बिहार दौरे पर राहुल गांधी तभी जाने लगे थे, जब दिल्ली में विधानसभा के चुनाव हो रहे थे. जब बिहार में चुनाव का माहौल परवान चढ़ने लगा, तो गुजरात जाकर कांग्रेस के जिलाध्यक्षों की मास्टरक्लास शुरू कर दिए थे. गुजरात के बाद मध्य प्रदेश में चुनाव होता है. लिहाजा पचमढ़ी पहुंच गए, अब एमपी के जिलाध्यक्षों को चुनाव जीतने के टिप्स देने लगे हैं - और अभी बिहार में चुनावी प्रक्रिया खत्म भी नहीं हुई है कि उत्तर प्रदेश पर काम शुरू हो गया है.
बिहार के बाद तो 2026 में पश्चिम बंगाल, केरल, असम और तमिलनाडु जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. मध्य प्रदेश में तो 2028 में चुनाव होंगे, और 2027 में गुजरात में भी उत्तर प्रदेश के बाद ही होंगे. लेकिन, बंगाल, केरल और असम को छोड़कर राहुल गांधी अभी से उत्तर प्रदेश चुनाव के बारे में सोचने लगे हैं, तो निश्चित तौर पर कुछ खास तरह की तैयारी होगी.
बीच बीच में एमपी और गुजरात के दौरे होते रहेंगे, लेकिन बिहार के बाद राहुल गांधी का ध्यान पूरी तरह उत्तर प्रदेश पर फोकस होने वाला है, ऐसा लगता है. उत्तर प्रदेश में भी नजर राज्य के ओबीसी और दलित वोटर पर टिकी हुई है - और राहुल गांधी की तैयारियों से तो ऐसा ही लगता है कि रणनीति काफी हद तक बिहार चुनाव जैसी ही होने वाली है.
बिहार में तो राहुल गांधी की राजनीति तेजस्वी यादव के इर्द-गिर्द ही घूमती नजर आई थी, तो क्या यूपी में वही सब अखिलेश यादव के साथ दोहराया जाने वाला है - और बड़ा सवाल ये है कि क्या मुमकिन भी है?
राहुल गांधी की ओबीसी और दलित वोटर पर नजर
बिहार में नई सरकार का गठन होते होते, हो सकता है राहुल गांधी उत्तर प्रदेश में डेरा डाले हुए देखे जाएं. यूपी कांग्रेस की तरफ से संवाद कार्यक्रम आयोजित करने की तैयारी चल रही है. ये कार्यक्रम मंडल स्तर पर और यूपी के कुछ बड़े जिलों में हो सकते हैं, ऐसी खबर आ रही है.
ये विशेष संवाद कार्यक्रम नवंबर के आखिरी या दिसंबर के पहले हफ्ते में शुरू हो सकते हैं. संवाद कार्यक्रमों का मकसद सामाजिक न्याय और जातीय जनगणना जैसे मुद्दों को हाइलाइट करना है, और नेतृत्व खुद राहुल गांधी करेंगे. बताते हैं, ऐसे करीब दो दर्जन संवाद कार्यक्रम पूरे राज्य में कराए जा सकते हैं.
शुरुआती दौर में ऐसे संवाद कार्यक्रम बिहार में भी कराए गए थे. बिहार के आयोजनों में जो कमियां रह गई थीं, यूपी में उनको ठीक करने की पूरी कोशिश होगी. मई, 2025 में, राहुल गांधी का दरभंगा में दलित छात्रों से मिलने का कार्यक्रम था. वो आंबेडकर छात्रावास में छात्रों के साथ संवाद करना चाहते थे, लेकिन प्रशासन ने अनुमति नहीं दी. बाहर से छात्रों से मिलकर लौट गए.
कांग्रेस की तरफ से 'पलायन रोको, नौकरी दो' यात्रा निकाली जा रही थी. कन्हैया कुमार नेतृत्व कर रहे थे. कन्हैया कुमार को सपोर्ट करने के लिए राहुल गांधी बेगूसराय भी गए थे. पटना के कांग्रेस दफ्तर सदाकत आश्रम में भी कुछ संवाद कार्यक्रम हुए थे. होने को तो पटना में कांग्रेस की एक्सटेंडेड कार्यकारिणी भी हुई थी - लेकिन, उसके बाद तो जैसे राहुल गांधी ने दूरी ही बना ली.
