क्या कभी आपने देखे हैं बिलखती हुई मां की गोद में खामोश लेटा लाल. ख्वाबों को मरा देख चीखता हुआ बाप. छटपटाकर मर गईं खिलखिलाती हुई नौनिहाल नस्लें? ये वो गम है जिसका मरहम किसी के पास नहीं. हो भी कैसे? जब ज़मीन के अंदर बारूद और ज़मीन के ऊपर आतंक की फसलें उगाई जाएंगी तो ज़ख्म भरते नहीं हरे ही रहते हैं. पाकिस्तान के हुक्मरान पाकिस्तान की सरज़मीन से आतंक और आतंकवाद को खत्म करने का हमेशा दम भरते हैं. पर फिर जैसे ही आतंक की लहलहाती फसलों के बीच से कभी दाऊद, कभी हाफिज सईद, कभी मसूद अज़हर और कभी सैयद सलाउद्दीन का चेहरा झांकता नज़र आता है तो अचानक सारे दम बेदम नज़र आने लगते हैं. हिज़बुल मुजाहिदीन के मुखिया सैयद सलाउद्दीन को अमेरिका ने बेशक इंटरनेशनल आतंकवदी करार दे दिया हो मगर पाकिस्तान की ज़िद है कि वो तो इन्हें पालेगा.