कल्पना करिए चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग पाकिस्तान पहुंचे और बॉर्डर पर पहुंचकर कश्मीर की ओर उंगली दिखाते हुए पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ से बातें करें तो भारत को कैसा लगेगा? जी हां , ये बिल्कुल भारत को चिढ़ाने जैसी हरकत होगी. पर ये भारत के साथ नहीं तुर्किए के साथ हुआ. और करने वाला चाइना नहीं भारत है. अपने साइप्रस दौरे पर भारत के पीएम नरेंद्र मोदी उस स्थान पर पहुंचे जो तुर्किए ने साइप्रस से कब्जा किया हुआ है. मोदी और साइप्रस के राष्ट्रपति निकोस क्रिस्टोडौलिडेस ने निकोसिया में तुर्की-नियंत्रित उत्तरी साइप्रस के सामने पहुंचकर बातचीत की और TRNC का झंडा पृष्ठभूमि में दिखा. मोदी और क्रिस्टोडौलिडेस की वार्ता के लिए उस जगह का चुनाव करने को विश्लेषकों ने तुर्किए के लिए प्रतीकात्मक चेतावनी माना है.
दरअसल ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान की मदद करने के लिए तुर्किए खुलकर साथ आया था. जाहिर है भारत को तुर्किए का यह एक्ट पसंद नहीं आया था. तमाम भारतीयों ने तुर्किए के सामान का बहिष्कार शुरू कर दिया. अब बारी हमारे नेता की थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साइप्रस पहुंचकर तुर्किए को यह संदेश दे दिया है. तुम (तुर्किए) कश्मीर की तरफ देखोगे तो हम जल्दी ही उत्तर पूर्व साइप्रस से तुम्हारा पत्ता कट कर देंने की व्यवस्था कर देंगे.
मोदी की साइप्रस यात्रा का तुर्की के संदर्भ में महत्व
हाल ही में भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में आतंकी ढांचे को निशाना बनाया था. इस दौरान तुर्की ने पाकिस्तान को ड्रोन आपूर्ति और खुला समर्थन दिया, जिससे भारत-तुर्की संबंधों में तनाव बढ़ा. भारत के साथ संघर्ष समाप्त होने के बाद पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ और सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर तुर्किए पहुंचे. पाक नेताओं की यह यात्रा तुर्किए के प्रति आभार प्रकट करने के लिए थी. ठीक इसी तरह ऑपरेशन सिंदूर के बाद पीएम मोदी सबसे पहले साइप्रस पहुंचे. साइप्रस और तुर्किए के बीच संबंध बहुत कुछ भारत और पाकिस्तान के जैसा ही है.
शायद यही कारण है कि पीएम मोदी का साइप्रस का दौरा किया. साइप्रस तुर्की के साथ 1974 से क्षेत्रीय विवाद में उलझा है (उत्तरी साइप्रस पर तुर्की का कब्जा), भारत की ओर से तुर्की को एक कूटनीतिक संदेश माना जा रहा है. साइप्रस और भारत दोनों ही तुर्की की नीतियों से प्रभावित हैं, और यह दौरा तुर्किए-पाकिस्तान गठजोड़ का जवाब हो सकता है.
साइप्रस की यात्रा को निकोसिया में तुर्की को एक कड़ा कूटनीतिक संदेश के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि भारत ने साइप्रस के साथ अपने ऐतिहासिक संबंधों को मजबूत किया और तुर्की के कब्जे वाले उत्तरी साइप्रस के मुद्दे पर साइप्रस का समर्थन किया. दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है की कूटनीति के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि साइप्रस और तुर्की के बीच लंबे समय से तनाव है. भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों और अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार साइप्रस समस्या के समाधान का समर्थन किया है, जो तुर्की के उत्तरी साइप्रस के कब्जे को अवैध मानता है.
साइप्रस का तुर्किए द्वारा कब्जाया गया हिस्सा बनेगा विवाद का जड़
साइप्रस, पूर्वी भूमध्यसागर में स्थित एक द्वीप राष्ट्र, 1974 से तुर्की के साथ एक जटिल क्षेत्रीय विवाद में उलझा हुआ है. यह विवाद, जिसे साइप्रस समस्या के रूप में जाना जाता है, की कहानी भी कुछ कश्मीर जैसी ही है. 1960 में साइप्रस को ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता मिली. द्वीप पर ग्रीक साइप्रियट्स (लगभग 78%) और तुर्की साइप्रियट्स (लगभग 18%) की दो प्रमुख जातीय समुदाय थे. दोनों समुदायों के बीच तनाव 1950 के दशक से बढ़ने लगा, जब ग्रीक साइप्रियट्स ने ग्रीस के साथ एकीकरण की मांग की, जबकि तुर्की साइप्रियट्स ने द्वीप के विभाजन का समर्थन किया.
