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वोटिंग में फुस्स हुई जन सुराज, 99% से ज्यादा उम्मीदवारों की जमानत जब्त... PK की क्रैश लैंडिंग क्यों?

बिहार चुनाव 2025 में प्रशांत किशोर और उनकी पार्टी जन सुराज पूरी तरह पिछड़ गए. 238 में से 236 उम्मीदवार अपनी जमानत तक नहीं बचा सके. रितेश पांडे, के.सी. सिन्हा और सरफराज आलम जैसे हाई-प्रोफाइल चेहरे भी तीसरे स्थान पर रहे.

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PK के दावों के उलट एनडीए की लहर में जन सुराज बिखरा (Photo: PTI)
PK के दावों के उलट एनडीए की लहर में जन सुराज बिखरा (Photo: PTI)

बिहार चुनाव में किसी एक चेहरे या किसी एक पार्टी ने सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरी या चर्चा में बनी रहे तो वो थे प्रशांत किशोर और उनकी पार्टी जन सुराज. चुनाव के कुछ वक्त पहले तक प्रशांत किशोर कई बड़े-बड़े दावे करते रहें उन्होंने कहा कि अगर मुझे 125-130 आई तो मैं इसे अपनी हार मानूंगा, यही नहीं पीके तो यहां तक दावे करते रहे कि अगर जदयू को 25 सीटें आ गई तो वह राजनीति छोड़ देंगे और बिहार छोड़कर चले जाएंगे. 

एक और दावा जो सबसे ज्यादा सुर्खियों में रहा सभी मीडिया हाउस के दिए जाने वाले इंटरव्यू में यह लिख कर देते रहे कि नीतीश कुमार मुख्यमंत्री नहीं होंगे और उन्हें 25 सीट नहीं आएगी.

खैर उनके तमाम दावे तो हवा हो गए रिजल्ट ऐसा आया की प्रशांत किशोर के राजनीतिक समझ पर सवालिया निशान लग गया. यह सवाल इसलिए क्योंकि कोई नेता इस तरह के दावे किसी पॉलिटिकल पार्टी या राजनेता के बारे में नहीं करता जैसा प्रशांत किशोर ने किया.

अब जरा नतीजों को समझते हैं, प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज के कुल 238 उम्मीदवार मैदान में थे जिसमें से 236 उम्मीदवारों की जमानत जप्त हो गई यानी 99.16 फीसदी जन सुराज के उम्मीदवार अपनी जमानत तक नहीं बचा सके.

जन सुराज की करारी हार

जन सुराज ने 238 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, लेकिन इनमें से 236 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई - यानी 99.16% प्रत्याशी न सिर्फ़ हारे, बल्कि बेहद कम वोट ला सके. पार्टी का कुल वोट प्रतिशत महज 2% के आसपास रहा.

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हाई-प्रोफाइल नाम भी जनता को नहीं लुभा सके

रितेश पांडे (करगहर) – तीसरा स्थान, 16,258 वोट

के.सी. सिन्हा (कुम्हरार) – तीसरा स्थान, 15,000 वोट

सरफराज आलम (जोकीहाट) – तीसरा स्थान, 35,234 वोट

मनीष कश्यप (चनपटिया) – तीसरा स्थान, 37,117 वोट

पूरे राज्य में सिर्फ़ एक उम्मीदवार - मढ़ौरा के नवीन कुमार सिंह - रनर-अप रहे, जिन्हें 58,170 वोट मिले. बाकी 230+ सीटों पर जन सुराज प्रभावहीन रहा. कई जगह PK को हजार वोट भी नहीं मिले.

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कुल मिलाकर लगभग आधा दर्जन सीटों पर ही प्रशांत किशोर की पार्टी का कुछ असर दिखाई दिया बाकी 230 सीटों पर पूरी तरीके से बेअसर रहे प्रशांत किशोर.

PK की रणनीति उलटी क्यों पड़ी?

प्रशांत किशोर ने अपनी रणनीति ऐसी बनाई जिसमें वह भ्रष्टाचार के मुद्दों पर बीजेपी और जदयू के बड़े चेहरों को टारगेट करते रहे जिसमें बीजेपी के सम्राट चौधरी और जदयू के अशोक चौधरी पर भ्रष्टाचार और अपराध के कई सनसनीखेज आरोप लगाए. तेजस्वी यादव को लगातार नौवीं फेल कहते रहे, उन्हें लगता था कि नेताओं को टारगेट कर वह सरकार की एंटी इनकंबेंसी को भुना ले जाएंगे लेकिन हुआ उल्टा और नीतीश कुमार के समर्थन में जबरदस्त लहर पैदा हो गई. 

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हालांकि इस हार में भी उन्हें ये क्रेडिट जाता है कि प्रशांत किशोर के पिछले कुछ सालों के सियासी कैंपेन ने बिहार में बीजेपी और जदयू की परोक्ष तौर पर बड़ी मदद की, जिस तरीके से प्रशांत किशोर ने बिहार के मुद्दों को उठाया उसने बिहार में पलायन, बेरोजगारी, अपराध, भ्रष्टाचार जैसे विमर्श को जनता के बीच में लाकर खड़ा कर दिया. 

बिहार में चुनाव के लिए मुद्दों की एक पूरी फेहरिस्त सामने आ गई लोगों के बीच यह मुद्दे सोशल मीडिया से लेकर चौक चौराहा और घरों के बीच चर्चा का विषय बन गए. लेकिन सियासी तौर पर जब इन मुद्दों को भूनाने की बारी आई तो PK के पास सिवाय सोशल मीडिया के जमीन पर काम करने वाला संगठन मौजूद ही नहीं था जो इसे वोटो में तब्दील करता, और यही मुद्दे एनडीए के लिए वरदान हो गए. क्योंकि इन सवालों के जवाब भी जनता को प्रधानमंत्री मोदी और नीतीश में ही दिखाई दिए क्योंकि उनका ट्रस्ट फैक्टर तमाम नेताओं में सबसे ज्यादा है.

अब PK किन सवालों से घिरे हैं?

नतीजे के बाद से अभी तक प्रशांत किशोर का कोई रिएक्शन नहीं आया है शायद उन्हें अंदाजा ही नहीं था कि जिस भीड़ और भाषण चुनाव नहीं जिता सकते.

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नतीजे के बाद अब प्रशांत किशोर को उन बातों का भी जवाब देना होगा जो उन्होंने जदयू की सीटों को लेकर कहा है खासकर यह दावा के अगर जेडी यू को 25 सीट आ गई तो वो राजनीति छोड़ देंगे और बिहार में राजनीति नहीं करेंगे. सोशल मीडिया पर दिए गए उनके बड़बोले बयान मौजूद रहेंगे और मीडिया हाउस को लिख कर दी गई उनके हवा हवाई दावे उन्हें लंबे समय तक डराते रहेंगे.

कुल मिलाकर, बिहार चुनाव 2025 प्रशांत किशोर के लिए एक कठिन सीख बनकर सामने आया है - भीड़, भाषण और सोशल मीडिया का शोर तब तक मायने नहीं रखता, जब तक मजबूत संगठन और जमीन से जुड़ा वोट बैंक न हो.

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