अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने नाम एक और 'संभावित' संघर्षविराम जोड़ लिया है. ट्रंप ने सोशल मीडिया पर दावा किया कि इजरायल और ईरान दोनों ही उनके संपर्क में आए ताकि वो दोनों देशों के बीच शांति समझौता करवा सकें.
इस बीच, इजरायल ने ईरान को गंभीर सैन्य चोटें पहुंचाई हैं जबकि ईरानी सेना की मिसाइलें भी इजरायल के मशहूर ‘आयरन डोम’ सुरक्षा कवच को चीरती हुई भीतर घुसने में सफल रहीं. ट्रंप के सीजफायर के ऐलान के बाद ईरान के हमले में 'चार इज़रायली नागरिकों की मौत' हुई.
इस सीज फायर की शुरुआत तब हुई जब अमेरिका ने ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम पर एअर स्ट्राइक किए, जिसके जवाब में ईरान ने कतर में स्थित अमेरिकी सैन्य अड्डे 'अल उदीद एयरबेस' पर मिसाइलें दागीं. यह अमेरिका का मिडिल ईस्ट में सबसे बड़ा बेस है.
ईरान ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि उसके न्यूक्लियर प्रोग्राम पर हमला हुआ तो वो अमेरिका के रीजन टारगेट्स को निशाना बनाएगा और उसने यह वादा पूरा किया. ये कदम ईरानी लोगों और सेना में भरोसा बनाए रखने के लिए जरूरी था क्योंकि बीते कुछ दिनों में ईरान को काफी नुकसान उठाना पड़ा. ईरान में आम लोगों के हताहत होने संख्या अभी तक साफ नहीं हो सकी है.
संघर्षविराम की सफलता किन पर निर्भर है?
इस संघर्षविराम की लंबी उम्र इस बात पर निर्भर करेगी कि इजरायल और ईरान की आंतरिक राजनीति कैसी दिशा लेती है. अमेरिका तो अब शायद तब तक हस्तक्षेप नहीं करेगा जब तक उसके सैन्य अड्डों पर दोबारा हमला न हो. हां, इजरायल के लिए बात थोड़ी जटिल है. उसकी 'अजेय' सेना की छवि थोड़ी क्षतिग्रस्त हुई है हालांकि यह इजरायल की रणनीति का हिस्सा रहा होगा. दुनिया में कोई भी मिसाइल डिफेंस सिस्टम पूरी तरह अजेय नहीं होता. फिर भी इज़रायल यह मान सकता है कि संघर्षविराम उसकी योजना में रुकावट बन रहा है क्योंकि वो ईरान की सैन्य ताकत को पूरी तरह खत्म करना चाहता था और यह मौका उसे शायद दोबारा न मिले.
ईरान की स्थिति: खोखली ताकत और अंदरूनी खतरे
ईरान की स्थिति इस वक्त बेहद अस्थिर है. कतर की मदद से हुआ सीज फायर उसके लिए एक राहत भरा ब्रेक रहा. बीते सप्ताह में उसकी रक्षा व्यवस्था बुरी तरह छिन्न-भिन्न हुई है और सैन्य व खुफिया कमान पर बड़ा नुकसान हुआ है. देश के भीतर ईरान ने '500 से ज्यादा लोगों को गिरफ़्तार' किया है जिन पर इज़रायली खुफिया एजेंसियों की मदद करने का आरोप है.
ईरान इस वक्त बेहद असुरक्षित स्थिति में है. वह इज़रायल के हमलों का समुचित जवाब नहीं दे पा रहा और युद्ध की आशंका बढ़ती जा रही है. वो भी तब जब उसके सहयोगी गुट जैसे 'हिज़्बुल्ला, हमास और हूती' या तो लड़ने में अक्षम हैं या इच्छुक नहीं हैं.
...और ट्रंप? सबके बीच का ‘जोकर’
ट्रंप इस पूरी कहानी में अचानक से सामने आए एक अजीब लेकिन अहम किरदार हैं. अमेरिका ने असामान्य रूप से सीधे ईरान से संपर्क किया और सीज फायर के लिए मध्यस्थता की. हो सकता है कि ईरान की शर्त यह हो कि वो पहले पलटवार करेगा तभी शांति पर विचार होगा.
ये भी संभव है कि कतर को मध्यस्थता के लिए इसलिए चुना गया क्योंकि वो आज अमेरिका का सबसे भरोसेमंद सहयोगी है. अल उदीद एयरबेस भी वहीं है. कुछ रिपोर्ट्स बताती हैं कि अमेरिका ने संघर्षविराम से पहले ही वहां से अपनी प्रमुख सैन्य संपत्ति हटा ली थी जिससे वो बेस लगभग खाली हो गया.
सोशल मीडिया पर दिखे वीडियो में ईरान की मिसाइलें कतर की राजधानी दोहा के ऊपर आसमान में ऊंचाई पर दिखीं जिससे Qatari इंटरसेप्टर्स को उन्हें रोकने का मौका मिला. यह एक अजीब ‘ड्रामा' जैसी स्थिति’ थी जिसमें दोनों देशों को ‘सम्मानजनक वापसी’ का रास्ता दिखाया गया और दोनों ने वो विकल्प चुन लिया.
ऑपरेशन ‘राइजिंग लायन’ और इज़रायल की प्राथमिकताएं
इज़रायल ने इस पूरे ऑपरेशन को ‘राइजिंग लायन’ नाम दिया और दावा किया कि उसने ईरान की परमाणु और मिसाइल ताकत को खत्म कर दिया है जो प्रधानमंत्री नेतन्याहू की प्राथमिकता थी. मिसाइल ठिकानों को इज़रायल ने खुद ही नष्ट किया लेकिन परमाणु स्थलों पर हमला करने के लिए उसे अमेरिकी हथियारों की जरूरत पड़ी. खासकर B-2 बॉम्बर हमलों की सफलता का पता हफ्तों बाद ही चल पाएगा और यह भी पक्का नहीं कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह नष्ट हो गया हो. इसका मतलब है कि इजरायल और ईरान के बीच जो मुख्य विवाद परमाणु हथियारों की होड़ है, वो अभी भी अनसुलझी है.
अस्थाई शांति: जरूरी लेकिन डगमग
फिलहाल ये संघर्षविराम सभी पक्षों के लिए उपयोगी है. इज़रायल को इसलिए राहत मिली क्योंकि उसे भी अब नागरिक हताहत होने लगे थे और एक छोटा देश, चाहे जितना भी ताकतवर हो, लंबे युद्ध की आर्थिक कीमत नहीं उठा सकता लेकिन यह शांति कांच की तरह नाजुक है. इसका अस्तित्व इस बात पर टिका है कि ईरान और इज़रायल कितना संयम दिखाते हैं.