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तेजस्वी यादव का नीतीश कुमार पर नेपोटिज्म को बढ़ावा देने का आरोप हजम क्यों नहीं हो रहा है?

तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार से परिवारवाद की राजनीति पर सवाल पूछा है, जबकि वो खुद भी उन्हीं सवालों के कठघरे में खड़े हैं. बिहार में बोर्ड और आयोगों में नेताओं के रिश्तेदारों की नियुक्तियों को लेकर नीतीश कुमार पर तेजस्वी यादव ने जोरदार हमला बोला है, लेकिन जो हालात हैं, ये बैकफायर भी कर सकता है?

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नीतीश कुमार को तेजस्वी यादव उन सवालों के कठघरे में घसीट रहे हैं, जहां वो पहले से खुद खड़े हैं.
नीतीश कुमार को तेजस्वी यादव उन सवालों के कठघरे में घसीट रहे हैं, जहां वो पहले से खुद खड़े हैं.

तेजस्वी यादव का नीतीश कुमार पर नेपोटिज्म का आरोप बिल्कुल वैसा ही है, जैसा तेलंगाना जाकर राहुल गांधी बीआरएस नेता के. चंद्रशेखर राव पर लगा डालते हैं. सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि तेजस्वी यादव और राहुल गांधी भला कैसे राजनीति में आये हैं. 

और सिर्फ ये दोनों ही क्यों, देश का कौन ऐसा राज्य है जहां ऐसी राजनीति देखने को नहीं मिलती है. ऐसे मामलों पर गौर करें, तो यूपी और पश्चिम बंगाल से लेकर महाराष्ट्र और तमिलनाडु तक एक जैसा नजारा देखने को मिलता है. जिस तरह से मायावती और ममता बनर्जी अपने घर-परिवार को राजनीति में बढ़ा रही हैं, नीतीश कुमार तो सबसे अलग नजर आते हैं. 

बेशक नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार की राजनीति में एंट्री की कुछ दिनों पहले जोरदार चर्चा रही है, लेकिन अब तक न तो कोई औपचारिक रूप सामने आया है, और न ही कोई मजबूत संकेत ही मिला है. नीतीश कुमार बीजेपी के साथ गठबंधन की सरकार चलाते हैं - और, अब तो बिहार दौरे पर हाल ही में गये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बीजेपी वालों को ही बोल दिया है कि राजनीति में जमींदारी प्रथा खत्म होनी चाहिये.

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असल में, बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव चुनावों से पहले बिहार के कुछ बोर्ड और आयोगों के पुनर्गठन के बाद ऐसे लोगों को सदस्य बनाये जाने पर ऐतराज जता रहे हैं, जो किसी न किसी नेता या सीनियर अफसर के परिवार के सदस्य हैं - चुनाव से ठीक पहले बिहार सरकार के ऐसे फैसलों से बेहद खफा तेजस्वी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अब एक 'जमाई आयोग' बना डालने की सलाह दे डाली है. 

'जमाई आयोग' बनाने की सलाह क्यों दे रहे हैं तेजस्वी यादव?

तेजस्वी यादव ये सलाह इसलिए दे रहे हैं, क्योंकि बिहार सरकार की तरफ से अलग-अलग आयोगों में सत्ताधारी दल के कई नेताओं के जमाई एडजस्ट किये गये हैं. आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने लोक जनशक्ति पार्टी के संस्थापक रहे रामविलास पासवान के जमाई मृणाल पासवान, केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी के दामाद देवेंद्र कुमार और बिहार सरकार के मंत्री अशोक चौधरी के दामाद सायन कुणाल को विभिन्न बोर्ड और आयोगों का सदस्य बनाये जाने पर सवाल उठाया है. 

पूर्व डिप्टी सीएम ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सचिव रिटायर्ड आईएएस अधिकारी दीपक कुमार की पत्नी को राज्य महिला आयोग का सदस्य बनाये जाने पर भी सवाल खड़ा किया है. पूछा है, मुख्यमंत्री के सचिव के पास आखिर ऐसी कौन सी काबिलियत है? वो कितनी बड़ी शिक्षाविद हैं, जो उन्हें महिला आयोग में सदस्य बना दिया गया. क्या जनता दल यूनाइटेड और बीजेपी में कोई योग्य कोई महिला नेता और कार्यकर्ता नहीं है?

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तेजस्वी यादव से पहले उनकी बहन रोहिणी आचार्य ने भी सोशल साइट एक्स पर ये सवाल उठाया है. रोहिणी आचार्य ने लिखा है, 'पति की पहचान छुपा कर , पता बदल कर बिहार के सुपर-सीएम ने अपनी पत्नी को महिला आयोग का सदस्य बनवा दिया और बस कहने भर के सीएम साहेब को भनक भी नहीं लगी.'

