एक लड़की की कहानी, जिसने बाद में भारतीय महिला क्रिकेट के इतिहास में सुनहरा अध्याय लिखा. जेमिमा रोड्रिग्स... जिसने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सेमीफाइनल में नाबाद 127 रन बनाकर भारत को पहली बार महिला वर्ल्ड कप फाइनल में पहुंचाया और फिर भारत को विश्व चैम्पियन बनाया.
लेकिन उस चमक के पीछे जो कहानी है, वह सिर्फ क्रिकेट की नहीं, बल्कि विश्वास, त्याग और संघर्ष की कहानी है. इन सबका ज़िक्र जेमिमा ने इंडिया टुडे के वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई से बातचीत में किया.
'हम पांच ... 185 स्क्वायर फीट में रहते थे...'
जेमिमा कहती हैं, 'मेरा परिवार पहले भांडुप में रहता था, लेकिन रोज स्कूल और प्रैक्टिस के लिए डेढ़-दो घंटे का सफर बहुत मुश्किल था. तब मेरे माता-पिता ने बहुत बड़ा फैसला लिया. उन्होंने सबकुछ छोड़कर बांद्रा शिफ्ट कर लिया. वहां हमने सिर्फ 185 स्क्वायर फीट का छोटा-सा घर लिया, जिसमें हम 5 लोग रहते थे. सोचिए, भांडुप में हमारे पास बड़ा घर था- लेकिन उन्होंने सिर्फ इसलिए यह कदम उठाया कि स्कूल और प्रैक्टिस के करीब रह सकूं.'.
क्रिकेटर बनने के सपने के लिए परिवार ने जगह की नहीं, जज्बे की चौड़ाई बढ़ाई. छोटे से घर में दीवारें भले तंग थीं, पर उस परिवार का हौसला आसमान छूता था.
पिता का लोन, बेटी का सपना
पिता इवान रोड्रिग्स, जो खुद एक कोच हैं, जानते थे कि साधनों की कमी जेमिमा की राह नहीं रोक सकती. लेकिन एक दिन उन्होंने महसूस किया- अगर उसे बड़े स्तर पर प्रतिस्पर्धा करनी है, तो प्रैक्टिस के लिए एक बॉलिंग मशीन चाहिए. घर की आमदनी से यह संभव नहीं था.
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फिर भी उन्होंने लोन लिया...
जेमिमा ने बताया, 'मेरे पापा ने मेरे लिए एक बॉलिंग मशीन खरीदने के लिए लोन लिया था, वो मशीन सिर्फ ट्रेनिंग का साधन नहीं थी, वो मेरे पापा का मुझ पर भरोसा थी. उनके सपनों की पहली निवेश थी.' हर बार जब बॉलिंग मशीन चलती, पिता दूर खड़े मुस्कुराते. उन्हें पता था- ये आवाज एक दिन स्टेडियम में गूंजेगी.
वो रात जब सब खत्म-सा लगा
लेकिन हर सपने का एक मोड़ आता है, जब लगता है कि सब कुछ हाथ से फिसल रहा है. वर्ल्ड कप के बीच, इंग्लैंड के खिलाफ ग्रुप मैच से पहले, जेमिमा को टीम से ड्रॉप कर दिया गया. वो चुप थीं, लेकिन भीतर सब कुछ टूट गया था. वह कहती हैं, 'मुझे यह भी नहीं पता था कि मैं अगले मैच में खेल पाऊंगी या नहीं.'
इसी दौरान उनकी करीबी दोस्त अरुंधति ने उन्हें एक बात कही, जो जेमिमा के दिल और दिमाग पर गहरी छाप छोड़ गई. उसने कहा, 'कौन कहता है कि चर्च ऐसा जगह है जहां आप रो नहीं सकते?...
इस पर जेमिमा ने गहराई से सोचा और समझा कि भावनाओं को व्यक्त करना कमजोरी नहीं, बल्कि एक ताकत है. सहेली ने आगे कहा, 'जैसे तुम इस मुश्किल दौर से गुजर रही हो, वैसे ही बहुत से लोग हैं, लेकिन वे अपनी बात नहीं कह पाते. सोचो, अगर तुम वहां जाकर खुलकर अपनी भावनाएं साझा करती हो, तो हो सकता है कि इससे किसी और को उम्मीद मिले कि हां, जेमी भी मेरी तरह इस मुश्किल दौर से गुजर रही है. मैं अकेली नहीं हूं.'
टर्निंग पॉइंट बनी वो रात...
इस अनुभव ने जेमिमा को यह एहसास दिलाया कि अपनी कमजोरी और भावनाओं को स्वीकारना और साझा करना सिर्फ उन्हें सुकून नहीं देता, बल्कि दूसरों के लिए भी प्रेरणा बन सकता है. वो रात उनके लिए एक टर्निंग पॉइंट बनी...एक मैच बाद ही वही जेमिमा टीम में लौट आईं.
नवी मुंबई का मैदान, ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सेमीफाइनल, सामने 339 रनों का पहाड़. लेकिन जेमिमा ने उस दिन 127* रन ठोककर चमत्कार कर दिया. उस पारी के बाद उन्होंने कहा, 'मैं उस दिन अजीब-सी शांति में थी. मुझे लगा भगवान मेरे साथ हैं. मैंने खुद से कहा, 'यह मैच मेरे बारे में नहीं, यह भारत के बारे में है.'