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बर्फ पिघलेगी... बारिश बढ़ेगी...गंगा का पानी का फ्लो 50% बढे़गा... अधिक आपदाएं आएंगी, IIT रुड़की के वैज्ञानिकों की स्टडी

जलवायु परिवर्तन के कारण 21वीं सदी के अंत तक तापमान और वर्षा में उल्लेखनीय वृद्धि होगी. गंगा नदी का कुल प्रवाह 50% बढ़ सकता है, मुख्य रूप से बारिश के कारण. बर्फ का पिघलना 2090 तक 57% कम होगा, लेकिन बारिश और ग्लेशियर पिघलने से पानी की आपूर्ति बनी रहेगी.

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IIT रुड़की के वैज्ञानिकों ने गंगा के ऊपरी क्षेत्र की स्टडी की जिसमें जलवायु परिवर्तन का असर बताया. (फाइल फोटोः गेटी)
IIT रुड़की के वैज्ञानिकों ने गंगा के ऊपरी क्षेत्र की स्टडी की जिसमें जलवायु परिवर्तन का असर बताया. (फाइल फोटोः गेटी)

हिंदू कुश हिमालय (HKH) क्षेत्र जिसे हिमालय के नाम से भी जाना जाता है, दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ताजे पानी का भंडार है. यहां के ग्लेशियर और बर्फ नदियों को पानी प्रदान करते हैं. जो करोड़ों लोगों की पानी की जरूरतों को पूरा करते हैं. गंगा नदी का ऊपरी क्षेत्र, जो हिमालय में स्थित है भी इन ग्लेशियर्स और बर्फ पर निर्भर है. 

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जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ता तापमान और बदलता वर्षा पैटर्न इस क्षेत्र की जल प्रणाली को प्रभावित कर रहा है. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) रुड़की के शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन में यह समझने की कोशिश की है कि जलवायु परिवर्तन का गंगा नदी के ऊपरी क्षेत्र में पानी के प्रवाह और जल संतुलन पर क्या असर होगा.

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Ganga Upper Basin IIT Roorkee
ये है गंगा का ऊपरी क्षेत्र जिसकी स्टडी की गई है. (फाइल फोटोः IIT Roorkee)

अध्ययन का उद्देश्य

IIT Roorkee के रिसर्चर डॉ. प्रवीण कुमार सिंह ने बताया कि यह अध्ययन गंगा नदी के ऊपरी क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को समझने के लिए किया गया. विशेष रूप से यह देखा कि भविष्य में नदी का पानी, बर्फ का पिघलना, ग्लेशियर का पानी और भूजल कैसे बदल सकता है. इसके लिए उन्होंने एक विशेष मॉडल, जिसे एसपीएचवाई (स्पैटियल प्रोसेसेज इन हाइड्रोलॉजी) कहा जाता है और सीएमआईपी6 जलवायु परिदृश्यों (एसएसपी2-4.5 और एसएसपी5-8.5) का उपयोग किया. ये परिदृश्य भविष्य में तापमान और वर्षा में होने वाले बदलावों का अनुमान लगाते हैं. अध्ययन में देवप्रयाग में नदी के प्रवाह के आंकड़ों का उपयोग करके मॉडल को जांचा और सत्यापित किया गया.

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मुख्य निष्कर्ष  

वर्तमान स्थिति (1985-2014): देवप्रयाग में नदी के कुल प्रवाह में 63.3% हिस्सा बारिश, 14.9% बर्फ के पिघलने, 10.8% ग्लेशियर के पिघलने और 10% भूजल से आता है. इस दौरान औसतन कुल प्रवाह 792 क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड था, जिसमें बारिश से 509.5, बर्फ से 117.5, ग्लेशियर से 86.1 और भूजल से 78.9 क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड का योगदान था.

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भविष्य के अनुमान (2076-2100)

  • तापमान और वर्षा में वृद्धि: 21वीं सदी के अंत तक विशेष रूप से SSP5-8.5 परिदृश्य में तापमान और वर्षा में उल्लेखनीय वृद्धि होने की संभावना है.  
  • कुल प्रवाह में 50% वृद्धि: मॉडल के अनुसार भविष्य में नदी का कुल प्रवाह 50% तक बढ़ सकता है. इसका सबसे बड़ा कारण बारिश से होने वाला प्रवाह होगा. इसके बाद ग्लेशियर का पिघलना और भूजल.  
  • बर्फ का पिघलना 57% तक कम होगा: 2090 तक बर्फ से आने वाला पानी 57% तक कम हो सकता है, क्योंकि बढ़ता तापमान बर्फ को तेजी से पिघला देगा और बर्फ का भंडार कम होगा.  
  • पानी की कमी नहीं: भले ही बर्फ का योगदान कम हो बारिश और ग्लेशियर के पिघलने से पानी की आपूर्ति बनी रहेगी.
Ganga Upper Basin IIT Roorkee
28 फरवरी 2025 को गंगोत्री धाम में आया एवलांच. (फाइल फोटोः PTI)

जलवायु परिवर्तन का प्रभाव  

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बर्फ और ग्लेशियर पर असर: बढ़ते तापमान के कारण हिमालय के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. इससे भविष्य में बर्फ और ग्लेशियर से मिलने वाला पानी कम हो सकता है.  

नदी प्रवाह में बदलाव: बारिश का योगदान बढ़ने से नदी का प्रवाह बढ़ेगा, लेकिन यह मौसमी हो सकता है, जिससे बाढ़ जैसी घटनाएं बढ़ सकती हैं.  

जल संसाधन प्रबंधन: पानी की उपलब्धता में बदलाव से सिंचाई, पेयजल और अन्य जरूरतों के लिए बेहतर प्रबंधन की जरूरत होगी.

क्यों महत्वपूर्ण है यह अध्ययन?

इस स्टडी में शामिल रिसर्चर राजीव रंजन ने कहा कि हिमालय क्षेत्र की नदियां, जैसे गंगा, लाखों लोगों के लिए जीवन रेखा हैं. ये नदियां खेती, पेयजल और उद्योगों के लिए पानी प्रदान करती हैं. लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण इन नदियों का प्रवाह बदल रहा है. यह अध्ययन हमें यह समझने में मदद करता है कि भविष्य में पानी की उपलब्धता कैसे होगी. 

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इसे कैसे प्रबंधित किया जाए. इससे सरकार और नीति निर्माताओं को बाढ़, सूखा और पानी की कमी जैसी समस्याओं से निपटने की योजना बनाने में मदद मिलेगी. जलवायु परिवर्तन गंगा नदी के ऊपरी क्षेत्र के जल प्रवाह को बहुत प्रभावित करेगा. बर्फ का योगदान कम होगा, लेकिन बारिश और ग्लेशियर के पिघलने से पानी की आपूर्ति बनी रहेगी. फिर भी पानी के प्रबंधन के लिए पहले से योजना बनाना जरूरी है.

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यह अध्ययन जल संसाधनों के सतत प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है. यह न केवल गंगा बेसिन के लिए बल्कि पूरे हिमालय क्षेत्र के लिए नीतियां बनाने में मदद करेगा. ताकि भविष्य में पानी की कमी न हो. प्राकृतिक आपदाओं से बचा जा सके.  

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