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नवाज शरीफ की कूटनीतिक कोशिशों का ज्यादा फायदा शहबाज शरीफ को मिला या आसिम मुनीर को?

नवाज शरीफ जिस मकसद से पाकिस्तान पहुंचे थे, आते ही काम पर लग गये थे. कोशिशें कामयाब ही मानी जानी चाहिये - अब नवाज शरीफ को क्रेडिट कितना मिलता है, ये बात अलग है.

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शरीफ भाइयों ने मिलकर पाकिस्तान के आर्मी चीफ आसिम मुनीर को फिलहाल झटका तो दिया ही है, आगे देखना है.
शरीफ भाइयों ने मिलकर पाकिस्तान के आर्मी चीफ आसिम मुनीर को फिलहाल झटका तो दिया ही है, आगे देखना है.

अमेरिका से सीजफायर की खबर आने से पहले ही लंदन से नवाज शरीफ पाकिस्तान पहुंच चुके थे. परिवार से लेकर पार्टी की बैठकों तक सबसे बड़ा मुद्दा ऑपरेशन सिंदूर ही रहा. और, फिर बतौर PML-N प्रमुख उस सरकारी मीटिंग में भी शामिल हुए, जिसमें पाकिस्तान के आर्मी चीफ आसिम मुनीर और वहां के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ भी मौजूद थे.

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असल में वो सीजफायर कराने के मकसद से ही पाकिस्तान लौटे हैं. नवाज शरीफ के पाकिस्तान पहुंचते ही खबर आई थी कि वो अपने छोटे भाई शहबाज शरीफ को समझाने बुझाने के मकसद से लौटे हैं.  

पाकिस्तान के तीन बार प्रधानमंत्री रह चुके नवाज शरीफ की पार्टी  PML-N की ही फिलहाल पाकिस्तान में सरकार है, और प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ उनके छोटे भाई हैं. नवाज शरीफ की बेटी मरियम नवाज पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की मुख्यमंत्री हैं. भारत और पाकिस्तान के बीच जारी तनाव के बीच दोनो भाइयों की मीटिंग में मरियम नवाज भी शामिल हुई थीं. 

एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया था, नवाज शरीफ चाहते हैं कि परमाणु हथियारों से लैस दोनो मुल्कों के बीच शांति बहाल करने के लिए पाकिस्तान की सरकार सभी संभव और उपलब्ध कूटनीतिक संसाधनों का इस्तेमाल करे. नवाज शरीफ ने तभी कहा था, मैं भारत के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाने के पक्ष में नहीं हूं.

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अब जबकि सीजफायर की घोषणा हो चुकी है, भारत और पाकिस्तान के DGMO के बीच आगे की बात होनी है, बस एक ही बात समझना जरूरी लगता है - नवाज शरीफ की कूटनीतिक कोशिशों का ज्यादा फायदा शहबाज शरीफ को मिला या आसिम मुनीर को?

नवाज ने शहबाज को ‘99 जैसी फजीहत से बचा लिया है'

सब कुछ पानी की तरह साफ था. नवाज शरीफ अच्छी तरह समझ चुके थे कि  PML-N सरकार और मौजूदा प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के सामने भी 1999 जैसी ही चुनौती खड़ी हो चुकी है. बल्कि, तब से भी कहीं ज्यादा मुश्किल. कारगिल युद्ध में तो पाकिस्तानी फौज घुसपैठ कर चुकी थी, ऑपरेशन सिंदूर के दौरान तो भारतीय सेना सरहद से 100 किलोमीटर पाकिस्तान के भीतर तक आतंकवादियों के ठिकाने तबाह कर चुकी है. 

लिहाजा, पहला चैलेंज तो यही था कि जैसे भी मुमकिन हो, हर हाल में कारगिल जैसे हालात न आने दिया जाये. कारगिल जंग में मिली फजीहत से बचा जा सके. संभावित शिकस्त को हर हाल में टाला जा सके. 

पाकिस्तानी फौज तो तब भी राजनीतिक नेतृत्व पर हावी थी, हालात अब भी बिल्कुल वैसे ही हैं. बस आर्मी चीफ का नाम बदल कर परवेज मुशर्रफ से आसिम मुनीर हो गया है. 

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंफ भले ही महफिल लूटने पर आमादा हों, लेकिन तमाम कोशिशों में नवाज शरीफ की भी एक भूमिका तो है ही. नवाज शरीफ ने भाई को कारगिल वाली फजीहत से तो बचा ही लिया है. 

