पोप फ्रांसिस अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी यादें, उनके काम, और इंसानियत के लिए उठाए गए कदम सोशल मीडिया पर लोग याद कर रहे हैं.
कई बार इंसानियत और दुनिया में शांति का पैगाम देने के लिए लीक से हटकर ऐसा काम कर देते थे, जो दुनिया के लिए नजीर बन जाता था. कुछ ऐसे काम का जिक्र अब चर्चा में है.
जब मुस्लिमों के लिए खड़े हुए पोप
2016 की बात है.यूरोप में मुस्लिमों को लेकर नफरत बढ़ रही थी. ब्रसेल्स आतंकी हमले के बाद माहौल और भी ज्यादा तनावपूर्ण हो गया था. ऐसे समय में जब बहुत से लोग नफरत की दीवार खड़ी कर रहे थे. पोप फ्रांसिस ने भाईचारे की मिसाल पेश की. उन्होंने मुस्लिम, हिंदू और ईसाई शरणार्थियों के पैर धोए और चूमे, और एक ही बात कही-हम अलग-अलग संस्कृति और धर्मों से हैं, लेकिन हम सब भाई हैं और शांति से जीना चाहते हैं.
यह सब हुआ इटली के एक शरणार्थी सेंटर में, जहां उन्होंने ईस्टर वीक की होली थर्सडे रस्म के तहत यह सेवा भाव दिखाया. ये वही रस्म है जो जीसस ने अपने चेलों के पैर धोकर निभाई थी.
इस मौके पर पोप फ्रांसिस ने कहा था कि यह जो आतंकवादी हमला हुआ. वह विनाश का प्रतीक है, लेकिन हम यहां सेवा और भाईचारे का प्रतीक बनकर खड़े हैं. इस समारोह के बाद पोप ने हर एक शरणार्थी से व्यक्तिगत रूप से मुलाकात की, सेल्फी ली, उनकी बातें सुनीं, और उन्हें गले लगाया.
पोप फ्रांसिस LGBTQ कम्युनिटी के प्रति हुए उदार
एक तरह से जहां वेटिकन सिटी LGBTQ कम्युनिटी के लिए अलग राय रखता था, वहीं पोप फ्रांसिस ने LGBTQ समुदाय के लिए भी नफरत की दीवार तोड़ने की कोशिश की. पोप फ्रांसिस ने LGBTQ के लिए एक बड़ा कदम उठाया था, जिसमें उन्होंने समलैंगिक जोड़े को आशीर्वाद देने की इजाजत दी थी. पोप फ्रांसिस मानते थे कि LGBTQ+ लोगों को ईश्वर के प्रेम से वंचित नहीं किया जाना चाहिए और उन्हें इसके लिए 'गंभीर नैतिक जांच' से नहीं गुजरना चाहिए.
2013 में पोप फ्रांसिस के एक बयान ने काफी सुर्खियां बटोरी थीं, जिसमें उन्होंने कहा था कि मैं कौन होता हूं जो किसी को जज करूं? इस बयान से यह संकेत मिला कि चर्च को LGBTQ+ समुदाय के साथ नरम रवैया अपनाना चाहिए और उन्हें सहानुभूतिपूर्वक देखना चाहिए.