90 के दशक में टाटा मोटर्स की इंडिका के फ्लॉप होने की वजह से नौबत यहां तक आ गई थी कि रतन टाटा ने पैसेंजर कार डिविजन बेचने का फैसला कर लिया था और इसके लिए Ford Motors से बात की थी.