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नीतीश कुमार के लिए हमेशा दरवाजा खुला रखने वाले लालू यादव ने पलटी क्यों मार ली?

लालू प्रसाद यादव ने आखिरकार नीतीश कुमार के लिए ‘हमेशा खुला’ रहने वाला दरवाजा बंद कर ही दिया. लालू यादव ने अब नीतीश कुमार के साथ किसी तरह के संपर्क होने और फिर से गठबंधन की किसी भी संभावना को पूरी तरह खारिज कर दिया है - क्या लालू यादव के फैसले में तेजस्वी यादव का भी रोल है?

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नीतीश कुमार के 'अब कहीं नहीं जाएंगे' जैसी बातों को लगता है लालू यादव ने गंभीरता से ले लिया है. (Photo: PTI)
नीतीश कुमार के 'अब कहीं नहीं जाएंगे' जैसी बातों को लगता है लालू यादव ने गंभीरता से ले लिया है. (Photo: PTI)

नीतीश कुमार के लिए 'हमेशा खुला रहने वाला दरवाजा' लालू यादव ने बंद कर दिया है. हो सकता है, ये दरवाजा पहले ही बंद कर दिया गया हो. मालूम अभी अभी हुआ है. लालू यादव ने लगता है इस बार नीतीश कुमार के मामले में खुद पलटी मार ली है. मतलब, यू-टर्न ले लिया है - और देखा जाए तो तेजस्वी यादव की बात सही साबित हुई है. 

2024 के लोकसभा चुनाव से पहले महागठबंधन छोड़कर चले जाने के बाद भी लालू यादव को सख्त लहजा अपननाते नहीं देखा जा रहा था. काफी दिनों तक तेजस्वी यादव भी नीतीश कुमार के प्रति नरम रुख ही दिखाते रहे. बीमार मुख्यमंत्री और भ्रष्टाचार के भीष्म पितामह जैसे शब्दों का इस्तेमाल तो तेजस्वी यादव चुनाव की तारीख नजदीक आते देख करने लगे थे. 

नीतीश कुमार को लेकर तेजस्वी यादव ने अपनी तरफ से महागठबंधन में वापसी की संभावनाओं से काफी पहले ही इनकार कर दिया था. और, लालू यादव के बारे में भी दावा किया था कि उनके पिता भी ऐसा नहीं होने देंगे. लेकिन, राजनीति में कोई स्थाई भाव तो होता नहीं. विशेष रूप से बिहार की राजनीति में, और कम से कम तब से जब से नीतीश कुमार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ गए हैं. 

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नई पारी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ होने पर नीतीश कुमार लगातार कहते आ रहे हैं कि अब वो कहीं नहीं जाएंगे. गलती हो गई थी, अब वो गलती नहीं दोहराएंगे - लगता है, लालू यादव ने नीतीश कुमार की बातों को गंभीरता से ले लिया है. 

नीतीश के लिए लालू ने बंद किया दरवाजा

इंडियन एक्सप्रेस के साथ इंटरव्यू में आरजेडी प्रमुख लालू यादव ने साफ साफ बता दिया है कि नीतीश कुमार को लेकर अब उनका रुख पूरी तरह बदल गया है. पहले लालू यादव कहा करते थे कि नीतीश कुमार के लिए उनके दरवाजे हमेशा खुले हुए हैं - सवाल ये है कि आखिर नीतीश कुमार को लेकर लालू यादव के मन में ये बदलाव क्यों और कैसे आया?

लालू यादव का ताजा बयान है, 'अब हम नीतीश कुमार के साथ गठबंधन नहीं करेंगे.' और साथ ही, वो जोड़ देते हैं, 'अब हम नीतीश के संपर्क में नहीं हैं.'

मतलब, अध्याय समाप्त. लेकिन, आगे कुछ भी होने की गारंटी है. ट्रैक रिकॉर्ड तो यही बताता है. 

मुश्किल तो ये है कि नीतीश कुमार के मामले में ऐसी बातें सिर्फ कहने सुनने के लिए होती हैं. कहने को तो 2022 में नीतीश कुमार के एनडीए छोड़कर महागठबंधन में चले जाने के बाद बिल्कुल ऐसी ही बात केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने भी कही थी - लेकिन, अगला आम चुनाव आते आते सब कुछ बदल गया. 

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लालू यादव और नीतीश कुमार की दोस्ती की बड़ी लंबी कहानी है, जिसमें बड़े दिलचस्प मोड़ भी देखने को मिले हैं. बीते तीन दशक में दोस्ती की ये दास्तान ने कई करवटें ली हैं. लालू यादव से अलग होने के बाद भी, तेजस्वी यादव से हद से ज्यादा गुस्सा होने पर भी, नीतीश कुमार के मुंह से निकलता है, 'मेरे भाई जैसे दोस्त का बेटा...'