सोशल मीडिया पर लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य की पोस्ट पर काफी लोगों ने कमेंट किया है. लोग लालू यादव के कार्यकाल में हुई घटनाओं की याद दिला रहे हैं. कुछ लोगों की प्रतिक्रिया तो तेजस्वी यादव के सवाल का भी लगती है, जिसमें सचिव की पत्नी की काबिलियत पर आरजेडी नेता ने सवाल उठाया है. 

ये तो आरोप ही अजीब है

निश्चित तौर पर ये नियुक्तियां सवालों के घेरे में हैं, लेकिन सवाल तो ये भी उठता है कि अगर बिहार की राजनीति में नेपोटिज्म नहीं होती तो क्या जो राजनीति तेजस्वी यादव कर रहे हैं, ऐसा मौका मिल पाता? अगर गठबंधन का दबाव नहीं होता तो तेज प्रताप यादव को क्या नीतीश कुमार मंत्री बनाये होते? रोहिणी आचार्य तो चुनाव नहीं जीत पाईं, लेकिन मीसा भारती तो सांसद बनी हुई हैं ही. 

और तेजस्वी यादव भी अफसर की पत्नी की योग्यता पर तो वैसे ही सवाल उठा रहे हैं, जैसे तीन साल से प्रशांत किशोर जन सुराज अभियान में उनको 'नौवीं फेल' कहते आ रहे हैं. ऐसा तो नहीं कहा जा सकता कि नीतीश कुमार के फैसलों पर तेजस्वी यादव सवाल नहीं उठा सकते, लेकिन जो खुद ऐसे सवालों के कठघरे में खड़ा हो, उसका सवाल उठाना अजीब तो लगता ही है.  

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तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार से सत्ताधारी नेताओं के करीबियों को बोर्ड आयोग में शामिल किए जाने पर सवाल उठाया है. नीतीश कुमार के करीबी अफसरों पत्नियों को एडजस्ट किये जाने और अधिकारियों के बच्चों की कंसलटेंसी एजेंसी को सरकारी सेवा में नियुक्त किये जाने को लेकर भी सवाल उठाया है.

लेकिन क्या नीतीश कुमार ने ऐसा कोई काम किया है, जिसे लेकर उन पर नेपोटिज्म का आरोप लगाया जा सके. केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी तो नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार को राजनीति में लाये जाने की भी पैरवी कर चुके हैं. और जरा ध्यान दीजिये, उनके दामाद को तो नीतीश कुमार सरकारी व्यवस्था में मौका दे चुके हैं, लेकिन अपने बेटे के लिए तो अभी तक कुछ भी नहीं कहा है. 

बीते कुछ दिनों में कई मौके पर निशांत कुमार को ऐसी बातें करते देखा गया है,  जो राजनीतिक बयान की कैटेगरी में रखी जा सकती हैं, लेकिन क्या नीतीश कुमार ने कभी कुछ बोला है. बाद में क्या होगा, बात और है, लेकिन अभी तो नीतीश कुमार को संदेह का लाभ मिलना ही चाहिये. कुदरती न्याय व्यवस्था तो यही बताती है. 

परिवारवाद की राजनीति पर बीजेपी पहले से ही हमलावर

तेजस्वी यादव ने तो साफ तौर पर चेतावनी दे डाली है, जब समय आएगा तो किसी को नहीं छोड़ा जाएगा. चुनाव होने तक सब कुछ देखेंगे. तेजस्वी यादव का कहना है कि वो बीजेपी और एनडीए के लोगों के गिरते स्तर को देख रहे हैं.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो पहले से ही परिवारवाद की राजनीति के खिलाफ मुहिम चला रहे हैं. पहले तो वो राजनीतिक विरोधियों की परिवारवाद की राजनीति की आलोचना करते थे, हाल के अपने बिहार दौरे में तो मोदी ने बीजेपी को ही नसीहत दे डाली. बीजेपी नेताओं से मोदी ने बड़े ही साफ शब्दों में कहा था, ‘राजनीति में परिवारवाद नहीं होना चाहिए... जमींदारी प्रथा नहीं होनी चाहिए... ऐसा न हो कि आप नहीं तो हमारे पुत्र-पुत्री… ये नहीं होना चाहिए.

2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी ने तेजस्वी यादव को 'जंगलराज का युवराज' कह कर संबोधित किया था. और, नीतीश कुमार भी लालू यादव और राबड़ी देवी के शासन में विकास के नाम पर उनको बच्चों की संख्या गिना रहे थे. धीरे धीरे माहौल बिल्कुल वैसे ही बनता जा रहा है. विधानसभा चुनाव से ठीक पहले तेजस्वी यादव ने ऐसे मामले में कदम बढ़ाया है, जो बैकफायर भी कर सकता है.

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