ममता बनर्जी के लिए 2021 का विधानसभा चुनाव काफी मुश्किल हो गया था, लेकिन जैसे तैसे संभल गया. लेकिन, अब तो लगता है 2026 में हालात और भी चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं. और ऐसी आशंकाएं भी यूं ही नहीं बन रही हैं. दिल्ली से अरविंद केजरीवाल की विदाई के बाद से ये आशंका काफी बढ़ी हुई है.
पिछली बार तो हाथ से निकल चुका मामला प्रशांत किशोर ने संभाल लिया था, लेकिन अब तो वो भी अपनी राजनीतिक दुनिया बसाने की कोशिश में लग गये हैं. जिस तरह से ममता बनर्जी कांग्रेस के साथ पेश आ रही हैं, दिल्ली जैसी परिस्थितियां पश्चिम बंगाल में भी बन सकती हैं, जहां दिल्ली की ही तरह कांग्रेस ममता बनर्जी के साथ बीजेपी के 'खेला' को और भी हवा दे सकती है, और लेफ्ट को तो ऐसे ही मौके का इंतजार है.
यही वजह है कि ममता बनर्जी अभी से चुनाव की तैयारियों में लग गई हैं. जबकि चुनाव होने में अभी एक साल का वक्त बचा हुआ है. ममता बनर्जी अपने वोटर को अच्छी तरह जानती हैं. ये भी जानती हैं कि पश्चिम बंगाल में वोट कैसे लिये जाने हैं. तभी तो नंदीग्राम में चंडी पाठ भी करने लगती है, और मौका देखकर फुरफुरा शरीफ भी पहुंच जाती है.
2019 के आम चुनाव में ममता बनर्जी को बीजेपी ने बड़ा झटका दे दिया था, लेकिन 2021 के विधानसभा चुनाव के जोश ने 2024 में बीजेपी को बंगाल में आगे बढ़ने से रोक दिया - ममता बनर्जी अच्छी तरह जानती हैं कि उनका वोटर क्या चाहता है, और काम का कोई भी ऐसा मौका वो जाने नहीं देतीं.
पूरा फुरफुरा शरीफ भी 2021 के चुनाव में एक बड़ी चुनौती बना था, लेकिन असदुद्दीन ओवैसी तो चले नहीं, इंडियन सेक्युलर फ्रंट भी ज्यादा डैमेज नहीं कर पाया - और अब तो पीरजादा कासेम सिद्दीकी को साथ लेकर ममता बनर्जी ने इलाके में पैठ बनाने की बड़ी चाल चल दी है.
ममता बनर्जी का पीरजादा कासेम सिद्दीकी को साथ लेना
तीन महीने पहले ही ममता बनर्जी ने ईद के खास मौके पर फुरफुरा शरीफ का दौरा किया था. पार्क सर्कस की इफ्तार पार्टी और कई जगह पीरजादा कासेम सिद्दीकी को ममता बनर्जी के साथ देखा गया था. जाहिर है, पीरजादा कासेम सिद्दीकी को टीएमसी में लेने का फैसला ममता बनर्जी ने तभी कर लिया होगा. कोशिश पहले भी हुई होगी, और हो सकता है बाद में भी वो ममता बनर्जी के साथ आने का मन न बना पा रहे हों. क्योंकि जिस तरीके से पीरजादा कासेम सिद्दीकी को सीधे तृणमूल कांग्रेस का पदाधिकारी बनाया गया है, वो तरीका तो किसी को अवॉर्ड देने जैसा ही लगता है.
पीरजादा कासेम सिद्दीकी को तृणमूल कांग्रेस का महासचिव नियुक्त किया गया है. ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी भी टीएमसी के महासचिव ही हैं. जैसे कांग्रेस में प्रियंका गांधी वाड्रा. वैसे अभिषेक और प्रियंका दोनों ही लोकसभा सांसद हैं. हो सकता है, पीरजादा कासेम सिद्दीकी को लेकर ममता बनर्जी ने कुछ और भी प्लान कर रखा हो. आने वाले चुनावों में कोई बड़ी जिम्मेदारी भी दी जा सकती है.
