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बिहार में आम आदमी पार्टी यूं ही नहीं सभी सीटों पर ताल ठोंक रही है, जानिये क्‍या है गणित

आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने देश को नई राजनीति देने का वादा करके दिल्ली और पंजाब में सरकार बनाई. दिल्ली में हालांकि पिछले विधानसभा चुनावों में उन्हें हार का मुंह का देखना पड़ा है पर वो पंजाब में अभी भी उनकी लोकप्रियता बरकरार है. गोवा और गुजरात में भी पार्टी धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ रही है. जाहिर है कि बिहार को भी वो हल्के में नहीं ले रहे हैं.

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 CM Arvind Kejriwal has been arrested by ED
CM Arvind Kejriwal has been arrested by ED

बिहार विधानसभा चुनावों के लिए आम आदमी पार्टी कितनी गंभीर है, इस बात से समझ सकते हैं कि वो सभी विधानसभा सीटों के लिए अपने प्रत्याशी खड़े करने का दम भर रही है. 11 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी भी हो गई है. लेकिन बिहार की जटिल जातिगत राजनीति, स्थापित दलों के मजबूत वोट बैंक और AAP के सीमित संगठनात्मक आधार को देखते हुए यह कहना आसान है कि पार्टी यहां व्यर्थ में ही अपना समय जाया कर रही है.

पर आम आदमी पार्टी के प्रमुख और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को समझना इतना आसान नहीं है. उनका एक एक कदम में कई चालें होती हैं. जुलाई में ही अरविंद केजरीवाल ने स्पष् कर दिया था कि पार्टी बिहार में अकेले चुनाव लड़ेगी और INDIA ब्लॉक के साथ कोई गठबंधन नहीं करेगी. जाहिर है कि वे बड़ी रणनीति के तहत  मैदान में उतर रहे हैं.  AAP ने स्टार प्रचारकों की सूची जल्द जारी करने का ऐलान किया है, जिसमें केजरीवाल, संजय सिंह और भगवंत मान शामिल हो सकते हैं.  

हिंदी बेल्ट में पैर जमाने के लिए बिहार में एंट्री जरूरी

ये बात अब कोई ढंकी छुपी हुई नहीं है कि अरविंद केजरीवाल की महत्वाकांक्षा आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार देना है.जाहिर है कि बिहार का चुनाव इसके लिए महत्वपूर्ण है.  दिल्ली और पंजाब में सफलता के बाद, AAP खुद को राष्ट्रीय विकल्प के रूप में स्थापित करना चाहती है. बिहार में 243 सीटों पर स्वतंत्र रूप से लड़ना इस दिशा में एक अहम कदम है. इसका एक और कारण यह भी है कि हिंदी बेल्ट में पहुंच बनाने के लिए बिहार में जगह बनाना बहुत जरूरी है.इसलिए ही AAP का प्राथमिक उद्देश्य बिहार जैसे बड़े और राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्य में अपनी उपस्थिति दर्ज कराना है.पार्टी का मानना है कि बिहार में आधार बनाकर वह भविष्य में अन्य हिंदी पट्टी राज्यों में प्रभाव बढ़ा सकती है.

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AAP अपनी 'काम की राजनीति' को बिहार में प्रोजेक्ट करना चाहती है, जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, मुफ्त बिजली-पानी और भ्रष्टाचार-मुक्त शासन शामिल हैं. अरविंद केजरीवाल ने अपनी जनसभाओं में दिल्ली के स्कूल-हॉस्पिटल मॉडल को बिहार में लागू करने का वादा किया है.  यह मॉडल विशेष रूप से शहरी और अर्ध-शहरी मतदाताओं, युवाओं और प्रवासी बिहारियों को आकर्षित करने का लक्ष्य रखता है, जो दिल्ली में AAP के काम से परिचित हैं. 

अगले चुनावों के लिए जमीन तैयार करना

बिहार में बेरोजगारी, शिक्षा की कमी और प्रवास जैसे मुद्दे प्रमुख हैं. AAP इन मुद्दों को उठाकर युवाओं और मध्यम वर्ग को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही है. पार्टी का दावा है कि पूर्वांचल के बिहारी प्रवासियों ने दिल्ली में AAP को समर्थन दिया, और अब वह बिहार में भी ऐसा ही समर्थन चाहती है. 

