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राहुल गांधी के राज में कांग्रेस जिलाध्यक्ष भीड़ भी नहीं जुटा पाएगा तो मंत्री कैसे बनेगा?

मल्लिकार्जुन खड़गे की रैली में भीड़ न होने का ठीकरा बक्सर के जिलाध्यक्ष के सिर फोड़ा गया है - अगर ऐसा ही एक्शन चुनावी हार के लिए किसी बड़े नेता के खिलाफ हुआ होता, तो कांग्रेस की ये हालत नहीं होती.

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बक्सर जैसी बलि तो कभी भी दी जा सकती है, लेकिन कांग्रेस का उससे कोई भला नहीं होने वाला है.
बक्सर जैसी बलि तो कभी भी दी जा सकती है, लेकिन कांग्रेस का उससे कोई भला नहीं होने वाला है.

राहुल गांधी अपने साथ साथ कांग्रेस में भी बड़े बदलाव लाने में जुट गये हैं. भारत जोड़ो यात्रा के बाद से राहुल गांधी को लगातार सक्रिय देखा गया है, ये बदलाव नहीं तो क्या है. 

और ये बदलाव वो ग्राउंड लेवल पर चाहते हैं. ऐसा वो लंबे अर्से से चाहते रहे हैं. आमूल चूल बदलाव. बदलावों की कोशिश ऊपर से ही होती रही है, लेकिन जमीनी स्तर तक उसका असर नहीं हो पाता. तभी तो राष्ट्रीय स्तर और प्रदेश स्तर के बाद, कांग्रेस नेतृत्व अब जिला स्तर पर फोकस कर रहा है.

बक्सर जिला कांग्रेस के अध्यक्ष मनोज कुमार पांडेय की बर्खास्तगी भी बदलाव के मकसद से की जा रही कोशिशों से ही जुड़ा है. मनोज कुमार पांडेय पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की सार्वजनिक सभा में अपेक्षित भीड़ न जुटा पाने के लिए एक्शन लिया गया है. 

ऐसा लगता है कि कांग्रेस ने मनोज पांडेय के खिलाफ एक्शन लेकर देश भर के जिलाध्यक्षों को मैसेज देने की कोशिश की है, लेकिन राजनीतिक विरोधियों तक इस कार्रवाई का गलत मैसेज चला गया है.

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बक्सर के जिलाध्यक्ष की बर्खास्तगी 

20 अप्रैल को बक्सर में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की जनसभा हुई थी. मल्लिकार्जुन खड़गे ने बक्सर से ही देश भर की राजनीति की बातें की, लेकिन सुनने वाले कम पड़ गये. 

बताते हैं कि मल्लिकार्जुन खड़गे की जनसभा के लिए पहले से ही तैयारियां की जा रही थीं, लेकिन मौके पर काफी कम संख्या में ही लोग पहुंचे थे. सवाल तो उठने ही थे, किरकिरी तो होनी ही थी. 

आरोप है कि मनोज पांडेय ने कार्यकर्ताओं के बीच में सही तालमेल नहीं बिठाया. और, जितनी उम्मीद की जा रही थी, उससे काफी कम लोग सभा स्थल पर पहुंच पाये थे. और, ठीकरा मनोज पांडेय के सिर पर फोड़ दिया गया.  

और, ऐसा होते ही राजनीतिक विरोधी कहने लगे कि कांग्रेस अपना जनाधार खो रही है. 

मनोज पांडेय पर एक्शन से कांग्रेस को क्या मिला

कितना अजीब है ना, चुनावी हार के बाद किसी बड़े नेता पर कोई एक्शन नहीं होता, और महीने भर पहले बनाया गया जिलाध्यक्ष रैली में भीड़ न जुटा पाने के कारण उनको हटा भी दिया गया. 

हरियाणा चुनाव में हार के बाद कई नेताओं पर तलवार लटक रही थी. कुछ उम्मीदवारों की हार के लिए कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल के नाम की भी काफी चर्चा थी, लेकिन उनके या उनके जैसे नेताओं के खिलाफ कुछ भी नहीं हुआ. वे सभी अपनी अपनी कुर्सी पर बने हुए हैं. 