जिस तरीके से पीरजादा कासेम सिद्दीकी को सीधे टीएमसी का महासचिव बनाया गया है, वो भी खास ध्यान खींचता है. क्योंकि जैसे किसी को पहले पार्टी में आने पर औपचारिक तौर पर शामिल किया जाता है, सदस्यता दिलाई जाती है. ऐसा करने के लिए सार्वजनिक तौर पर कार्यक्रम किया जाता है, पीरजादा कासेम सिद्धीकी के मामले में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है.
पीरजादा सिद्दीकी का इलाके में असर तो है ही. वैसे भी वो इंडियन सेक्युलर फ्रंट वाले अब्बास सिद्दीकी और भांगड़ से विधायक नौशाद सिद्दीकी के रिश्तेदार भी हैं. ममता बनर्जी ने वक्त रहते ये काम कर लिया है - अगर पीरजादा सिद्धीकी टीएमसी को बहुत वोट न भी दिला पायें, लेकिन दक्षिण 24 परगना में ममता बनर्जी के खिलाफ चल रही हवा का रुख बदलकर उस प्रभाव को न्यूट्रलाइज कर दें तो भी तो फायदा ही होगा.
मुस्लिम वोट बैंक को लेकर हमेशा अलर्ट रहती हैं ममता बनर्जी
30 मई को बंगाल पुलिस ने गुरुग्राम से शर्मिष्ठा पनोली को गिरफ्तार किया था. 22 साल की शर्मिष्ठा पनोली को एक सोशल मीडिया पोस्ट के लिए गिरफ्तार किया गया था. शर्मिष्ठा पनोली ने पोस्ट को डिलीट कर दिया था, और माफी भी मांग ली थी. असल में, अपनी वीडियो पोस्ट में शर्मिष्ठा पनोली ने कुछ मुस्लिम बॉलीवुड स्टार पर ऑपरेशन सिंदूर पर चुप्पी साधने को लेकर नाराजगी जताई थी. वीडियो में इस्तेमाल की गई भाषा को सांप्रदायिक और आपत्तिजनक बताते हुए वजाहत खान नाम के शख्स ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी.
शर्मिष्ठा पनोली को अब कोर्ट से जमानत मिल गई है, लेकिन इस मुद्दे पर राजनीति जारी है. शर्मिष्ठा के खिलाफ पुलिस एक्शन को बीजेपी ममता बनर्जी की मुस्लिम तुष्टिकरण वाली राजनीति से जोड़कर पेश कर रही है. बीजेपी नेता सुवेंदु अधिकारी ने इसे सनातन धर्म के खिलाफ ममता बनर्जी की सरकार की पक्षपात की नीति बताया है.
वैसे अब बंगाल पुलिस को शर्मिष्ठा की पुलिस में शिकायत करने वाले वजाहत खान को भी कोलकाता पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है. वजाहत खान के खिलाफ श्री राम स्वाभिमान परिषद की तरफ से FIR दर्ज कराई गई थी. वजाहत पर भी धार्मिक भावनाएं भड़काने और नफरत फैलाने के आरोप लगे हैं.
ध्यान से देखें तो शर्मिष्ठा पनोली के खिलाफ भी ममता बनर्जी का वही स्टैंड नजर आता है, जो राम मंदिर उद्घाटन समारोह के बहिष्कार के फैसमें देखने को मिलता है, और प्रयागराज महाकुंभ को 'मृत्यु कुंभ' करार दिये जाने में समझा जाता है. 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष की तरफ से सबसे पहले ममता बनर्जी ने ही राम मंदिर उद्घाटन समारोह में शामिल न होने का ऐलान किया था, कांग्रेस का स्पष्ट रुख तो उसके बाद सामने आया था - कांग्रेस भले ही बचाव की मुद्रा में आ जाती हो कि बीजेपी ने उसे मुस्लिम पार्टी के रूप में बदनाम कर दिया है, लेकिन मुस्लिम वोट बैंक की खुलकर असली राजनीति तो ममता बनर्जी करती हैं.