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बीजेपी का ‘संविधान हत्या दिवस’ तो कांग्रेस के खिलाफ है, ममता क्यों विरोध कर रही हैं?

25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ मनाने के केंद्र सरकार के फैसले का ममता बनर्जी ने विरोध किया है, जबकि उनकी राजनीति में कदम कदम पर कांग्रेस का विरोध नजर आता है. क्या ये विरोध सिर्फ इसलिए है क्योंकि बीजेपी का विरोध करना है?

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ममता बनर्जी अगर कांग्रेस के विरोध में हैं तो संविधान हत्या दिवस के खिलाफ क्यों?
ममता बनर्जी अगर कांग्रेस के विरोध में हैं तो संविधान हत्या दिवस के खिलाफ क्यों?

ममता बनर्जी के कांग्रेस विरोध का ताजातरीन नमूना नीलांबुर उपचुनाव है. केरल के वायनाड लोकसभा क्षेत्र में आने वाले नीलांबुर उपचुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने भी उम्मीदवार खड़ा किया है. 

वायनाड कांग्रेस के लिए कितना महत्वपूर्ण है, बताने की जरूरत नहीं होनी चाहिये. ये वायनाड ही है जहां से चुनाव जीतकर 2019 में राहुल गांधी लोकसभा पहुंच पाये थे, क्योंकि अमेठी के लोगों ने तो नकार ही दिया था - और अब प्रियंका गांधी वाड्रा लोकसभा में वायनाड का प्रतिनिधित्व करती हैं. 

लोकसभा पहुंचने के बाद प्रियंका गांधी के जिम्मे अगले साल होने वाला केरल विधानसभा चुनाव भी होगा - लेकिन, ममता बनर्जी ने अभी से कांग्रेस को केरल पहुंचकर भी चैलेंज कर दिया है. 

ऐसे तमाम उदाहरण हैं, जो कांग्रेस के प्रति ममता बनर्जी के रुख की मिसाल हैं. विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लॉक का नेतृत्व तो वो राहुल गांधी से छीन लेना ही चाहती हैं, अगले साल होने वाले पश्चिम बंगाल चुनाव में कांग्रेस को साथ में लड़ने के लिए एक भी सीट नहीं देने वाली हैं. 

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लेकिन, हैरानी तब होती है जब वही ममता बनर्जी केंद्र की बीजेपी सरकार के 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ मनाने का विरोध करती हैं - आखिर माजरा क्या है?

पश्चिम बंगाल में नहीं मनाया जाएगा 'संविधान हत्या दिवस'

केंद्र सरकार का 25 जून को संविधान हत्या दिवस मनाने का फैसला कांग्रेस के खिलाफ है. पिछले साल ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसकी घोषणा की थी - और प्रधानमंत्री ने सोशल मीडिया पर एनडोर्स किया था. 

दरअसल, 1975 में 25 जून को ही तत्कालीनी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने देश में इमरजेंसी लगाई थी - और उसी के विरोध में केंद्र की बीजेपी सरकार ने हर साल 25 जून को 'संविधान हत्या दिवस' के रूप में मनाने का फैसला किया है. 

इसकी घोषणा करते हुए अमित शाह ने कहा था, ‘संविधान हत्या दिवस' उन सभी लोगों के महान योगदान को याद करेगा, जिन्होंने 1975 के आपातकाल के अमानवीय दर्द को सहन किया… लाखों लोगों को बिना किसी गलती के जेल में डाल दिया गया, और मीडिया की आवाज को दबा दिया गया. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल साइट एक्स पर लिखा था, ये इस बात की याद दिलाएगा कि क्या हुआ था, जब भारत के संविधान को कुचल दिया गया था… ये हर उस व्यक्ति को श्रद्धांजलि देने का भी दिन है, जो आपातकाल की ज्यादतियों के कारण पीड़ित हुए थे, जो भारतीय इतिहास में कांग्रेस द्वारा लाया गया काला दौर था.

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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने संविधान हत्या दिवस मनाये जाने को लोकतंत्र और संविधान का मजाक करार दिया है. ममता बनर्जी का कहना है कि बीजेपी उसी संविधान को कमजोर कर रही है, जिसे वो बचाने का दावा करती है.

ममता बनर्जी का कहना है कि पश्चिम बंगाल सरकार 'संविधान हत्या दिवस' नहीं मनाएगी. और, सवाल उठाया है कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं या अमित शाह?

टीएमसी नेता कहती हैं, जो लोग संविधान का सम्मान नहीं करते, वे अब इसकी पवित्रता की बात कर रहे हैं… ये तो मजाक है. 

ममता बनर्जी 'संविधान हत्या दिवस' के खिलाफ क्यों?

ममता बनर्जी ने अपनी राजनीति कांग्रेस से ही शुरू की थी. 1997 में बंगाल कांग्रेस नेतृत्व से मतभेद होने के कारण पार्टी छोड़ दी, और करीब एक साल बाद अपनी पार्टी तृणमूल कांग्रेस बना ली थी. 

ये इमरजेंसी ही है जिसने ममता बनर्जी को रातोंरात सुर्खियों में ला दिया. 1975 में जेपी के नाम से मशहूर रहे जय प्रकाश नारायण कोलकाता (तब कलकत्ता) में इमरजेंसी के विरोध में समर्थकों के साथ जनसभा को संबोधित करने वाले थे. कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने रास्ता रोक दिया, और विरोध करने लगे - तभी ममता बनर्जी जेपी की कार के बोनट पर चढ़ गईं और जोर जोर से नारेबाजी करने लगीं. 

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उस वाकये के बाद तो ममता बनर्जी हर तरफ छा गईं. ममता बनर्जी के विरोध की तस्वीर अखबारों में छपी और उसके साथ ही तरक्की के रास्ते खुल गये. 

क्या ममता बनर्जी के अंदर का इमरजेंसी समर्थक ही आज संविधान हत्या दिवस का विरोध कर रहा है?
 

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