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तो क्या मनोज पांडेय पर एक्शन हाथी कि दिखाने के दांत हैं? और अगर जिलाध्यक्ष दिखाने के ही दांत हैं, तो कांग्रेस नेतृत्व को बहुत उम्मीद भी नहीं रखनी चाहिये. 

कांग्रेस को जमीनी स्तर पर मजबूत करने का आइडिया तो अच्छा है, लेकिन ये तो जगहंसाई जैसा मामला हुआ. 

रैलियों में भीड़ कैसे जुटाई जाती है, किसी से छुपा तो है नहीं. और बक्सर में मल्लिकार्जुन खड़गे को सुनने भला कौन सी भीड़ आती. चुनावी माहौल चरम पर होता, या कोई और जगह होती तो बात अलग थी, लेकिन बक्सर जैसे इलाके में ऐसा होना तो काफी मुश्किल था. 

अगर कांग्रेस नेतृत्व ऐसे ही एक्शन लेने लगा तो जनाधार जमीन पर तैयार होने से पहले ही उखड़ जाएगा. 

मंत्री बनने के लिए मेहनत करनी होगी, लेकिन मौका भी मिलना चाहिये

जिला स्तर पर कांग्रेस को मजबूत करने को लेकर हुई बैठकों के बाद खबर आई थी कि जिलाध्यक्षों और जिला कमेटियों को बहुत सारे अधिकार दिये जाएंगे. ऐसा करने का एक मकसद तो यही है कि प्रदेश स्तर पर जो नेता कुंडली मार कर बैठे हुए हैं, और नये कार्यकर्ताओं को जगह देने को तैयार नहीं हैं, उनसे पीछा छुड़ाना. क्योंकि, ऐसे नेता कांग्रेस नेतृत्व की भी नहीं सुनते. 

ऐसे उदाहरण राजस्थान, हरियाणा, छत्तीसगढ़, पंजाब जैसे कई राज्यों में देखने को मिले हैं. चाहे वो पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू का झगड़ा हो, राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट का या छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव का मामला हो. मध्य प्रदेश में तो कमलनाथ कि जिद के चलते सरकार भी गिर गई और ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसा नेता भी कांग्रेस को गंवा देना पड़ा. 

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जब गुजरात में भी राहुल गांधी ने ऐसे ही हालात महसूस किये, तो सख्ती का फैसला हुआ. राहुल गांधी के बाद मल्लिकार्जुन खड़गे भी अहमदाबाद कांग्रेस कार्यकारिणी में बड़े ही सख्त लहजे में गुजरात कांग्रेस के नेताओं को संदेश दिया.

और अब तय किया गया है कि जिला स्तर पर कांग्रेस को मजबूत किया जाएगा, ताकि जनाधार भी मजबूत हो. 

हाल ही में बिहार में बड़ी संख्या में कांग्रेस ने जिलाध्यक्ष बनाये थे, जाहिर है होड़ में हर जगह कई लोग शामिल होंगे और कोई एक ही बन सका होगा. बक्सर में भी ऐसा ही हुआ होगा. 

मनोज पांडेय की जगह कांग्रेस के बड़े नेताओं के खिलाफ ऐसा एक्शन होता तो मकसद भी हासिल होता, ऐसे तो बस जगहंसाई होती रहेगी. 

ये ठीक है कि राहुल गांधी ने जिला स्तर के कार्यकर्ताओं को आश्वस्त किया है कि वे मंत्री भी बन सकते हैं, लेकिन हर जिलाध्यक्ष के साथ तो ये होने से रहा. और, जो मंत्री बनने की होड़ में शामिल होगा उसको अपनी काबिलियत भी तो दिखानी होगी. जिस नेता का जनाधार ही नहीं होगा, वो मंत्री तो बनने से रहा - हां, जुगाड़ और करीबी होने की बात और है. 

हाल ही में कांग्रेस से बीजेपी के हो गये गौरव वल्लभ ने एक पॉडकास्ट में दावा किया था कि एक व्यक्ति दो बार राज्यसभा इसलिए बन गया क्योंकि उसे मालूम है कि दिल्ली सबसे अच्छा मीट कहां मिलता है - और बकौल गौरव वल्लभ मल्लिकार्जुन खड़गे को मीट बहुत पसंद है.

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