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Pradosh Vrat: आज रखा जा रहा है मार्गशीर्ष माह का पहला सोम प्रदोष व्रत, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि

Pradosh Vrat: सोम प्रदोष व्रत भगवान शिव की आराधना का अत्यंत पवित्र और फलदायी व्रत है, जो सोमवार को पड़ने वाली त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है. जब प्रदोष व्रत सोमवार के दिन आता है, तो उसका महत्व कई गुना बढ़ जाता है.

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शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या से मुक्ति के लिए शनि प्रदोष व्रत में जरूर करें ये उपाय. (Photo: AI Generated)
शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या से मुक्ति के लिए शनि प्रदोष व्रत में जरूर करें ये उपाय. (Photo: AI Generated)

Pradosh Vrat November 2025 : मार्गशीर्ष महीना हिंदू पंचांग में देवताओं का प्रिय महीना माना गया है. इस पावन महीने में जहां भगवान कृष्ण की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है, वहीं त्रयोदशी तिथि को रखा जाने वाला प्रदोष व्रत भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना के लिए बेहद फलदायी माना गया है. मान्यता है कि प्रदोष काल में शिवपूजन करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. नवंबर 2025 में पड़ने वाला पहला प्रदोष व्रत कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर आज सोमवार, 17 नवंबर 2025 को रखा जा रहा है. सोमवार को पड़ने के कारण यह व्रत सोम प्रदोष के नाम से जाना जाएगा, जिसका धार्मिक महत्व और भी बढ़ जाता है. 

मान्यता है कि सोम प्रदोष व्रत रखने पर दोगुना फल प्राप्त होता है, क्योंकि इस दिन दो शुभ संयोग सोमवार और प्रदोष व्रत साथ आते हैं. शास्त्रों में इस बात का जिक्र मिलता है कि जो व्यक्ति सोम प्रदोष के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विधि-विधान से पूजा करता है, उसे दोनों व्रतों का पुण्य मिलता है,मनोकामनाएं जल्दी पूरी होती हैं, और जीवन में आने वाली बाधाएं दूर हो जाती हैं. 

सोम प्रदोष की पूजा में बेलपत्र, अक्षत, चंदन, धूप-दीप और गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक विशेष रूप से शुभ माना गया है. ऐसा करने से शिवकृपा प्राप्त होती है. 

शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार आज प्रदोष व्रत के अवसर पर शिवपूजन का सर्वोत्तम समय प्रदोष काल में माना गया है. यह पवित्र अवधि सूर्यास्त के तुरंत बाद शुरू होती है और लगभग डेढ़ घंटे तक रहती है.आज के दिन यह शुभ समय शाम 4:55 बजे से रात 7:32 बजे तक रहेगा. 

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प्रदोष काल में करें पूजा 

प्रदोष व्रत में पूजा का सबसे महत्वपूर्ण समय प्रदोष काल माना गया है, जो सूर्यास्त के बाद लगभग डेढ़ घंटे तक रहता है. यही वह पवित्र अवधि है जब भगवान शिव अपने भक्तों पर विशेष कृपा बरसाते हैं. इसलिए इस समय में की गई पूजा, जलाभिषेक और प्रदोष स्तोत्र का पाठ अत्यंत मंगलकारी माना जाता है.

पूजा विधी
प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें. स्वच्छ और हल्के रंग के वस्त्र पहनें.  व्रत का संकल्प लें. प्रदोष काल  में पूजा आरंभ करें. पूजा स्थान पर शिवलिंग स्थापित करें या मंदिर में जाएं. भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति पर जल, गंगाजल छिड़कें. दीपक जलाएं और धूप अर्पित करें. रौली, चावल, चंदन, अक्षत और फूल अर्पित करें. शिवलिंग पर गंगाजल, दूध, दही, शहद, घी से अभिषेक करें. बेलपत्र, धतूरा और फल अर्पित करें  “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जप कम से कम 108 बार करें. प्रदोष व्रत का शिव प्रदोष स्तोत्र पढ़ें. शिव चालीसा, महामृत्युंजय मंत्र का पाठ भी लाभकारी है.  शिवजी और माता पार्वती की आरती करें. व्रत पारण रात में या अगले दिन प्रातः किया जाता है.

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