नीतीश कुमार का दोनों गठबंधनों के लिए मुफीद होना ही, उनको महत्वपूर्ण बनाता है. नीतीश कुमार की यही खासियत दोनों तरफ उनकी बराबर अहमियत बनाए रखती है. 

तभी तो नीतीश कुमार के मामले में लालू यादव के ताजा बयान में भी अमित शाह के पुराने बयान की गूंज सुनाई दे रही है. 
 
लालू यादव ने क्यों बंद किया दरवाजा?

नीतीश कुमार के साथ छोड़ देने के करीब साल भर बाद लालू यादव ने साफ तौर पर कहा था, ‘हमारे दरवाजे नीतीश कुमार के लिए खुले हैं. उन्हें अपने दरवाजे भी खोल देने चाहिए. इससे दोनों तरफ के लोगों की आवाजाही में सुविधा होगी.’

एक इंटरव्यू में लालू यादव ने कहा था, नीतीश आते हैं तो साथ काहे नहीं लेंगे? ले लेंगे साथ… नीतीश कुमार भाग जाते हैं, हम माफ कर देंगे... रहें साथ में काम करें. 

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उन दिनों आरजेडी की तरफ से बार बार कहा जा रहा था कि नीतीश कुमार की महागठबंधन में वापसी नहीं होने वाली है. जब ये बात लालू यादव को याद दिलाई गई तो उनका कहना था, हम लोग फैसला लेते हैं, लेकिन नीतीश कुमार को शोभा नहीं देता है... वो बार-बार भाग जाते हैं, निकल जाते हैं... अगर वो फिर आएंगे तो रख लेंगे.

लेकिन, कुछ दिन बाद ही तेजस्वी यादव ने अपनी तरफ से साफ करने की कोशिश की कि लालू यादव फिर से नीतीश कुमार को साथ नहीं लेने वाले हैं. बोले, कभी नहीं… मेरे पिता हैं, मैं जानता हूं... किसी की एक गलती के बाद उसे माफ कर देना ठीक है, लेकिन अब उन्होंने वही गलती दो बार की है… तो उनकी माफी बनती नहीं… अब नीतीश कुमार जहां भी जाएंगे, सिर्फ बोझ बनकर रह जाएंगे.

क्या लालू यादव का ताजा बयान तेजस्वी यादव के स्टैंड का एनडोर्समेंट है? 

बेशक लालू यादव ही राष्ट्रीय जनता दल के सर्वेसर्वा हैं, लेकिन हाल फिलहाल चलती तो तेजस्वी यादव की ही है. ऐसी बातें आरजेडी के भीतर और बाहर हर जगह चल रही हैं. और, तेज प्रताप यादव के प्रति सख्ती की भी एक वजह तेजस्वी यादव की जिद बताई जाती है. 

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लालू परिवार के करीबियों और पार्टी की गतिविधियों पर नजर रखने वालों की मानें तो तेजस्वी यादव के मामले में अब परिवार की नहीं के बराबर चलती है. तेजस्वी यादव काफी फैसले अपने भरोसेमंद सलाहकार राज्यसभा सांसद संजय यादव के सुझावों के हिसाब से लेते हैं. वही संजय यादव जिनको तेज प्रताप यादव 'जयचंदवा' कह कर बुलाने लगे हैं. 

राजनीतिक मजबूरी की बात और है, वरना एनडीए में भी नीतीश कुमार का दम वैसे ही घुट रहा है, जैसे महागठबंधन में घुटता था. एनडीए के बारे में तो नहीं, लेकिन महागठबंधन के बारे में तो नीतीश कुमार किसी न किसी बहाने अपनी ये राय जाहिर कर ही चुके हैं - और अपनी 'पलटीमार' छवि में एक और किरदार शामिल कर अपनी तरफ से दोनों पक्षों को खुश करने की कोशिश भी कर चुके हैं. 

ज्यादा दिन की बात भी नहीं है. एक बार नीतीश कुमार ने अपने बचाव में साथी जेडीयू नेता और केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह को ही कठघरे में खड़ा कर दिया. नीतीश कुमार ने बताया कि ललन सिंह के कहने पर ही वो एनडीए छोड़कर महागठबंधन में गए थे. और, उनके ही कहने पर महागठबंधन छोड़कर एनडीए में लौटे - मतलब, नीतीश कुमार ने ललन सिंह पर ही सारी तोहमत मढ़ डाली है. 

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लेकिन, लालू यादव का नीतीश कुमार के लिए दरवाजे बंद कर देना यूं ही लिया गया फैसला नहीं लगता. क्या लालू यादव के फैसले में तेजस्वी यादव की भी कोई भूमिका है?
 

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