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1971 की जंग के रास्ते पर है पाकिस्तान, इस बार हाथ से निकलेगा बलूचिस्तान या पीओके?

कहा जाता है कि इतिहास अपने आप को दुहराता है. लगता है भारत-पाकिस्तान के बीच भी कुछ ऐसा ही होने वाला है. 1971 के पूर्वी पाकिस्तान वाली परिस्थितियां तो आजकल बन ही रही थीं, पाकिस्तान ने जो आत्मघाती कदम उठाएं हैं वो भी बहुत कुछ उस दौर के जैसा ही है.

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1971 में पूर्वी पाकिस्तान की लड़ाई में भारतीय सेनाओं के हाथों पाकिस्तान को बुरी तरह शिकस्त मिली. आत्मसमर्पण के कागजात पर हस्ताक्षर करते पाकिस्तान के जनरल नियाजी.
1971 में पूर्वी पाकिस्तान की लड़ाई में भारतीय सेनाओं के हाथों पाकिस्तान को बुरी तरह शिकस्त मिली. आत्मसमर्पण के कागजात पर हस्ताक्षर करते पाकिस्तान के जनरल नियाजी.

भारत और पाकिस्तान के लिए गुरुवार की रात बहुत भारी थी. ऑपरेशन सिंदूर के जवाब में  पाकिस्तान ने बुधवार को भारत के 15 शहरों पर नाकाम हमले किए. गुरुवार को भी पाकिस्तान की खीझ दिखी. पाकिस्तानी द्रोण और मिसाइलों ने भारत के कई शहरों पर लगातार हमले किए. जिन लोगों को 1971 के युद्ध के पहले की घटनाओं की जानकारी होंगी उन्हें जरूर ऐसा लग रहा होगा कि इतिहास दुहराया जा रहा है. पाकिस्तान जिस तरह की स्थितियां पैदा कर रहा है उससे यही लगता है कि भारत 1971 की तरह पूर्ण पैमाने पर युद्ध शुरू कर सकता है. सवाल यह उठता है कि क्या पाकिस्तान एक बार फिर टूटने के लिए तैयार है. आइये देखते हैं कि 1971 के युद्ध के पहले की परिस्थितियों की वर्तमान परिस्थितियों से तुलना करके देखते हैं कि भविष्य में दोनों देशों के आगे क्या होने वाला है?

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क्या हम 1971 की ओर बढ़ रहे हैं?

1971 का युद्ध पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के मुक्ति संग्राम और शरणार्थी संकट के कारण हुआ था, जो वर्तमान परिस्थितियों से थोड़ा बहुत ही अलग था. हालांकि आज दोनों देशों के पास परमाणु हथियार हैं, जो पूर्ण युद्ध की संभावना को कम करते हैं, पर जिस तरह पाकिस्तान की तैयारी दिख रही है उससे तो यही लगता है कि वह परमाणु बम का इस्तेमाल भी कर पाएगा या नहीं. क्यों कि उसके मिसाइल और द्रोण जिस तरह भारत में आकर फुस्स हुए हैं उसे देखकर तो कोई युद्ध विशेषज्ञ ऐसा ही कहेगा.  

1971 में पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में पाकिस्तानी सेना का दमन, बंगाली मुक्ति संग्राम (मुक्तिवाहिनी), और भारत में 1 करोड़ शरणार्थियों का आना , भारत के लिए युद्ध का बहाना था. पाकिस्तान ने 3 दिसंबर 1971 को ऑपरेशन चंगेज खान के तहत भारत के 11 हवाई अड्डों पर प्री-एम्प्टिव हवाई हमले किए, जिसने युद्ध शुरू किया था. पाकिस्तान ने बहुत कुछ ऐसा ही गुरुवार को भारत के हवाई अड्डों पर अपने जेट्स और द्रोण भेजकर किया है. अगर पाकिस्तान के कम से चार जेट्स और दर्जनों द्रोण भारत ने मार गिराएं तो समझ सकते हैं कि हमला कितना मारक रहा होगा. भला हो एस-400 और अन्य एयर डिफेंस सिस्टम की कि भारत को जान माल का नुकसान नहीं हुआ. पर भारत को पाकिस्तान के टुकड़े करने का बहाना तो मिल ही गया है. जैसा 1971 में ऑपरेशन चंगेज के बाद भारत ने बांग्लादेश बनाकर पाकिस्तान को मात दिया था. भारत ने पाकिस्तान के ऑपरेशन चंगेज के बाद 13 दिनों में पूर्वी पाकिस्तान में निर्णायक जीत हासिल की और ढाका पर कब्जा कर लिया. 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कियी था.

