राजनाथ सिंह ने कहा कि वंदे मातरम की रचना स्वतंत्र रूप से हुई थी और बाद में इसे बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने अपने उपन्यास आनंद मठ में शामिल किया। कुछ लोगों ने आनंद मठ को सांप्रदायिक माना जिससे वंदे मातरम को भी आलोचना का सामना करना पड़ा। हालांकि, उस समय के सामाजिक और ऐतिहासिक संदर्भ को समझने पर पता चलता है कि आनंद मठ किसी भी धर्म या संप्रदाय के खिलाफ नहीं था।