मोहन भागवत ने कहा कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1945 में पूरी दुनिया का राजनीतिक ढांचा बदल गया था. पॉलिटिकल स्वार्थों की वजह से लोगों की भाषा और राजनीति में बदलाव आए. इस समय के नेताओं का यह मानना था कि भारत की अखंडता सबसे महत्वपूर्ण है और भारत एक ही है.