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जिया-उल-हक, मुशर्रफ और आसिम मुनीर... US के लिए क्यों जरूरी बन जाते हैं पाकिस्तान के 'तानाशाह'

इजराइली विमान ईरान के परमाणु ठिकानों पर बमबारी कर रहे हैं. अमेरिका भी अपने युद्धपोतों और विमानों के साथ ईरान के परमाणु केंद्रों को नष्ट करने की तैयारी में है. ट्रंप और मुनीर की इस मुलाकात में कई मांगें होंगी—अमेरिका-इजराइल युद्ध में मदद, हवाई अड्डों का इस्तेमाल, और सबसे जरूरी, ईरान जैसे मुस्लिम देश से दूरी रखना.

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आज व्हाइट हाउस में ट्रंप से मिले आसिम मुनीर (फोटो: एआई)
आज व्हाइट हाउस में ट्रंप से मिले आसिम मुनीर (फोटो: एआई)

7 जुलाई 1947 की ब्रिटेन की एक गुप्त रिपोर्ट में दर्ज है कि, 'पाकिस्तान का इलाका भारत में रणनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है. हमारी ज्यादातर रणनीतिक जरूरतें सिर्फ पाकिस्तान के साथ समझौते से पूरी हो सकती हैं. भारत के साथ समझौता न होने से हमें अपनी जरूरतें बदलने की जरूरत नहीं पड़ेगी. हमें खास तौर पर पाकिस्तान में हवाई अड्डों का इस्तेमाल मिलता है, खासकर बड़े युद्ध के समय.'

रिपोर्ट में बताया गया कि पाकिस्तान ब्रिटिश हितों के लिए भारत से ज्यादा फायदेमंद था. पाकिस्तान का बनना ब्रिटेन के लिए एक बड़ी भू-राजनीतिक जीत थी. यह एक ऐसा देश था, जिसकी सीमा ईरान से 909 किमी, अफगानिस्तान से 2,640 किमी थी, जो सोवियत संघ के पास था, और तेल से भरे अरब देशों से भी नजदीक था. 1948 में ब्रिटेन की चालबाजी से गिलगित-बाल्टिस्तान, जो जम्मू-कश्मीर का हिस्सा था, पाकिस्तान को मिल गया. इससे भारत का अफगानिस्तान और मध्य एशिया से संपर्क टूट गया और चीन के साथ 596 किमी की सीमा बनी. 

डोनॉल्ड ट्रंप ने किया आसिम मुनीर के साथ लंच
1947 की इस रिपोर्ट के समय, जो जगह ब्रिटेन की थी, वह जगह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका ने ले ली और वह पश्चिमी देशों का नेता बन गया था. उसने ब्रिटेन के वैश्विक हितों को भी अपने कब्जे में लिया, जिसमें पाकिस्तान का निर्माण शामिल था. 2025 में, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पाकिस्तान के सबसे ताकतवर व्यक्ति, फील्ड मार्शल असीम मुनिर के साथ दोपहर का भोजन करते हैं. पाकिस्तान की रणनीतिक स्थिति अब पहले से ज्यादा अहम है. इजराइल और ईरान के बीच पांच दिन से युद्ध चल रहा है. 

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इजराइली विमान ईरान के परमाणु ठिकानों पर बमबारी कर रहे हैं. अमेरिका भी अपने युद्धपोतों और विमानों के साथ ईरान के परमाणु केंद्रों को नष्ट करने की तैयारी में है. ट्रंप और मुनीर की इस मुलाकात में कई मांगें होंगी—अमेरिका-इजराइल युद्ध में मदद, हवाई अड्डों का इस्तेमाल, और सबसे जरूरी, ईरान जैसे मुस्लिम देश से दूरी रखना. बदले में, मुनिर उन्नत हथियार और जम्मू-कश्मीर में मध्यस्थता की मांग कर सकता है.

अमेरिकाः एक लोकतांत्रिक देश, जिसे तानाशाहों का साथ पसंद है
अमेरिका दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र है, लेकिन उसे तानाशाहों के साथ काम करना पसंद है. कहा जाता है कि राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने एक तानाशाह के बारे में कहा था, 'वह बुरा है, लेकिन हमारा बुरा है.' पाकिस्तान की सेना उसे अमेरिका के करीब लाई. शीत युद्ध में भारत और अमेरिका अलग-अलग खेमों में थे, लेकिन 1958 में जनरल अयूब खान के तख्तापलट के बाद पाकिस्तान अमेरिका का साथी बन गया. तब से सेना, अल्लाह और अमेरिका, ये तीन चीजें पाकिस्तान को चलाती हैं. यह एक ऐसा देश है जो खुद को अमेरिका को किराए पर देता रहा है.

