शशि थरूर ने एक अंतराल के बाद गांधी परिवार को फिर से निशाने पर ला दिया है. ऐसे समय जब बिहार में चुनाव हो रहे हैं, शशि थरूर ने राहुल गांधी के साथ साथ महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव को भी कठघरे में खड़ा कर दिया है.
शशि थरूर ने देश में परिवारवाद की राजनीति पर एक लेख लिखा है, जिसमें राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और तेजस्वी यादव सहित देश के ऐसे सभी नेताओं का जिक्र है, जो वंशवाद की राजनीति की बदौलत मार्केट में बने हुए हैं. परिवारवाद की राजनीति हमेशा ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के निशाने पर रही है - और चुनाव के ऐन मौके पर शशि थरूर ने बीजेपी को मसाला दे दिया है.
अव्वल तो शशि थरूर की लिस्ट में बिहार से चिराग पासवान का भी नाम शामिल है, लेकिन राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को टॉपर के तौर पर पेश किया है. बीजेपी प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने शशि थरूर के लिए ये लेख लिखना जोखिमभरा बताया है. शहजाद पूनावाला का दावा किया है कि वो भी ऐसी सच्चाई बताने का खामियाजा भुगत चुके हैं.
शशि थरूर के मुताबिक, भारतीय राजनीति में परिवार, असल में, एक प्रभावी ब्रांड का काम करता है, लेकिन आगाह भी किया है, 'वंशानुगत राजनीति भारतीय लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा पैदा करती है.'
परिवारवाद की राजनीति पर शशि थरूर का प्रहार
शशि थरूर भारत में परिवारवाद की राजनीति का प्रभाव कश्मीर से कन्याकुमारी तक देख रहे हैं, लेकिन पहले नंबर पर जिक्र गांधी परिवार का ही आता है. शशि थरूर ने ऐसे नेताओं का भी जिक्र किया है, जो पिता या किसी रिश्तेदार की बदौलत राजनीति में अपनी जगह बनाने में सफल रहे हैं.
1. थरूर की लिस्ट में गांधी परिवार सबसे ऊपर
शशि थरूर का कहना है कि नेहरू-गांधी परिवार दशकों तक भारतीय राजनीति पर दबदबा बनाए रखा. और, अब भी राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के रूप में ये बना हुआ है. थरूर ने देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी तक का नाम लेकर अपने लेख में जिक्र किया है.
कांग्रेस सांसद का मानना है कि निश्चित तौर पर नेहरू-गांधी परिवार देश की आजादी की लड़ाई के इतिहास से जुड़ा हुआ है, लेकिन इसी परिवार ने ये भी धारणा बना दी है कि परिवारवाद राजनीति में जन्मसिद्ध अधिकार भी मुहैया करा देता है. और, ये विचार हर पार्टी, हर क्षेत्र और हर स्तर पर भारतीय राजनीति में गहराई तक जगह बना चुका है.
शशि थरूर लिखते हैं, नेहरू-गांधी परिवार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ा हुआ है, लेकिन वंशानुगत उत्तराधिकार पूरे राजनीतिक परिदृश्य में एक जैसा देखा जा सकता है. जनता दल के गठन में प्रभावी भूमिका निभाने वाले बीजू पटनायक के बाद उनके बेटे नवीन पटनायक ने उनके निधन से खाली लोकसभा सीट पर जीत हासिल की, और बाद में बीजू जनता दल बनाया. पिता के पदचिह्नों पर चलते हुए नवीन पटनायक ओडिशा के मुख्यमंत्री बने, और दो दशक से ज्यादा समय तक कुर्सी पर काबिज भी रहे.
2. चिराग पासवान भी कठघरे में आए
बिहार से शशि थरूर ने केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान का नाम लिया है, जो लोक जनशक्ति पार्टी के संस्थापक रामविलास पासवान के बेटे हैं. फिलहाल बीजेपी के साथ वो एनडीए में हैं, और बिहार की 29 सीटों पर सहयोगी दलों के साथ मिलकर चुनाव भी लड़ रहे हैं.
बिहार की राजनीति में परिवारवाद की राजनीतिक विरासत संभाल रहे तेजस्वी यादव महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद का चेहरा भी हैं. लालू यादव अपनी राजीतिक विरासत छोटे बेटे तेजस्वी यादव को तो पहले ही सौंप चुके थे, लेकिन सोशल मीडिया पर कुछ तस्वीरें आ जाने के बाद बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को पार्टी आरजेडी और परिवार से भी बेदखल कर दिया था.
चुनाव से पहले एनडीए के कई नेता नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार को भी राजनीति में लाए जाने की वकालत कर रहे थे, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. चुनाव से काफी पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार बीजेपी के नेताओं को भी राजनीति में जमींदारी प्रथा खत्म करने की सलाह दी थी.
3. कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक जैसा हाल
शशि थरूर ने जम्मू-कश्मीर के अब्दुल्ला परिवार से लेकर तमिलनाडु के स्टालिन परिवार तक का नाम गिनाया है. मिसाल के तौर पर महाराष्ट्र में शिवसेना बनाने वाले बाल ठाकरे ने कमान बेटे उद्धव ठाकरे को ही सौंपी, राज ठाकरे किनारे कर दिए गए. उद्धव ठाकरे के बाद अब उनके बेटे आदित्य ठाकरे उत्तराधिकार के इंतजार में हैं. आदित्य ठाकरे पिता के मुख्यमंत्री रहते महाविकास आघाड़ी सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं.