यूपी के संवाद कार्यक्रम का मकसद राज्य के ओबीसी और दलित वोटर से मिलकर कनेक्ट होने की कोशिश समझ में आ रही है. दलित वोटर से जुड़ने में तो कोई दिक्कत नहीं लगती. मायावती को तो कांग्रेस से स्वाभाविक दिक्कत है. यूपी में तो कांग्रेस कुछ भी करे, बीएसपी के हमले झेलने ही हैं - लेकिन, ओबीसी वोटर की बात आने पर टकराव की काफी संभावना लगती है.
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के ओबीसी वोटर से संवाद कायम करने की सूरत में समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव का रिएक्शन देखना दिलचस्प होगा.
टार्गेट यूपी, या अखिलेश यादव?
लोकसभा चुनाव के आधार पर राहुल गांधी आरजेडी पर दबाव बना रहे थे, ताकि सीटों के बंटवारे में ज्यादा हासिल किया जा सके, लेकिन यूपी में तो समाजवादी पार्टी और कांग्रेस में कोई तुलना ही नहीं है. सीटों का बंटवारा तो हुआ नहीं, कई सीटों पर फ्रेंडली फाइट भी हुई है. आखिर में तो यही हुआ है कि लालू यादव कांग्रेस पर दबाव डालकर अपनी पूरी बात मनवा लिए. तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा भी घोषित करा दिया, और दोस्ताना मैच वाली सीटों से कांग्रेस उम्मीदवारों के नामांकन भी वापस करा दिए - आरजेडी ने अपना एक उम्मीदवार नहीं हटाया.
बिहार में तो चुनाव नजदीक आते आते वोट चोरी का मुद्दा लगा जैसे गायब ही हो गया. जैसे तैसे राहुल गांधी वोट चोरी का मुद्दा उठाते रहे, लेकिन तेजस्वी यादव की तरफ से खास तवज्जो नहीं मिली. राहुल गांधी ने तो बिहार में पहले फेज की वोटिंग से ठीक पहले हरियाणा में वोट चोरी के मुद्दे पर प्रेस कांफ्रेंस भी की गई, और केस स्टडी दिखाई गई.
यूपी में भी बिहार की तर्ज पर बड़े पैमाने पर एसआईआर के खिलाफ मुहिम चलाए जाने का प्लान है. बताते हैं कि अखिलेश यादव के साथ राहुल गांधी वैसे ही कैंपेन चला सकते हैं जैसे बिहार में तेजस्वी यादव के साथ वोटर अधिकार यात्रा निकाली थी. यूपी में बिहार जैसी यात्रा तो हो सकती है, लेकिन अखिलेश यादव भी राहुल गांधी को तेजस्वी यादव की ही तरह अहमियत देंगे, स्वाभाविक रूप से संदेह लगता है.
यूपी में तो राहुल गांधी के पास कन्हैया कुमार और पप्पू यादव जैसा कोई एक्स्ट्रा सहयोगी भी नहीं है. यूपी कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय के रूप में एक मजबूत नेता जरूर है, लेकिन राजनीतिक तौर पर वो भी कोई प्रभाव नहीं डाल पाते. जब से लोकसभा चुनाव लड़ने लगे, विधायक भी नहीं बन पाते.
बेशक जो भी ऐसी मुहिम चलाई जाएगी, बीजेपी के खिलाफ होगी. लेकिन, वो क्या बिहार की वोटर अधिकार यात्रा से अलग होगी. वोटर अधिकार यात्रा में तो यही देखा गया कि राहुल गांधी कदम कदम पर तेजस्वी यादव को पीछे और खुद आगे बनाए रखने की कोशिश कर रहे थे - लेकिन क्या बिहार की तरह यूपी में भी ये दोहराया जा सकेगा?
क्या अखिलेश यादव यूपी में राहुल गांधी को तेजस्वी यादव की तरह बर्दाश्त कर पाएंगे?