ट्रम्प और मुनीर की मुलाकात से यह समझा जा सकता है कि कैसे कंगाल पाकिस्तान फिर से अमेरिका का पसंदीदा बन गया. इसके बाद उसे पश्चिमी देशों के आईएमएफ और विश्व बैंक से मदद मिली और आतंकवाद पर नजर रखने वाली सूची से हटा दिया गया.
 
नई दिल्ली के लिए, अमेरिका का पाकिस्तान की तरफ झुकाव यह बताता है कि पश्चिम ने पाकिस्तान के आतंकवाद की निंदा क्यों नहीं की, जिसके कारण 22 मई को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में भारतीय पर्यटकों का कत्ल हुआ. पाकिस्तानी तानाशाह हमेशा वैश्विक संकटों का फायदा उठाते हैं. 1979 में जब सोवियत संघ ने अफगानिस्तान पर हमला किया, तब जनरल जिया-उल-हक ने पाकिस्तान को पश्चिम का अहम सहयोगी बनाया.

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कैसे अमेरिका और पाकिस्तान बन जाते हैं सहयोगी?
2001 में जब अल-कायदा ने अमेरिका पर हमला किया, जनरल मुशर्रफ तालिबान और अल-कायदा के खिलाफ अमेरिका के सहयोगी बन गए, हालांकि इन संगठनों को उनकी सेना ने ही बनाया और समर्थन दिया था. 7 अक्टूबर, 2023 को हमास के इजराइल पर हमले के बाद अब इजराइल ने ईरान पर हमला किया है. यहीं पर मुनीर और उसका देश फिर से महत्वपूर्ण हो गया है.  पिछले दो मौकों पर पाकिस्तान की सेना को फायदा हुआ, लेकिन देश को लंबे समय तक नुकसान झेलना पड़ा. पाकिस्तान की सेना इसे जोखिम के रूप में देखती है, क्योंकि यह भारत के खिलाफ उनके युद्ध में मदद करता है.

1979 में, पश्चिम ने जिया के परमाणु हथियारों की अनदेखी की, क्योंकि वह उनके लिए जरूरी था. 1980 के दशक में पाकिस्तान ने परमाणु हथियार बनाए. जब अमेरिका ने अफगानिस्तान से समर्थन वापस लिया, तो पाकिस्तान की सेना ने अमेरिका से मिले हथियारों को पंजाब और जम्मू-कश्मीर में इस्तेमाल किया. मुशर्रफ ने आतंकवादियों और परमाणु हथियारों को मिलाकर भारत को आतंक से कमजोर करने और जवाबी कार्रवाई पर परमाणु हमले की धमकी देने की रणनीति बनाई. 

पहलगाम अटैक और ऑपरेशन सिंदूर
जब अमेरिका पाकिस्तानी तानाशाहों का समर्थन करता है, तो वे खुद को बहुत बड़ा समझने लगते हैं, जैसे ईसप की कहानी में वह मेंढक जो बैल से जलन रखता है और उसके जैसा तगड़ा दिखने के लिए खुद में हवा भरते हुए फुलाता है. यही मुनीर के साथ हुआ, जब उन्होंने 16 अप्रैल को ‘दो राष्ट्र’ वाला भड़काऊ भाषण दिया, जिसके छह दिन बाद 22 अप्रैल को पहलगाम में भारतीय पर्यटकों का नरसंहार हुआ. कहानी में मेंढक फट जाता है. मुनिर यहां तक बढ़ गए कि 12 मई को भारत ने मिसाइलों से पाकिस्तानी सैन्य ठिकानों को नष्ट कर दिया.

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भारत ने 65 साल पुरानी सिंधु जल संधि को रोक दिया, प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान के परमाणु ब्लैकमेल को चुनौती दी और आतंकवादियों व सरकार के बीच फर्क खत्म कर दिया. पाकिस्तान की सेना ने 12 मई को युद्धविराम मांगा, जिसे भारत ने मान लिया. मुनिर ने खुद को फील्ड मार्शल घोषित कर जीत का दावा किया. अब वाशिंगटन में, मुनीर ट्रम्प के साथ अपनी बड़ी मुलाकात की तैयारी कर रहा है, जैसे ग्रिम की कहानी में एक घृणित मेंढक राजकुमारी के चुंबन से राजकुमार बन जाता है. क्या ट्रम्प इस खेल में साथ देंगे?

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