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'टेररिस्तान' को दुलार-भारत से व्यापार... आसिम मुनीर को अमेरिकी दावत के पीछे क्या है राज?

जिस पाकिस्तान से प्रशिक्षित आतंकी शाहजेब खान को कनाडा से प्रत्यर्पित करके अमेरिका अपने देश ला रहा है, जिस देश में उसका सबसे बड़ा दुश्मन ओसामा बिन लादेन छिपा हुआ था, जो देश भारत पर लगातार दशकों से आतंकी हमले कराता रहा है. अगर अमेरिका के दिल में अचानक पाकिस्तान के लिए प्यार उमड़ रहा है तो जाहिर कुछ वजह तो होगी ही...

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पाकिस्तानी जनरल आसिम मुनीर और अमेरिकी जनरल माइकल कुरीला
पाकिस्तानी जनरल आसिम मुनीर और अमेरिकी जनरल माइकल कुरीला

अमेरिकी आर्मी दिवस (14 जून 2025) पर पाकिस्तान के सेना प्रमुख, फील्ड मार्शल आसिम मुनीर को निमंत्रण देना एक ऐसा कदम है, जिसने भारत में बहस छेड़ दी है. इसे भारत का अपमान मानने या अमेरिका की मजबूरी के रूप में देखने से पहले, इस निमंत्रण के पीछे की रणनीतिक, भूराजनीतिक और कूटनीतिक परिस्थितियों का विश्लेषण करना जरूरी है. इस सवाल का जवाब ढूंढ़ना होगा कि यह निमंत्रण अमेरिका की मजबूरी है या भारत की असफल कूटनीति का उदाहरण है?

सोचने वाली बात है कि जिस पाकिस्तान से प्रशिक्षित आतंकी शाहजेब खान को कनाडा से प्रत्यर्पित करके अमेरिका अपने देश ला रहा है, जिस देश में अमेरिका का सबसे बड़ा दुश्मन ओसामा बिन लादेन छिपा हुआ था, जिस देश ने भारत पर लगातार दशकों से आतंकी हमले कराता रहा है, भारत पर हमले के एक आरोपी तहव्वुर राणा को अमेरिका ने अभी हाल ही में भारत को प्रत्यर्पित किया उसी देश के लिए अमेरिका के दिल में इतना प्यार क्यों उमड़ रहा है. क्या टेरेरिस्तान को दुलार और भारत के साथ व्यापार दोनों एक साथ चल सकता है. क्या इस तरह अमेरिका दुनिया से आतंकवाद का नामोनिशान खत्म कर सकेगा? झूठ या सही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हर रोज कहते हैं कि मैंने व्यापार का दबाव बनाकर भारत से सीजफायर कराया. तो क्या ट्रंप ये समझते हैं भारत इसे स्वीकार करेगा? क्या ये सही है कि भारत और अमेरिका कभी स्वाभाविक मित्र नहीं हो सकते?

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1. टेरेरिस्तान को दुलार, अमेरिका-पाकिस्तान संबंध

अमेरिकी आर्मी दिवस (14 जून 2025) पर पाकिस्तान के सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर को निमंत्रण देना भारत में विवाद का विषय बन गया है. X पर कई भारतीय यूजर्स (@SupriyaShrinate, @SevadalHRY) ने इसे आतंकवादियों को दुलार और भारत का अपमान माना. आसिम मुनीर के कश्मीर पर भड़काऊ बयान और पहलगाम हमले (22 अप्रैल 2025) के बाद उनकी भूमिका ने भारत में आक्रोश बढ़ाया है. हालांकि इस निमंत्रण को अमेरिका की मजबूरी के बजाय एक रणनीतिक कदम के रूप में देखा जाना चाहिए.

पाकिस्तान दक्षिण एशिया में एक महत्वपूर्ण भूराजनीतिक स्थिति रखता है, जो अफगानिस्तान, ईरान, और मध्य एशिया से जुड़ा है. अमेरिका के लिए, पाकिस्तान के साथ सैन्य और कूटनीतिक संबंध बनाए रखना चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने और क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है. CNN-News18 की एक रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान 81% हथियार चीन से आयात करता है, और अमेरिका इस निर्भरता को कम करने की कोशिश कर सकता है.

