Kartik Purnima 2025: कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को कार्तिक पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है. इस वर्ष यह पावन पर्व 5 नवंबर 2025, बुधवार को मनाया जाएगा. मान्यता है कि इस दिन मां लक्ष्मी की आराधना करने से घर में सुख-समृद्धि आती है. कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान, दीपदान, यज्ञ और भगवान विष्णु-भगवान शिव की उपासना अत्यंत शुभ मानी जाती है. इस तिथि पर किया गया दान-पुण्य और धार्मिक कर्म अक्षय फल प्रदान करते हैं. चलिए आज हम आपको बताते हैं कि किस शुभ योग में कार्तिक पूर्णिमा मनाई जाएगी.
कार्तिक पूर्णिमा 2025 शुभ योग (Kartik Purnima 2025 Shubh Yog)
ज्योतिषियों के अनुसार, इस बार की कार्तिक पूर्णिमा बहुत ही खास मानी जा रही है क्योंकि इस दिन सर्वार्थसिद्धि योग सुबह 6 बजकर 34 मिनट से लेकर 6 नवंबर की सुबह 6 बजकर 37 मिनट तक रहेगा, अमृत सिद्धि योग का समय भी यही रहेगा. इसके अलावा, रवि योग का संयोग भी रहने वाला है. इन सभी योगों में कार्तिक पूर्णिमा का पूजन किया जाएगा.
कार्तिक पूर्णिमा 2025 स्नान-दान मुहूर्त (Kartik Purnima 2025 Snan Daan Muhurat)
हर पूर्णिमा के दिन स्नान और दान करने का समय ब्रह्म मुहूर्त होता है. इस दिन ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4 बजकर 52 मिनट से शुरू होकर सुबह 5 बजकर 44 मिनट तक रहेगा.
कार्तिक पूर्णिमा 2025 पूजन विधि (Kartik Purnima 2025 Pujan Vidhi)
कार्तिक पूर्णिमा के दिन तड़के किसी पवित्र नदी, तालाब या सरोवर में स्नान करना अत्यंत शुभ माना जाता है. स्नान के बाद दीप जलाकर भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी की विधिवत पूजा की जाती है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन किया गया दान सामान्य दिनों की तुलना में दोगुना पुण्य प्रदान करता है. गाय, हाथी, घोड़ा, रथ और घी का दान करने से धन-वैभव में वृद्धि होती है, जबकि भेड़ का दान करने से अशुभ ग्रहों के प्रभाव कम होते हैं. जो व्यक्ति इस दिन व्रत रखते हैं, उन्हें हवन अवश्य करना चाहिए. साथ ही जरूरतमंदों को भोजन कराने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती है.
कार्तिक पूर्णिमा 2025 महत्व (Kartik Purnima 2025 Significance)
कार्तिक मास की पूर्णिमा को साल की सबसे पवित्र पूर्णिमा में से एक माना जाता है. इस दिन किए गए दान और धार्मिक कर्म अत्यंत शुभ परिणाम देने वाले माने जाते हैं. कहा गया है कि यदि इस तिथि पर चंद्रमा कृतिका नक्षत्र में और सूर्य विशाखा नक्षत्र में स्थित हों, तो बहुत ही दुर्लभ संयोग बनता है. वहीं जब चंद्रमा कृतिका नक्षत्र में और गुरु बृहस्पति उसी समय उपस्थित हों, तो इसे महापूर्णिमा कहा जाता है. ऐसी महापूर्णिमा की संध्या बेला में त्रिपुरोत्सव और दीपदान करने से जन्म-मृत्यु के बंधनों से मुक्ति मिलती है.