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पाकिस्तान के तीन टुकड़े होने की कितनी संभावना

पाकिस्तान के विभाजन की बात अक्सर राजनीतिक बयानबाजी और अटकलों में उठती है, विशेष रूप से बलूचिस्तान, सिंध और खैबर पख्तूनख्वा जैसे क्षेत्रों में अलगाववादी आंदोलनों के संदर्भ में. बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने 27 अप्रैल 2025 को दावा किया कि 2025 के अंत तक पाकिस्तान चार हिस्सों में बंट जाएगा, और योगी आदित्यनाथ ने भी ऐसा ही दावा किया है. हालांकि, इन दावों के पीछे कोई ठोस आधार नहीं हैं. पर क्या 1971 के पहले किसी भारतीय या पाकिस्तानी ने सोचा था कि बांग्लादेश अलग देश बनेगा. 2019 से पहले कोई भारतीय ये सोचता था कि कश्मीर से 370 खत्म किया जा सकेगा. आज से 10 साल पहले अयोध्या में राम मंदिर बनने की बात भी किसी के गले नहीं उतरता था. दरअसल कोई भी ऐतिहासिक कार्य नेतृत्व की इच्छा शक्ति पर निर्भर करता है. 1971 की लड़ाई में बांग्लादेश बनना पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की इच्छा शक्ति का ही कमाल था. इंदिरा ने बांग्लादेश बनने से पहले राजाओं के प्रिवपर्स और बैंकों का राष्ट्रीयकरण करके अपनी इच्छाशक्ति का परिचय दे दिया था. ठीक उसी तरह वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अनुच्छेद 370 की समाप्ति, वक्फ संशोधन अधिनियम, तीन तलाक का खात्मा, एनआरसी , नोटबंदी आदि लागू करके अपनी इच्छाशक्ति का परिचय पूरी दुनिया को दिया है. जाहिर है कि एक बार फिर देश को मजबूत और दृण इच्छाशक्ति वाला नेतृत्व मिला है. इसलिए कुछ भी असंभव को संभव किया जा सकता है.

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कौन होगा आसान निशाना, बलूचिस्तान या पीओके 

पाकिस्तान में बलूच अलगाववादी आंदोलन जिस तरह आजकल चरम पर है वो 1971 के पूर्वी पाकिस्तान में चल रहे आंदोलन की याद दिला रहा है.बलूच आर्मी के आगे पाकिस्तानी आर्मी हर रोज मात खा रही है. बलूचिस्तान में पाकिस्तान सरकार बिल्कुल नाममात्र की रह गई है. बलूचिस्तान में पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसियों अब दमन करने में सक्षम नहीं रह गई हैं. भारत ने जिस तरह सिंधु जल संधि को स्थगित किया है वो पाकिस्तान में भविष्य में गृहयुद्ध का कारण बन सकता है. 

बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है, लेकिन आर्थिक और राजनीतिक रूप से उपेक्षित रहा है. यहां बलूच नेशनलिस्ट आंदोलन सक्रिय है, जो पाकिस्तान से स्वतंत्रता या अधिक स्वायत्तता की मांग करता है. बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) जैसे समूह पाकिस्तानी सेना के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध लड़ रहे हैं. बलूच आबादी का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान सरकार के खिलाफ है, जो 1971 में पूर्वी पाकिस्तान की तरह भारत के लिए अनुकूल स्थिति हो सकती है.बलूचिस्तान में संसाधनों की लूट जैसे ग्वादर पोर्ट और प्राकृतिक गैस ने स्थानीय लोगों में असंतोष बढ़ाया है.इसके साथ ही बलूचिस्तान की सीमा ईरान और अफगानिस्तान से लगती है, जहां से पाकिस्तान को अतिरिक्त दबाव का सामना करना पड़ सकता है.

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पीओके (पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर) भारत का हिस्सा माना जाता है, और 1994 में भारतीय संसद ने इसे भारत का अभिन्न हिस्सा घोषित किया था. हाल के वर्षों में, पीओके में बिजली, पानी, और बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण स्थानीय असंतोष बढ़ा है. पीओके में कुछ समूह भारत के साथ एकीकरण का समर्थन करते हैं, और हाल के प्रदर्शनों से स्थानीय लोगों का पाकिस्तान के खिलाफ गुस्सा स्पष्ट है. भारत के लिए यहां किसी भी कार्रवाई को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर वैध ठहराना आसान हो सकता है.
पीओके भारत की सीमा से सटा हुआ है, जिससे सैन्य अभियानों के लिए लॉजिस्टिक्स आसान हो सकता है, 1971 के पूर्वी पाकिस्तान की तुलना में, जो भारत से हजारों मील दूर था.

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