वंदे मातरम में मूर्ति पूजा की कोई बात नहीं है. बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय, जो इस गाने के लेखक थे, स्वयं मूर्ति पूजा के समर्थक नहीं थे. यह बात कम ही लोगों को पता है. सन 1847 में लिखे उनके एक लेख से यह स्पष्ट होता है कि वे मूर्ति पूजा का समर्थन नहीं करते थे. उनका मानना था कि भारतीय संस्कृति में भगवान की प्रतिमा किसी मूर्ति के रूप में नहीं बल्कि एक विचार या भावना के माध्यम से समझी जानी चाहिए. वंदे मातरम की माँ भारती कोई मूर्तिमान देवी नहीं हैं, बल्कि वह एक प्रतीक हैं, जो हर भारतीय के हृदय में बसे प्रेम की अभिव्यक्ति हैं.