वैसे ही तमिलनाडु में एमके स्टालिन मुख्यमंत्री हैं, और उनके बेटे उदयनिधि स्टालिन डिप्टी सीएम हैं. स्टालिन पूर्व मुख्यमंत्री और डीएमके नेता एम. करुणानिधि के बेटे हैं. करुणानिधि की बेटी कनिमोझी भी सांसद हैं, लेकिन पोते उदयनिधि को उत्तराधिकारी बनाया गया है. उत्तर प्रदेश की राजनीति में अखिलेश यादव परिवारवाद की राजनीति की ही देन हैं. मुलायम सिंह यादव ने कैसे समाजवादी पार्टी का उत्तराधिकार सौंपा, सबने देखा.
जम्मू-कश्मीर में अब्दुल्ला परिवार की तीन पीढ़ियां और मुफ्ती खानदान की दो पीढ़ियां हावी रही हैं. उमर अब्दुल्ला तो फिलहाल जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री ही हैं, जो अपने दादा शेख अब्दुल्ला और पिता फारूक अब्दुल्ला की विरासत आगे बढ़ा रहे हैं. महबूबा मुफ्ती भी अपने पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद की सियासी विरासत संभाल रही हैं.
शशि थरूर ने पंजाब में बादल परिवार और तेलंगाना में केसीआर परिवार की तरफ ध्यान दिलाया है. कैसे सुखबीर बादल अब अपने पिता प्रकाश सिंह बादल बनाए शिरोमणि अकाली दल पर काबिज हो गए हैं. लेकिन, तेलंगाना में के. चंद्रशेखर राव के परिवार में बेटे और बेटी कविता के बीच उत्तराधिकार की लड़ाई चल रही है. ऐसी लड़ाई तो लालू परिवार में भी शुरू हो गई है. बिहार चुनाव के बीच तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव आमने सामने आ गए हैं.
4. परिवारवाद की राजनीति के कई रूप हैं
शशि थरूर का मानना है कि वंशवाद की राजनीति कुछ प्रमुख परिवारों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि ये व्यवस्था में गहराई तक उतर गई है. गांवों की पंचायत से लेकर देश की संसद तक. शशि थरूर ने लिखा है, मालूम होता है कि 149 परिवारों के कई सदस्य राज्यों की विधानसभाओं में प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसमें 11 केंद्रीय मंत्री और 9 मुख्यमंत्री भी पारिवारिक संबंधों वाले ही हैं.
थरूर का कहना है, 2009 के चुनावों के अध्ययन में पता चला है कि 45 साल से कम उम्र के दो-तिहाई सांसदों का पहले से ही कोई नजदीकी रिश्तेदार राजनीति में था, और युवा सांसदों में तकरीबन सभी ने संसदीय सीटें विरासत में पा ली. सभी पार्टियों में 70 फीसदी महिला सांसद परिवारवाद की राजनीतिक पृष्ठभूमि से आईं. ममता बनर्जी और मायावती जैसी महिला नेताओं के पास सीधे सीधे कोई उत्तराधिकारी नहीं हैं, लेकिन दोनों ने अपने भतीजों पर ही भरोसा जताया है.
जैसे ममता बनर्जी ने अभिषेक बनर्जी को उत्तराधिकारी बनाया है, मायावती ने भी आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी बनाया था, लेकिन बाद में हटा भी दिया. फिलहाल आकाश आनंद बीएसपी के मुख्य समन्वयक हैं.
सितंबर, 2017 में गुजरात चुनाव से पहले राहुल गांधी विदेश दौरे पर थे, और ऐसे कुछ इवेंट में शामिल हुए जो राजनीतिक विमर्श को लेकर आयोजित किए गए थे. बर्कले के एक विश्वविद्यालय के कार्यक्रम में राहुल गांधी का कहना था, 'अखिलेश यादव वंशवादी हैं, एमके स्टालिन राजवंशी हैं, धूमल के बेटे (अनुराग ठाकुर) भी वंशवादी ही हैं... यहां तक कि अभिषेक बच्चन भी वंशवादी ही हैं. मेरा मतलब है कि भारत ऐसे ही चलता है... इसलिए, मेरे पीछे मत पड़िए क्योंकि पूरा देश इसी तरीके से चल रहा है.'
तब राहुल गांधी का ये भी कहना था कि वो चीजों को बदलने की कोशिश कर रहे हैं, और उनकी पार्टी में ऐसे भी लोग हैं जिनका ऐसा कोई बैकग्राउंड नहीं रहा है. बोले, 'लेकिन, ऐसा भी है कि जिनके पिता, दादा या दादी राजनीति में ही रहे हैं. मैं बहुत कुछ कर भी नहीं सकता.'
बेशक राहुल गांधी ने बड़ी ही संजीदगी से भारतीय राजनीति की आवश्यक बुराई बन चुके परिवारवाद को स्वीकार किया था, लेकिन जब 2023 के तेलंगाना विधानसभा चुनाव में वो केसीआर पर परिवारवाद की राजनीति करने का इल्जाम लगा रहे थे तो उनका डबल स्टैंडर्ड समझ से बाहर लगा.