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बंगाली बोलने वालों को टार्गेट किए जाने के मामले में ममता की दलील तो सबूत सहित सही है

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बीजेपी शासित राज्य सरकारों पर बंगाली बोलने वालों को निशाना बनाये जाने का आरोप लगाया है. हालांकि, महाराष्ट्र में पकड़े गए कुछ लोगों को बांग्लादेश भेजने के बाद वापस भी लाया गया है - और ममता बनर्जी का दावा महज राजनीतिक नहीं लगता.

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ममता बनर्जी को बीजेपी की महाराष्ट्र सरकार ने हमले को मौका तो दे ही दिया है.
ममता बनर्जी को बीजेपी की महाराष्ट्र सरकार ने हमले को मौका तो दे ही दिया है.

ममता बनर्जी ने बांग्लाभाषी लोगों को लेकर बीजेपी पर बड़ा हमला बोला है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का आरोप है कि बीजेपी शासित राज्यों में बंगाली बोलने वाले नागरिकों को निशाना बनाया जा रहा है. आरोप है, जिन बंगालियों के पास वैध दस्तावेज हैं, उन्हें भी अवैध बांग्लादेशी प्रवासी बताकर कार्रवाई की जा रही है.  

पश्चिम बंगाल विधानसभा में प्रश्नकाल के दौरान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का कहना था, बीजेपी को शर्म आनी चाहिए... वे देश के नागरिकों को सिर्फ उनकी भाषा के आधार पर बांग्लादेशी बता रहे हैं. ममता बनर्जी ने कहा, बंगाली के साथ-साथ गुजराती, मराठी और हिंदी में बोलने में भी गर्व महसूस होना चाहिए... अगर आप मुझसे पूछें तो मैं इन सभी भाषाओं में बोल सकती हूं.

तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी के बयान पर बीजेपी विधायकों ने पश्चिम बंगाल विधानसभा में जमकर हंगामा किया. विडंबना ये है कि ममता बनर्जी के हस्तक्षेप के बाद बांग्लादेश भेज दिये गये लोग अब लौट भी आये हैं - ऐसे में ममता बनर्जी के आरोप महज राजनीतिक भी नहीं लगते, लेकिन उनकी दलील थोड़ी कमजोर जरूर लगती है. 

जो बांग्लादेश से वापस लाये गये 

जो लोग बांग्लादेश से वापस लाये गये हैं, सभी मामले एक जैसा ही हैं. पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद निवासी महबूब शेख को महाराष्ट्र पुलिस ने अवैध बांग्लादेशी प्रवासी होने के शक में उठा लिया, और बीएसएफ को सौंप दिया. महबूब शेख सहित पांच ऐसे लोगों को बीएसएफ ने बांग्लादेश की सीमा में भेज दिया - लेकिन, पश्चिम बंगाल सरकार के हस्तक्षेप के बाद महबूब शेख सहित पांचों लोगों को बांग्लादेश से वापस भी ला दिया गया है. 

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पश्चिम बंगाल के ही नॉर्थ 24 परगना जिले से रोजी रोटी के मकसद से महाराष्ट्र पहुंचे एक युवा दंपति के साथ भी ठीक ऐसा ही हुआ था. करीब 20 साल के फाजेर मंडल और तस्लीमा की कुछ ही दिन पहले शादी हुई थी, और कंस्ट्रक्शन का काम मिल जाने पर महाराष्ट्र पहुंचे थे, लेकिन पुलिस ने उनको पकड़ा और वे भी महबूब शेख की तरह बांग्लादेश भेज दिये गये. 

बंगाल में बगदाह के हरिहरपुर गांव के रहने वाले फाजेर मंडल ने बतौर सबूत आधार कार्ड और वोटर आईडी दिखाये थे, लेकिन पुलिस ने एक न सुनी. जाहिर है, बाकियों का मामला भी करीब करीब ऐसा ही है. 

ओसामा भी तो पाकिस्तानी था, वोट भी देता रहा

हाल ही में, इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में मीरा रोड थाने की सीनियर इंसपेक्टर मेघना बुराड़े ने पुलिस एक्शन को सही ठहराया था. महबूब शेख केस को लेकर पुलिस अफसर का कहना था, 'हमने महबूब से ठोस सबूत, जैसे जन्म प्रमाण पत्र, दिखाने को कहा था... हम सिर्फ आधार या पैन कार्ड को नागरिकता के प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं करते, क्योंकि इनका दुरुपयोग हो सकता है... वो वैध डॉक्यूमेंट नहीं दिखा पाया, न ही कोई पारिवारिक पहचान का भी प्रमाण ही दे सका.'

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पुलिस की दलील अपनी जगह है, लेकिन बांग्लादेश भेजे गये लोगों का औपचारिक तरीके से लौट आना भी एक सबूत ही है. अगर महबूब शेख बांग्लादेशी होते तो क्या उनको वापस लाया जा सकता था? 

बेशक उनके पास वैध दस्तावेज होंगे, और तभी लाये जा सके हैं. लेकिन, आधार और पैन कार्ड को लेकर पुलिस अफसर की बात तो सही ही लगती है. ममता बनर्जी का ये कहना तो ठीक है कि उन लोगों के पास वैध दस्तावेज थे, लेकिन पुलिस के मांगने पर तो वे कागज नहीं दिखा सके. अब अगर पुलिस की गलती है, तो जांच का विषय है. क्या पुलिस ने उनकी तरफ से पेश किये गये सही कागजात को नजरअंदाज किया?

रही बात आधार और पैन कार्ड की, तो रावलपिंडी के रहने वाले ओसामा ने भी बताया था कि उसके पास ऐसे सारे दस्तावेज थे. वो वोट भी देता आ रहा था. लेकिन, पहलगाम हमले के बाद थाने से उसके पास फोन गया, और तत्काल भारत छोड़ने को बोल दिया गया.

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