
चैत्र नवरात्र का आज आठवां दिन है और कल रामनवमी के साथ इन शुभ दिनों का समापन हो जाएगा. चैत्र नवरात्र के इन 9 दिनों में मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की पूजा बड़ी धूमधाम से की जाती है. मां दुर्गा को कई नाम जैसे देवी अंबा, जगत माता से पुकारा जाता है. शास्त्रों के मुताबिक, शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा के प्रकट होने का कारण था बुराई पर अच्छाई की जीत. और इसी बुराई को समाप्त करने के लिए मां दुर्गा महिषासुर, धुम्रलोचन, चंड-मुंड, शुंभ-निशुंभ नामक राक्षसों का वध किया था. चंड-मुंड के अभिमान को समाप्त करने के बाद ब्रह्मांड ने मां दुर्गा को नया नाम चामुंडा दिया. लेकिन, इन सभी राक्षसों में सबसे अभिमानी और ताकतवर राक्षस था रक्तबीज. रक्तबीज के वध का जिक्र तो दुर्गा सप्तशती के आठवें अध्याय में भी किया गया है. तो आइए सत्यार्थ नायक की 'महागाथा' से जानते हैं कि आखिर कौन था रक्तबीज और कैसे मां दुर्गा ने उस राक्षस का संहार किया था.
चंड और मुंड जैसे बड़े असुरों का वध होते देख महासुर रक्तबीज हाथ में गदा लेकर मां दुर्गा के साथ युद्ध करने लगा. दरअसल, कठोर तपस्या के कारण रक्तबीज को यह अद्भुत वरदान प्राप्त था कि यदि उसकी रक्त की एक भी बूंद धरती पर गिरेगी तो उसके समान एक ओर शक्तिशाली एक दूसरा महादैत्य पृथ्वी पर पैदा हो जाएगा. और युद्धभूमि में वैसा ही हुआ मां दुर्गा जैसे ही रक्तबीज पर प्रहार कर रही थी तो उसके रक्त की बूंद भूमि पर गिरती और हर बूंद से हजारों नए रक्तबीज उत्पन्न हो जाते. यह देख मां दुर्गा अत्यंत क्रोधित हो उठीं. क्रोध में उनकी भौंहें तन गईं, और इसी तीव्र एकाग्रता से मां काली का प्राकट्य हुआ.
मां काली की उत्पत्ति
मां काली की भयंकर गर्जना से पूरा ब्रह्मांड थर्रा उठा. उनके निकट खड़े राक्षस उनकी तीव्र ऊर्जा और प्रचंड क्रोध के प्रभाव से तुरंत भस्म हो गए. मां काली, बाघ की खाल का आवरण त्यागकर नग्न रूप में प्रकट हुईं. उनकी रक्त से भरी आंखें दहक रही थीं, खोपड़ियों से अलंकृत स्वरूप में वे जंगली शक्ति से भरपूर प्रतीत हो रही थीं. उनके माथे पर स्थित तीसरी आंख प्रचंड प्रकाश से चमक रही थी और उनका स्वरूप अत्यंत भयावह था.
इस भयंकर रूप में आकर मां काली रक्तबीज की विशाल सेना पर टूट पड़ीं. एक-एक करके उन्होंने समस्त राक्षसों का संहार कर दिया और अंततः उनका सामना स्वयं रक्तबीज से हुआ. उसे देखते ही मां काली का क्रोध और अधिक बढ़ गया. उन्होंने अपनी जीभ इतनी फैला ली कि रक्तबीज का संपूर्ण रक्त उसमें समाने लगा. अब जहां भी रक्तबीज का रक्त गिरता, मां काली तुरंत उसे पी जातीं, जिससे उसकी उत्पत्ति दोबारा संभव नहीं हुई. रक्तबीज का अंत करने के बाद भी मां काली का क्रोध शांत नहीं हुआ. उनका प्रचंड रूप इतना भयानक हो गया कि संपूर्ण सृष्टि के विनाश का खतरा उत्पन्न हो गया. इस भयावह स्थिति को देख देवता घबरा गए और भगवान शिव के पास पहुंचे. सभी देवताओं ने भगवान शिव से विनती करी कि केवल आप ही मां काली के इस विकराल क्रोध को शांत कर सकते हैं.
भगवान शिव ने किया मां काली को शांत
मां काली के प्रचंड क्रोध को शांत करना भगवान शिव के लिए भी किसी चुनौती से कम नहीं था. अतः, उन्होंने एक युक्ति अपनाई और मां काली के मार्ग में लेट गए. जैसे ही क्रोध से विकराल मां काली ने भगवान शिव की छाती पर पांव रखा, वे अचानक शांत हो गईं. भगवान शिव को अपने चरणों के नीचे देखकर उनकी चेतना जागी, और उनका उग्र क्रोध धीरे-धीरे शांत हो गया. इस प्रकार, भगवान शिव ने देवताओं की रक्षा की और मां काली के प्रलयकारी रोष को रोककर सृष्टि को संभावित विनाश से बचा लिया.