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बंगाल में SIR का विरोध करने वाली ममता बनर्जी का दिलचस्‍प 'यू-टर्न'

चुनाव आयोग ने मतदाता सूची के ‘स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन’ (SIR) की घोषणा की थी तब ममता बनर्जी ने साफ लफ्जों में कहा था कि वे बंगाल में ऐसा नहीं होने देंगी. अब वे कह रही हैं कि यदि किसी भी एक व्‍यक्ति का नाम नाहक डिलीट हुआ तो खैर नहीं होगी. इसी के साथ ही टीएमसी कार्यकर्ताओं को BLO के साथ जाने का निर्देश दिया गया है.

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बंगाल में SIR का विरोध करते हुए ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग के साथ संतुलन भी कायम कर लिया. (फोटो- PTI)
बंगाल में SIR का विरोध करते हुए ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग के साथ संतुलन भी कायम कर लिया. (फोटो- PTI)

देश के 12 राज्‍यों की मतदाता सूची का  ‘स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन’ (SIR) 4 नवंबर से शुरू हो गया, जो एक महीना यानी 4 दिसंबर तक चलेगा. लेकिन, इस प्रक्रिया को लेकर सबसे ज्‍यादा बवाल पश्चिम बंगाल में देखने को मिला. जहां की मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्‍व में टीएमसी ने चुनाव आयोग और केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा ही खोल दिया. लेकिन, जिस तीखे रवैये के साथ SIR का विरोध शुरू हुआ था, वह धीरे धीरे धीमा पड़ता जा रहा है. या, ये भी कह सकते हैं कि ममता बनर्जी अब टकराव से पीछे हट रही हैं. आइये, समझते हैं कि ममता बनर्जी के इस गियर शिफ्ट करने की क्‍या वजह है.

जब चुनाव आयोग ने ‘स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन’ (SIR) की घोषणा की थी, तो ममता बनर्जी ने इसे 'लोकतंत्र पर सर्जिकल स्ट्राइक' करार दिया था. तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को घर-घर जाकर BLO (बूथ लेवल ऑफिसर) का विरोध करने का आदेश दिया गया. टीएमसी ने आशंका जताई कि बंगाल में एक करोड़ से अधिक वोटरों के नाम काटे जा सकते हैं. खासकर मुर्शिदाबाद, मालदा जैसे मुस्लिम-बहुल इलाकों में. TMC ने सुप्रीम कोर्ट जाने की धमकी दी, सड़क पर उतरने का ऐलान किया. लेकिन सिर्फ एक हफ्ते बाद, ममता ने अचानक गियर बदला. TMC को निर्देश दिया गया कि BLO के साथ सहयोग करें, नए वोटर जोड़ें, गलत कटौती पर आपत्ति दर्ज करें. सवाल उठता है कि ये यू-टर्न क्‍यों?

क्‍या राष्ट्रपति शासन लगने का डर है?

भाजपा के नेता सुवेंदु अधिकारी ने 30 अक्टूबर 2024 को खुलेआम कहा, 'ममता की अराजकता बंगाल में अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) लागू करने का आधार बन रही है.' बंगाल में लॉ एंड ऑर्डर की बदहाल स्थिति को लेकर केंद्र सरकार के पास पहले से ही बंगाल पर दबाव बनाने के लिए हथियार थे. लेकिन, ऐसा कभी हुआ नहीं. लेकिन, ममता जानती हैं कि यदि उन्‍होंने SIR जैसी संवैधानिक प्रक्रिया को रोका, तो केंद्र सरकार एक संवैधानिक संस्‍था की अवमानना का बहाना लेकर उनके खिलाफ कार्रवाई कर सकती है.  और 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले राष्ट्रपति शासन का खतरा उनकी सत्ता को सीधे चुनौती दे सकता है. इसलिए विरोध को 'नियंत्रित सहयोग' में बदल दिया.

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सुप्रीम कोर्ट की सख्ती का डर भी तो है?

जुलाई 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में SIR रोकने की RJD की याचिका खारिज कर दी थी. कोर्ट ने साफ कहा कि चुनाव आयोग की स्वायत्तता में दखल नहीं दिया जा सकता. TMC के कानूनी सलाहकारों ने ममता को चेताया कि समय से पहले SC में जाना मतलब 'अड़ंगा लगाने' का ठप्पा लगना. कोलकाता हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में ममता बनर्जी सरकार की पहले भी खिंचाई होती रही है, और उन तमाम चुनौतियों से ममता बखूबी निपटी भीं. लेकिन अब वे जानती हैं कि SIR जैसी कार्रवाई का विरोध मुख्‍यमंत्री पद पर बैठकर कानूनी ढंग से नहीं कर सकती हैं. इसलिए वह अपनी विरोध की राजनीति को एक सीमा तक आगे ले जाती हैं, और फिर वहीं रुक जाती हैं. जहां से केंद्र सरकार, चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट का दायरा शुरू होता है.

विरोध इसलिए क्‍योंकि वोटर बेस भी तो बचाना है

एक आम आंकलन है कि बंगाल में कई लोगों को फर्जी तरीके से आधार कार्ड जारी किए गए हैं. बीजेपी ऐसे ही लोगों को 'घुसपैठिया' कहकर ममता बनर्जी पर इन्‍हें प्रश्रय देने का आरोप लगाती है. उन पर रोहिंग्‍या घुसपैठियों को शरण देने का आरोप लगाया जाता है. जिसके पलटवार में ममता भाजपा से पूछती हैं कि अमित शाह बताएं कि बंगाल में कितने रोहिंग्‍या हैं? कितने घुसपैठिए हैं? ऐसी ही बहस बिहार चुनाव के बीच भी चली है. लेकिन, बंगाल की राजनीति में मुस्लिम वोटों का अच्‍छा खासा दखल है. जो कि ममता बनर्जी के लिए एकमुश्‍त वोटबैंक का काम करते हैं. ममता अपने इसी वोटर बेस को पकड़कर रखना चाहती हैं. यदि मुसलमानों के बीच यदि NRC का डर है तो ममता आगे बढ़कर SIR को NRC से जोड़ देती हैं. और अपने 4 किमी के मार्च में यह दोहराती हैं कि यदि एक भी आदमी का नाम गलत ढंग से वोटर लिस्‍ट से डिलीट किया गया तो वह मोदी सरकार को गिरा देंगी. ममता बनर्जी आगे बढ़कर मुस्लिम वोटबैंक को सिक्‍योरिटी गारंटी दे देती हैं. 

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SIR को लेकर उनकी ये सक्रियता सिर्फ भाजपा और चुनाव आयोग के विरोध के कारण नहीं है. वह ऐसे किसी मुद्दे पर अपनी पकड़ ढीली नहीं करना चाहती हैं, जिसके सहारे बंगाल में कांग्रेस और लेफ्ट वापस अपनी जमीन पा सकें. राहुल गांधी पहले ही चुनाव आयोग पर हमलावर हैं और वोटर लिस्‍ट में गड़बड़ी के मामले उठा रहे हैं. लेकिन, बंगाल में ममता इस मुद्दे का कॉपीराइट किसी से शेयर करना नहीं चाहतीं. SIR का विरोध करते हुए वह एक दिलचस्‍प संतुलन कायम कर लेती हैं, जिसमें उनकी साख भी बची रहे और चुनाव आयोग का काम भी हो जाए.

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