1974 में ग्रीस समर्थित साइप्रियट नेशनल गार्ड ने साइप्रस में तख्तापलट किया, जिसका उद्देश्य ग्रीस के साथ एकीकरण था. इसके जवाब में तुर्की ने शांति अभियान के नाम पर साइप्रस के उत्तरी हिस्से पर सैन्य आक्रमण किया और लगभग 37% क्षेत्र पर कब्जा कर लिया.
तुर्किए ने 1983 में कब्जाए गए उत्तरी हिस्से को तुर्की गणराज्य उत्तरी साइप्रस (TRNC) घोषित किया, जिसे केवल तुर्की ही मान्यता देता है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय, संयुक्त राष्ट्र, और यूरोपीय संघ इसे साइप्रस गणराज्य का हिस्सा मानते हैं.
साइप्रस द्वीप UN-पटरोल्ड ग्रीन लाइन द्वारा विभाजित है, जो ग्रीक साइप्रियट्स द्वारा नियंत्रित दक्षिणी हिस्से और तुर्की समर्थित उत्तरी हिस्से को अलग करती है. इस आक्रमण के परिणामस्वरूप, लगभग 150,000 ग्रीक साइप्रियट्स उत्तर से विस्थापित हुए, और 60,000 तुर्की साइप्रियट्स दक्षिण से उत्तर में चले गए.
तुर्किए ने उत्तरी साइप्रस में अपनी सैन्य उपस्थिति बनाए रखी है और वहां तुर्की नागरिकों को बसाया है, जिसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय अवैध मानता है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने कई प्रस्तावों (जैसे UNSC Resolution 367) में तुर्किए के कब्जे की निंदा की है.
साइप्रस गणराज्य और अंतरराष्ट्रीय समुदाय तुर्किए के कब्जे को अवैध मानते हैं और द्वीप के एकीकरण की मांग करते हैं. तुर्की और TRNC एक confederal समाधान या दो अलग-अलग राज्यों की बात करते हैं.
मोदी की साइप्रस यात्रा और विवाद की लाइमलाइट में आने की संभावना
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 15-16 जून, 2025 की साइप्रस यात्रा (23 वर्षों में पहली बार) को तुर्की के लिए एक कूटनीतिक संदेश के रूप में देखा गया, विशेष रूप से ऑपरेशन सिंदूर (मई 2025) के बाद, जिसमें तुर्की ने पाकिस्तान का समर्थन किया था. भारत ने साइप्रस की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का समर्थन दोहराया, जो तुर्की के लिए एक स्पष्ट संदेश है.
भारत ने UNSC प्रस्तावों और अंतरराष्ट्रीय कानून के आधार पर साइप्रस समस्या के समाधान का समर्थन किया, जो तुर्की की स्थिति के खिलाफ है. साइप्रस 2026 में EU की अध्यक्षता संभालेगा, जिससे यह यात्रा वैश्विक मंच पर साइप्रस विवाद को उजागर कर सकती है. भारत-EU मुक्त व्यापार समझौते पर चर्चा और IMEC में साइप्रस की भूमिका ने इस मुद्दे को यूरोपीय मंचों पर लाने की संभावना बढ़ाई.
साइप्रस ने भारत के आतंकवाद विरोधी रुख, विशेष रूप से 22 अप्रैल, 2025 के पहलगाम हमले के बाद, का समर्थन किया और EU में पाकिस्तान के क्रॉस-बॉर्डर आतंकवाद का मुद्दा उठाने की बात कही. यह तुर्की-पाकिस्तान गठजोड़ के खिलाफ एकजुटता को दर्शाता है.
यह यात्रा भारत की व्यापक भूमध्यसागरीय रणनीति का हिस्सा है, जिसमें ग्रीस और आर्मेनिया जैसे तुर्की के प्रतिद्वंद्वियों के साथ संबंध मजबूत करना शामिल है. यह साइप्रस विवाद को भारत के वैश्विक कूटनीति के संदर्भ में जोड़ता है, जिससे निश्चित ही यह दुनिया के सामने और गंभीर रूप में सामने आएगा.