AI को इसलिए बनाया गया ताकि इंसानों की तरह काम कर सके और फैसले ले सके. लेकिन क्या वो इंसानों की तरह सोच सकता है, तो ऐसा है नहीं. AI सोचता ज़रूर है लेकिन सिर्फ उसे दिए गए डेटा के हिसाब से. जैसे बच्चा बार-बार गिरने के बाद चलना सीखता है, वैसे ही AI भी बार-बार के डेटा से पैटर्न बनाता है. इंसान भाव से सोचता है, AI तर्क से. उसे फर्क नहीं पड़ता कि सामने वाला दुखी है या खुश, उसे सिर्फ यही दिखता है कि किस बटन को कितनी बार दबाया गया. उसकी सोच एक टेबल जैसी है जो टिकी हुई है, सटीक है, लेकिन संवेदनशील नहीं. तो AI इंसानों की तरह सोचता ज़रूर है, लेकिन इंसान जैसा महसूस नहीं कर सकता. वो दिमाग है, दिल नहीं. कम से कम अभी तो यही कह सकते हैं.