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सिर पर फजीहत मंडरा रही थी, राहत मिल गई

नवाज शरीफ के कूटनीतिक चैनलों में हाथ आजमाने का नतीजा अगर सीजफायर है, तो सीधे सीधे दूसरे लाभार्थी आसिम मुनीर ही हैं - ये बात अलग है कि अमन के ऐलान के तीन घंटे में ही सीजफायर का उल्लंघन भी सामने आ गया. 

सीजफायर की घोषणा के बाद सरहद से हुई फायरिंग बेशक पाकिस्तानी अवाम को कुछ समझाने का एक खास तरीका हो, लेकिन ऐन उसी वक्त ये नवाज शरीफ के खिलाफ आसिम मुनीर की खुन्नस की नुमाइश भी लगती है. शहबाज शरीफ की कुर्सी तो आसिम मुनीर की कृपा पर ही बनी हुई है. 

लेकिन, सीजफायर के ऐलान के बाद जिस तरह की चर्चाएं चल रही हैं, कई सवाल भी उठ रहे हैं, और अभी उनके जवाब सीधे सीधे नहीं मिल पा रहे हैं.

1. भारत और पाकिस्तान के बीच युद्द जैसे पैदा हो जाने के बावजूद, आसिम मुनीर को फिलहाल एक सेफ पैसेज तो मिला ही है, और बाकी बातों के साथ साथ नवाज शरीफ की भी भूमिका तो मानी ही जाएगी. 

2. एक थ्योरी चल रही है कि संभवित न्यूक्लियर वार का डर दिखाकर आसिम मुनीर ने अमेरिका, यानी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्र्ंप को ब्लैकमेल किया है. 

सवाल है कि अगर आसिम मुनीर ने यूएस को संभावित न्यूक्लियर वार के नाम पर ब्लैकमेल किया भी है, तो आईएमएफ का बेलआउट पैकेज रोकने का भी तो विकल्प था ही - ये ब्लैकमेल वाली थ्योरी हजम नहीं हो पा रही है. 

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3. लेकिन डोनाल्ड ट्रंप झांसे में कैसे आ गये? क्या उनके पास कोई ठोस इनपुट नहीं था? सीआईए और एफबीआई तो पूरी दुनिया की जानकारी रखते हैं, पाकिस्तान के बारे में क्यों नहीं पता चला? 

4. अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस का ये कहना कि उनका मुल्क भारत पाकिस्तान की लड़ाई से दूर रहेगा, क्योंकि ये उसका काम नहीं है - ये तो बता रहा है कि तब ट्रंप को जानकारी नहीं रही होगी. और, तभी ऐसी बातें हुई होंगी. लेकिन अमेरिका के मामले में ये चीज सही नहीं लगती है.  

5. एक चर्चा ये भी है कि पाकिस्तान के एयरबेस पर भारत के हमले से परमाणु हथियारों के लिए खतरा पैदा हो गया था. और, ऐन उसी वक्त ये भी चर्चा है कि भारतीय सेना की कार्रवाई से न्यूक्लियर रेडियेशन का खतरा पैदा हो गया था. अमेरिका ऐसी चीजों की वजह से ही हरकत में आया, और ताबड़तोड़ बातचीत के बाद मामला सीजफायर तक पहुंचा. 

न्यूक्लियर रेडियेशन की जांच के लिए किसी अमेरिकी टीम के पाकिस्तान पहुंचने की भी चर्चा रही है. चूंकि किसी आधिकारिक स्रोत से खबर की पुष्टि नहीं हुई है, इसलिए अभी ये सब फेक न्यूज वाली कैटेगरी हिस्सा ही माना जा रहा है. 

न्यूज एजेंसी ANI के जरिये पाकिस्तान में भारत के उच्चायुक्त रहे जी. पार्थसारथी का ऑपरेशन सिंदूर को लेकर एक महत्वपूर्ण बयान आया है. पार्थसारथी के नजरिये को समझें, तो लगता है आसिम मुनीर की स्थिति हास्यास्पद हो गई है. क्योंकि, आसिम मुनीर भी परवेज मुशर्रफ वाली ही गलती दोहरा चुके हैं. 

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कारगिल की शिकस्त के बाद परवेज मुशर्रफ ने तख्तापलट कर दिया था, और नवाज शरीफ बेदखल करके सत्ता पर काबिज हो गये थे - लेकिन, अभी तो लगता है नवाज शरीफ ने PML-N की सरकार तो बचा ही ली है, छोटे भाई शहबाज शरीफ की कुर्सी भी बचा ली है, और जब तक कोई नया फौजी शासक महत्वाकांक्षी न बने, ऐसे खतरे टल गये हैं.

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