर दुबई रियाल बढ़ा दी. फिर मुझे कार धोने का काम सौंपा गया था. इससे मुझे एक सीख मिली, जब आप उम्मीद से बढ़कर काम करते हैं, तो लोग आपको याद रखते हैं.

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हालांकि, उनके जीवन में महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब उनके दोस्त ने उनका परिचय संयुक्त अरब अमीरात के शहर रास अल-खैमाह के तत्कालीन शासक शेख सकर बिन मोहम्मद अल कासिमी से कराया. वे शेख के घर में ड्राइवर बन गए, जहां उन्होंने चार साल तक काम किया.

मुहम्मद ने बताया कि  उन्होंने मेरे साथ सम्मानजनक व्यवहार किया.  मैंने उनसे भरोसे और ज़िम्मेदारी का महत्व सीखा.उन्होंने आगे कहा कि मेरा खाता हमेशा सही रहता था, इसलिए मुझे ज़्यादा व्यापार करने की अनुमति थी. इस तरह मेरा व्यवसाय शुरू हुआ - छोटा, ईमानदार और स्थिर.

ऐसे शुरू किया अपना बिजनेस 
1972 में मो. कुन्हू ने अपनी कंपनी को जलील ट्रेडर्स के नाम से आधिकारिक तौर पर पंजीकृत कराया. इसका नाम बाद में जलील होल्डिंग्स कर दिया गया. शेख के योगदान को याद करते हुए, मोहम्मद ने कहा कि जब मेरे पास पैसे नहीं थे, तब उन्होंने मेरी मदद की. उस भरोसे को मैं कभी नहीं भूला.

मोहम्मद के नेतृत्व और कड़ी मेहनत से, कंपनी एक मामूली खाद्य व्यापार की दुकान से बढ़कर ताजी उपज और FMCG वितरण वाली एक कंपनी बन गई, न केवल खुदरा क्षेत्र में, बल्कि रेस्टोरेंट और होटल क्षेत्र में भी. कंपनी में वर्तमान में 1,700 लोग कार्यरत हैं.

तब आकार ले रहा था दुबई 
कुन्हू ने बताया कि जब मैंने अल रास (दुबई) में शुरुआत की थी, तब वहां सिर्फ तेरह व्यापारी थे. दो भारतीय, कुछ लेबनानी, फ़िलिस्तीनी और कुछ ईरानी. तब दुबई अलग था. हर कोई एक-दूसरे को जानता था.

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अपने व्यवसाय के वर्षों में, उन्होंने एक नियम कभी नहीं तोड़ा. वह यह कि किसी भी कर्मचारी का वेतन कभी नहीं रोकना चाहिए. मजदूर का पसीना सूखने से पहले उसे उसकी मजदूरी दे दो. मैं इसी सिद्धांत पर जीता हूं.

79 साल की उम्र में भी जाते हैं दफ्तर
79 साल की उम्र में भी वह अपने दफ्तर आते रहते हैं. हालांकि, उन्होंने आउटलेट को बताया कि वह काम करने नहीं, बल्कि अपने लोगों से मिलने आते हैं. उनसे बात करके मुझे खुशी मिलती है.

वह अपना समय भारत और दुबई के बीच बिताते हैं. उनकी दिनचर्या में योग और शांत चिंतन शामिल है. उन्होंने कहा कि आज जब मैं क्षितिज को देखता हूं, तो मुझे डेरा और रोला के बीच की पुरानी कच्ची सड़क याद आती है. यह मुझे याद दिलाती है कि यह देश और हम सब कितनी दूर आ गए हैं.

जब भी मैं अरब सागर देखता हूं, तो मुझे वह दिन याद आता है जब मैंने सिर्फ एक जोड़ी कपड़े पहनकर उसमें गोता लगाया था. उसके बाद जो कुछ भी हुआ... वह नियति थी.

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