नेहरू देश की राजनीतिक बहसों के केंद्र में तो छाये ही रहते हैं, अब उनके लिखे पत्र लड़ाई का नया मुद्दा बनने जा रहे हैं - और ये मुद्दा राजनीति से कानूनी लड़ाई की तरफ बढ़ रहा है.
PMML यानी प्रधानमंत्री संग्रहालय एवं पुस्तकालय सोसाइटी चाहती है कि कांग्रेस नेता सोनिया गांधी नेहरू के लिखे पत्रों को लौटा दें. PMML की तरफ से इस सिलसिले में सोनिया गांधी को पत्र भी लिखा जा चुका है. सोनिया गांधी की तरफ से रिस्पॉन्स न मिलने पर लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी से भी पत्र के जरिये गुजारिश की गई है, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ पाई है.
प्रधानमंत्री संग्रहालय एवं पुस्तकालय सोसाइटी की सालाना आम सभा की बैठक में इस मसले पर गंभीरता से विचार विमर्श हुआ है - और आगे की रणनीति पर भी चर्चा हुई है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई आम सभा की बैठक में सोसाइटी के उपाध्यक्ष राजनाथ सिंह के और कई सदस्य भी शामिल हुए.
दिल्ली के तीन मूर्ति मार्ग पर 15,600 स्क्वायर मीटर में प्रधानमंत्री संग्रहालय देश के प्रधानमंत्रियों के नाम है.
कानूनी रास्ता अख्तियार करने का प्लान
PMML की बैठक को लेकर सूत्रों के हवाले से इंडियन एक्सप्रेस ने एक रिपोर्ट दी है. सूत्रों के अनुसार, बैठक में आम सहमति बनी है कि देश के पहले प्रधानमंत्री से संबंधित दस्तावेज राष्ट्रीय धरोहर हैं, और वे संग्रहालय को वापस सौंपे जाने चाहिए, ताकि उनकी विरासत को सही तरीके से संरक्षित किया जा सके.
रिपोर्ट के मुताबिक ये भी मालूम हुआ है कि गांधी परिवार की तरफ से नेहरू के पत्रों की बाबत कोई जवाब नहीं मिला है, लिहाजा कानूनी राय लेकर आगे बढ़ने की कोशिश होनी चाहिये. दलील ये होगी कि एक बार जो दस्तावेज दान या भेंट स्वरूप दे दिये जाते हैं, उनको वापस नहीं लिया जा सकता, क्योंकि वे संगठन की संपत्ति माने जाते हैं, जिसकी देखरेख की जिम्मेदारी भी संगठन की ही होनी चाहिए.
रिपोर्ट बताती है कि फरवरी, 2024 में भी आम सभा की बैठक हुई थी, जिसकी अध्यक्षता रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने की थी, और उसमें केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण और धर्मेंद्र प्रधान सहित कई सदस्य शामिल हुए थे.
तब भी ऐसी ही राय बनी थी कि नेहरू से जुड़े दस्तावेजों को वापस मंगाया जाना चाहिए, और उनके स्वामित्व, संरक्षण, कॉपीराइट और उनके इस्तेमाल जैसे पहलुओं पर कानूनी राय ली जाये.
नेहरू के पत्रों पर म्यूजियम बनाम गांधी परिवार
जवाहर लाल नेहरू के पत्र 1971 में नेहरु मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी को दिये गये थे. पहले ये नेहरू मेमोरियल म्यूजियम और लाइब्रेरी हुआ करता था, लेकिन जून, 2023 में इसका नाम बदलकर ‘प्रधानमंत्री म्यूजियम और लाइब्रेरी सोसाइटी’ कर दिया गया.
ये दस्तावेज नेहरू की विरासत की उत्तराधिकारी इंदिरा गांधी की तरफ से म्यूजियम को दिये गये थे. दिसंबर, 2024 में PMML सोसाइटी के सदस्य रिजवान कादरी ने राहुल गांधी को पत्र लिखा कि वो अपनी मां से बात करें, और नेहरू से जुड़े दस्तावेज म्यूजियम को लौटा दिये जायें.
राहुल गांधी को लिखे पत्र में रिजवान कादरी ने कहा, सितंबर, 2024 में मैंने सोनिया गांधी को पत्र लिखकर अनुरोध किया था कि 2008 में नेहरू स्मारक संग्रहालय एवं पुस्तकालय से वापस लिए गए 51 डिब्बे संस्था को लौटा दिए जाएं… हमें उन्हें देखने और स्कैन करने की अनुमति दी जाए या उनकी एक कॉपी हमें दी जाए ताकि हम उनका अध्ययन कर सकें.
पत्र में रिजवान कादरी ने ऐसा करने की वजह भी समझाई थी, हम समझते हैं कि ये दस्तावेज नेहरू परिवार के लिए निजी अहमियत रखते होंगे. लेकिन, PMML का मानना है कि ऐतिहासिक चीजों को व्यापक रूप से सुलभ बनाये जाने पर स्कॉलर्स और शोधकर्ताओं को काफी फायदा होगा.
PMML के सदस्य रिजवान कादरी का आरोप है कि कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए के शासनकाल में 51 डिब्बों में भर कर नेहरू की निजी चिट्ठियां 2008 में सोनिया गांधी के पास पहुंचाए दिये गए थे.
जब राहुल गांधी और सोनिया गांधी को पत्र लिखने से बात नहीं बन रही, तब PMML ने कानूनी रास्ता अख्तियार करने का फैसला किया है.
क्या सोनिया गांधी को किसी बात का डर है?
सोनिया गांधी से जो दस्तावेज PMML वापस चाहता है, उनमें नेहरू के वे पत्र शामिल हैं जो उन्होंने एडविना माउंटबेटन, अल्बर्ट आइंस्टीन, जयप्रकाश नारायण, पद्मजा नायडू, विजया लक्ष्मी पंडित, अरुणा आसफ अली, बाबू जगजीवन राम और गोविंद बल्लभ पंत जैसी हस्तियों को लिखे थे.
निश्चित तौर पर नेहरू की विरासत पर गांधी परिवार का पहला हक है, लेकिन निजी संपत्ति पर. जो चीजें सार्वजनिक महत्व की हैं, उन पर किसका हक होना चाहिये, ये बहस का विषय हो सकता है, और आपसी बातचीत से मामला नहीं सुलझता तो फैसला तो अदालत ही करेगी.
यहां सवाल ये है कि जब इंदिरा गांधी ने नेहरू के पत्र म्यूजियम को दे दिये थे, तो सोनिया गांधी को क्या दिक्कत हो सकती है?
ये जरूर है कि जब इंदिरा गांधी ने नेहरू के ये पत्र म्युजियम को दिये थे, तब सोशल मीडिया नहीं था. आज की तारीख में कुछ भी सोशल मीडिया पर आ जाने पर वायरल होने का खतरा पैदा हो जाता है - तो क्या सोनिया गांधी ऐसे ही किसी कारण से नेहरू के पत्र म्युजियम को नहीं लौटाना चाह रही हैं?
क्या सोनिया गांधी को नेहरू के पत्रों के किसी तरह लीक होने जाने की आशंका है? क्या सोनिया गांधी को नेहरू के पत्रों के सामने आ जाने से उनके राजनीतिक दुरुपयोग की आशंका लग रही है? क्या सोनिया गांधी को नेहरू के पत्रों के सार्वजनिक कर दिये जाने पर नेहरू के नाम पर पहले से जारी विवाद के नये सिरे से बढ़ जाने का खतरा महसूस हो रहा है?