अमेरिका ने पाकिस्तान पर आतंकवादी संगठनों, जैसे जैश-ए-मोहम्मद (JeM) और लश्कर-ए-तैयबा (LeT), के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए दबाव बनाया है. उदाहरण के लिए, अमेरिकी सांसद ब्रैड शेरमन ने बिलावल भुट्टो जरदारी के नेतृत्व वाले पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल को साफ कहा कि पाकिस्तान को JeM को खत्म करना होगा और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी. यह दर्शाता है कि अमेरिका का निमंत्रण दुलार से ज्यादा एक रणनीतिक संवाद का हिस्सा है, जिसका मकसद पाकिस्तान को जवाबदेह बनाना है.

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2. भारत के साथ व्यापार

अमेरिका ने भारत के साथ आतंकवाद विरोधी सहयोग को बार-बार मजबूत किया है.तहव्वुर राणा का प्रत्यर्पण इसका सबूत रहा है. शशि थरूर के नेतृत्व में भारतीय सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने अमेरिका में ऑपरेशन सिंदूर और पहलगाम हमले के बाद भारत के रुख को स्पष्ट किया. अमेरिकी उप विदेश मंत्री क्रिस्टोफर लैंडाउ ने कहा कि अमेरिका आतंकवाद के खिलाफ भारत के साथ मजबूती से खड़ा है. इसके अलावा, यूएस-इंडिया काउंटर टेररिज्म जॉइंट वर्किंग ग्रुप ने 26/11 मुंबई और पठानकोट हमलों के दोषियों को न्याय के कटघरे में लाने का आह्वान किया.

भारत और अमेरिका के बीच व्यापार और रक्षा सहयोग हाल के वर्षों में बढ़ा है. शशि थरूर की अमेरिकी यात्रा के दौरान व्यापार और वाणिज्यिक संबंधों के विस्तार पर चर्चा हुई, जो दोनों देशों में समृद्धि और शांति को बढ़ावा देता है. भारत के लिए अमेरिकी निवेश और रक्षा सौदे, जैसे क्वाड और I2U2, क्षेत्रीय सुरक्षा और आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं. अमेरिका ने स्पष्ट किया कि भारत में शांति और मजबूत सीमाएं उसके निवेश के लिए जरूरी हैं.

भारत-अमेरिका संबंध एक वैश्विक रणनीतिक साझेदारी के रूप में विकसित हुए हैं, जिसमें आतंकवाद विरोधी सहयोग एक प्रमुख हिस्सा है. अमेरिका ने बार-बार भारत के आत्मरक्षा के अधिकार का समर्थन किया है, जैसा कि सीनेटर क्रिस वान होलेन ने थरूर के साथ बैठक में कहा. यह दर्शाता है कि भारत के साथ व्यापार और सहयोग आतंकवाद से मुकाबले में बाधा नहीं डालता, बल्कि इसे मजबूत करता है.

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3. आतंकवाद पर अमेरिका की दोहरी रणनीति

भारत में कई लोग अमेरिका की नीति को दोहरा मानते हैं, क्योंकि वह एक तरफ भारत के साथ आतंकवाद विरोधी सहयोग बढ़ाता है और दूसरी तरफ पाकिस्तान के साथ संबंध बनाए रखता है. खासकर जब ट्रम्प ने कश्मीर पर मध्यस्थता की पेशकश की, जिसे भारत ने खारिज कर दिया. ट्रम्प के दावे कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान संघर्ष विराम में मध्यस्थता की, भारत में विवाद का कारण बन गया.भारतीय विदेश मंत्रालय ने इसे खारिज करते हुए कहा कि यह DGMO स्तर पर द्विपक्षीय समझौता था.