दिल्ली और पंजाब में सफलता के बाद, AAP खुद को राष्ट्रीय विकल्प के रूप में स्थापित करना चाहती है, इसके लिए जरूरी है कि बिहार जैसे राज्य में जगह बनाना है. हो सकता है कि विधानसभा चुनावों में बिहार में पार्टी को अपेक्षित सफलता न मिले पर अगले शहरी निकायों में चुनाव के लिए बेस जरूर तैयार हो जाएगा. बिहार में 243 सीटों पर स्वतंत्र रूप से लड़ना इस दिशा में एक कदम है. आम आदमी पार्टी गुजरात की तरह पहले बिहार में शहरी स्थानीय निकायों में कुछ सीट जीतकर चर्चा में आ सकती है. 

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AAP का इस चुनाव में सारी विधानसभा सीटें लड़ने का लक्ष्य बिहार में संगठनात्मक ढांचा मजबूत करना भी है. पहली सूची में 11 उम्मीदवारों (जैसे किशनगंज से आशरफ आलम, बेगूसराय से डॉ. मीरा सिंह) का चयन स्थानीय मुद्दों और विविधता पर आधारित है. 
 दिल्ली और पंजाब में सफलता के बाद, AAP बिहार जैसे बड़े राज्य में राष्ट्रीय विकल्प के रूप में उभरना चाहती है. इस लक्ष्य के लिए संगठन विस्तार महत्वपूर्ण है, क्योंकि बिहार में पार्टी का मौजूदा जमीनी आधार कमजोर है.

AAP का लक्ष्य शहरी युवाओं और प्रवासी बिहारियों को जोड़कर भविष्य के लिए आधार बनाना है.  यदि AAP 1-2% वोट शेयर भी हासिल करती है, तो यह संगठन विस्तार के लिए नींव रखेगी.

दिल्ली मॉडल की अपील बिहारियों को कितना अट्रैक्ट करेगी?

आम आदमी पार्टी (AAP) का दिल्ली मॉडल, जो शिक्षा, स्वास्थ्य, मुफ्त बिजली-पानी और भ्रष्टाचार-मुक्त शासन पर आधारित है, बिहार में सीमित लेकिन अपील तो रखता है.  बिहार के शहरी और अर्ध-शहरी मतदाता, विशेष रूप से युवा, मध्यम वर्ग और प्रवासी मजदूर, जो दिल्ली में AAP की नीतियों (जैसे मुफ्त बिजली, बेहतर स्कूल, मोहल्ला क्लिनिक) से परिचित हैं, इस मॉडल से आकर्षित हो सकते हैं. 

 बिहार में बेरोजगारी (14% से अधिक), खराब शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति AAP के वादों को प्रासंगिक बनाती है. हालांकि, बिहार की जातिगत राजनीति (यादव-मुस्लिम, ईबीसी, ऊपरी जातियां) और ग्रामीण मतदाताओं का दबदबा (80% से अधिक) दिल्ली मॉडल की अपील को सीमित करता है. ग्रामीण बिहार में मतदाता जाति, स्थानीय प्रभाव और एनडीए की फ्रीबीज (महिलाओं को 10,000 रुपये, मुफ्त बिजली) से ज्यादा प्रभावित होते हैं. 

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एनडीए और महागठबंधन में किसे फायदा पहुंचाएगी पार्टी?

AAP को भले ही अधिक सीटें जीतने की उम्मीद न हो, लेकिन वह महागठबंधन (आरजेडी-कांग्रेस) के 2-4% वोट काटकर एनडीए को अप्रत्यक्ष लाभ पहुंचा सकती है, खासकर शहरी सीटों पर.  यह रणनीति पार्टी को चर्चा में रखने और भविष्य के लिए आधार बनाने में मदद कर सकती है.

AAP का संगठन ग्रामीण क्षेत्रों में कमजोर है, पर पटना, मुजफ्फरपुर, बेगूसराय जैसे क्षेत्रों में AAP 2-4% वोट शेयर से इनकार नहीं किया जा सकता है. आम आदमी पार्टी यहां ऐसे कैंडिडेट भी दे रही है जो कई सालों से सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय हैं. जाहिर है कि ऐसे लोगों का कुछ अपना वोट बैंक भी है.

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