निशिकांत दुबे के बयान पर तो बवाल मचा ही हुआ था, राहुल गांधी भी राजनीतिक चर्चाओं के ट्रेंड में टॉप पर ही हैं. राहुल गांधी ने कोई नई बात नहीं कही है, फर्क बस जगह का है, जिससे उसके मायने बदल गये हैं.
बीजेपी ने तो निशिकांत दुबे की सुप्रीम कोर्ट पर टिप्पणी से दूरी बना ली है, लेकिन कांग्रेस नेता राहुल गांधी के पक्ष में मोर्चा संभाल लिया है. भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा ने निशिकांत दुबे की टिप्पणी को उनका निजी विचार बताकर पल्ला झाड़ लिया है.
किस नेता ने किस संस्था पर क्या कहा?
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर आरोप लगाया है कि वो सरकार के सामने समझौता कर चुका है, और उसके सिस्टम में कुछ गड़बड़ी की आशंका जताई है.
राहुल गांधी का सीधा इल्जाम है, महाराष्ट्र में जितने एडल्ट हैं, विधानसभा चुनाव में उनकी तादाद के मुकाबले में काफी ज्यादा लोगों ने वोट डाला है.
बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा कहते हैं, विदेशी धरती पर देश का अपमान करना, राहुल गांधी की पुरानी आदत है. वे लंबे समय से ऐसा करते आ रहे हैं.
और, झारखंड के गोड्डा से बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे का कहना है, देश में जितने गृह युद्ध हो रहे हैं, उसके लिए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया संजीव खन्ना ज़िम्मेदार हैं.
निशिकांत दुबे को बीजेपी में अंदर ही अंदर सपोर्ट मिल रहा है, लेकिन सार्वजनिक तौर पर निजी बयान बता कर पल्ला झाड़ लिया गया है. जेपी नड्डा ने साफ साफ बोल दिया है कि बीजेपी निशिकांत दुबे के बयान से सहमत नहीं है.
दोनो नेताओं के बयान में कई चीजें कॉमन हैं
न्यायपालिका और चुनाव आयोग दोनो का निष्पक्ष होना और उनकी स्वायत्तता कायम रहना लोकतंत्र और देश दोनो के हित में है - लेकिन बारी बारी ये दोनो ही संस्थाएं नेताओं के निशाने पर आये हैं.
1. निशिकांत दूबे ने सुप्रीम कोर्ट पर जो सवाल उठाया है, वो बीजेपी की रणनीति का ही हिस्सा लगता है, भले ही औपचारिक तौर पर जेपी नड्डा ने पल्ला झाड़ लिया हो. निशिकांत दुबे ने तो उसी बात को आगे बढ़ाया है, जिसकी शुरुआत उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ की तरफ से हुई है.
2. न्यायपालिका पर ये प्रहार विधायिका के साथ रस्साकशी का ही रिजल्ट है. ये कॉलेजियम सिस्टम और NJAC दोनो के बीच लंबे अर्से से जारी टकराव का ही नतीजा है. न्यापालिका में होने वाली नियुक्तियों पर सवाल उठते रहने के बावजूद वहां सुधार पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है, जबकि सुधार की काफी गुंजाइश नजर आती है.
3. और, ये भी है कि न्यायपालिका में विधायिका को दखल देने का मौका ही नहीं मिल रहा है. जो व्यवस्था बनी है, उसमें कई मसले ऐसे हैं जिन पर दोनो पक्ष मन मसोस कर रह जाते हैं. यहां मन मसोस कर रहे जाने को मनमानी करने का मौका न मिलने के तौर पर भी समझा जा सकता है.
चुनाव आयोग, न्यायपालिका और राजनीतिक दखलंदाजी
1. सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश से मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में अपनी भूमिका भी बढ़ा दी थी, लेकिन केंद्र सरकार ने अपने संसदीय अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए उसे पूरी तरह पलट दिया.
2. सुप्रीम कोर्ट का आदेश था कि मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति वाली कमेटी में प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता के साथ साथ सुप्रीम कोर्ट का भी प्रतिनिधित्व रहना चाहिये, लेकिन केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के जज की जगह केंद्र सरकार के मंत्री को कमेटी में डाल दिया है - और जब विपक्ष के नेता की आपत्ति जताने के अलावा न कोई अधिकार है, न ही कोई भूमिका तो नियुक्ति तो पूरी तरह सरकार के हाथ में ही हुई.
3. न्यायपालिका के मामले में सरकार के पास ऐसा कोई इंतजाम नहीं है. सिवा, कॉलेजियम की सिफारिशी लिस्ट को थोड़े दिनों तक लटकाये रखने के.
जिस तरह निशिकांत दुबे न्यायपालिका पर सवाल उठा रहे हैं, उसी तरह राहुल गांधी चुनाव आयोग पर. कांग्रेस और बीजेपी नेता दोनो के अपने अपने स्वार्थ और मजबूरियां हैं, जैसे तैसे भड़ास निकाल रहे हैं - और उस होने वाला रिएक्शन स्वाभाविक ही है.
राहुल गांधी और निशिकांत की बातों के मायने
1. निशिकांत दुबे ने न्यायपालिका पर सवाल देश के भीतर ही उठाया है, और राहुल गांधी ने विदेशी धरती पर जाकर. ये दोनो मामले ऐसे हैं जिन पर रिएक्शन संस्थाओं की तरफ से आने चाहिये, भले ही वो किसी संगोष्ठी या कार्यक्रम के जरिये आये.
2. कांग्रेस की आपत्ति भी बहुत हद तक सही ही लगती है, आखिर राहुल गांधी की चुनाव आयोग पर टिप्पणी पर बीजेपी क्यों रिएक्ट कर रही है? जवाब तो चुनाव आयोग की तरफ से आना चाहिये. और, ये देखा भी गया है कि चुनाव आयोग नेताओं के आरोपों पर रिएक्ट भी करता है, और जवाब भी देता है - भले ही वो शेरो-शायरी वाले अंदाज में ही क्यों न हो.
महाराष्ट्र चुनाव को लेकर विपक्ष के कई नेता सवाल उठाते रहे हैं, राहुल गांधी भी उनमें शामिल हैं. सिर्फ एक बात में अंतर है, राहुल गांधी ने चुनाव आयोग की आलोचना विदेशी धरती पर कर दी है, और यही वजह है कि बीजेपी को घेरने का मौका मिल गया है.
सुप्रीम कोर्ट पर टिप्पणी के मामले में निशिकांत दुबे कुछ ज्यादा ही आगे बढ़ गये हैं, वरना एक बार तो केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने भी सबरीमाला मंदिर केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर रिएक्ट किया था. तब अमित शाह का कहना था कि देश की सबसे बड़ा अदालत को फैसले भी ऐसे ही देने चाहिये. निशिकांत दुबे अकेले पड़ गये हैं, जबकि बीजेपी के अंदर सभी मन से सपोर्ट कर रहे हैं.