अब अमेरिका सेंट्रल कमांड (सेंटकॉम) के कमांडर, जनरल माइकल कुरीला ने पाकिस्तान के बारे में कहा, वे इस समय सक्रिय आतंकवाद विरोधी लड़ाई में लगे हुए हैं, और काउंटर टेररिज्म में वे एक अभूतपूर्व साझेदार रहे हैं. उन्होंने कहा, हमें पाकिस्तान और भारत के साथ संबंध बनाने की जरूरत है. मैं नहीं मानता कि यह कोई दोधारी बदलाव है कि अगर हम भारत के साथ संबंध रखते हैं तो हम पाकिस्तान के साथ संबंध नहीं रख सकते. उन्होंने कहा, हमें संबंधों के गुणों को सकारात्मकता के लिए देखना चाहिए.

अमेरिका का दृष्टिकोण क्षेत्रीय स्थिरता और वैश्विक शक्ति संतुलन पर केंद्रित है. वह भारत के साथ रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करते हुए पाकिस्तान को भी संलग्न रखता है ताकि चीन का प्रभाव कम हो और आतंकवाद पर दबाव बनाए रखा जाए. अमेरिकी विदेश विभाग की प्रवक्ता टैमी ब्रूस ने पहलगाम हमले को अवैध और अस्वीकार्य बताया और कहा कि अमेरिका भारत के साथ आतंकवाद के खिलाफ मजबूती से खड़ा है. यह दर्शाता है कि अमेरिका की नीति आतंकवाद विरोधी है, भले ही वह पाकिस्तान के साथ संवाद बनाए रखे.

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अमेरिका ने पाकिस्तान को आतंकवादी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए बार-बार दबाव डाला है. 2020 में यूएस-इंडिया काउंटर टेररिज्म जॉइंट वर्किंग ग्रुप ने पाकिस्तान से 26/11 और पठानकोट हमलों के दोषियों को सजा देने की मांग की. इसके अलावा, अमेरिकी सांसद ब्रैड शेरमन ने बिलावल भुट्टो से JeM को खत्म करने और डॉ. शकील अफरीदी की रिहाई की मांग की, जो ओसामा बिन लादेन को पकड़ने में मदद करने के लिए जेल में हैं.

4. क्या इस तरह ग्लोबल टेरेरिज्म से होगा मुकाबला

अमेरिका का पाकिस्तान के साथ संवाद बनाए रखना आतंकवाद से मुकाबले में क्या बाधा नहीं डालेगा? इसका जवाब बहुत जटिल है. अमेरिका जानता है कि पाकिस्तान की सैन्य और खुफिया एजेंसियां (जैसे ISI) आतंकवादी समूहों को समर्थन देती हैं, जैसा कि भारतीय विदेश मंत्रालय और अमेरिकी बयानों में यह बार-बार उजागर होता रहा है. अमेरिका की रणनीति हो सकती है कि पाकिस्तान को अलग-थलग करने के बजाय, अमेरिका उसे साथ रखकर आतंकवाद पर दबाव बनाए.

अमेरिका की नियत पर अभी पूरी तरह संदेह नहीं कर सकते क्योंकि अभी अमेरिका ने भारत के ऑपरेशन सिंदूर और आतंकवाद विरोधी रुख का समर्थन किया है. शशि थरूर के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने न्यूयॉर्क और वाशिंगटन में अमेरिकी अधिकारियों, थिंक टैंक्स, और मीडिया को भारत की  जीरो टॉलरेंस पॉलिसी से अवगत कराया. अमेरिका ने 9/11 हमलों के पीड़ितों के प्रति भारत की एकजुटता का भी स्वागत किया, जो दोनों देशों के साझा आतंकवाद विरोधी दृष्टिकोण को दर्शाता है.

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दरअसल अमेरिका का पाकिस्तान के साथ मेलजोल चीन के प्रभाव को कम करने की रणनीति का हिस्सा है. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और सैन्य क्षमता चीन पर निर्भर है, और अमेरिका इस निर्भरता को कम करने के लिए आर्थिक और सैन्य सहायता का लालच दे सकता है. यह भारत के लिए भी फायदेमंद हो सकता है, क्योंकि यह पाकिस्तान को चीन के प्रभाव से बाहर निकाल सकता है.

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