अरविंद केजरीवाल के लिए अभी सबसे महत्वपूर्ण तो लुधियाना वेस्ट उपचुनाव ही है. लुधियाना वेस्ट उपचुनाव का नतीजा ही अरविंद केजरीवाल का नजदीकी राजनीतिक भविष्य तय करने वाला है. क्योंकि, लुधियाना उपचुनाव आम आदमी पार्टी के नेता को राष्ट्रीय राजनीति का लाइसेंस मिल जाएगा.
लुधियाना के साथ साथ विसावदर उपचुनाव का रिजल्ट भी अरविंद केजरीवाल के लिए काफी महत्वपूर्ण होगा. चुनाव कैंपेन के दौरान लुधियाना में अरविंद केजरीवाल जहां लोगों से विकास कार्यों को लेकर सीधे संवाद करते आ रहे हैं, वहीं विसावदर में निशाने पर बीजेपी है. वही बीजेपी जिसने ने दिल्ली में आम आदमी पार्टी को सत्ता से बेदखल कर दिया है.
हाल ही में ये भी खबर आई थी कि आम आदमी पार्टी आने वाले दो साल के भीतर होने जा रहे विधानसभा चुनावों में भी खुद को आजमाने की तैयारी कर रही है. बिहार चुनाव को लेकर तो बता ही दिया है कि आम आदमी पार्टी सभी 243 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही है. अब तो राज्यसभा सांसद संजय सिंह भी बिहार का दौरा कर हालात का जायजा ले चुके हैं.
19 जून को होने जा रहे उपचुनावों के नतीजे 23 जून को वोटों की गिनती के बाद आएंगे - अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के भविष्य के हिसाब से महत्वपूर्ण राजनीतिक मोड़ भी वही होगा - उसके बाद ही आगे का रास्ता साफ साफ नजर आएगा.
1. लुधियाना केजरीवाल की राजनीति के लिए लिटमस टेस्ट है
अगर मेहनत रंग लाती है, तो अरविंद केजरीवाल ने लुधियाना वेस्ट उपचुनाव के लिए कैंपेन में कोई कसर बाकी नहीं रखी है. दिल्ली चुनाव के कुछ ही दिन बाद विपश्यना के लिए पंजाब निकले तो वहीं जम गये. लुधियाना में वोट भी धमकाने वाले अंदाज में ही मांग रहे थे. साफ साफ बोल चुके हैं कि अगर लुधियाना वेस्ट सीट पर आम आदमी पार्टी चुनाव हार गई तो विकास के काम नहीं हो पाएंगे. दिल्ली में भी केजरीवाल कई बार ऐसे ही बोल रहे थे, और उसका नतीजा सबने देख ही लिया है.
अब तो अरविंद केजरीवाल के बयान से ये भी साफ हो चुका है कि अभी तो लुधियाना ही उनके राज्यसभा पहुंचने का एकमात्र रास्ता है. वो ये भी बता चुके हैं कि संजीव अरोड़ा जीते तो उनको पंजाब सरकार में मंत्री बनाया जाएगा, लेकिन सवाल ये उठता है कि संजीव अरोड़ा हार गये तो क्या होगा?
लिहाजा, सबसे अहम तो लुधियाना ही है. जीते तो बल्ले बल्, हारे तो राज्यसभा जाना मुश्किल हो जाएगा. ऐसा कोई है भी नहीं जो अपने नेता के लिए इस्तीफा देकर राज्यसभा का रास्ता साफ कर दे. बाकी पार्टियों में ऐसा कई बार देखने को मिला है. नेता के लिए लोग सीट छोड़ने को तैयार रहते हैं. लेकिन, आम आदमी पार्टी इस मामले में अपवाद लगती है.
2. विसावदर के आगे गुजरात का पूरा मैदान है
लुधियाना के साथ ही गुजरात की विसावदर विधानसभा सीट पर भी उपचुनाव हो रहा है. अरविंद केजरीवाल का कहना है कि उन्होंने अपने हीरो को मैदान में उतारा है. अरविंद केजरीवाल ने तो बीजेपी को यहां तक चैलेंज कर रखा है कि अगर पार्टी गोपाल इटालिया को तोड़ ले तो वो राजनीति छोड़ देंगे.
चुनाव कैंपेन में अरविंद केजरीवाल बीजेपी पर लगातार हमलावर देखे गये हैं. ऐसा लगता है जैसे अरविंद केजरीवाल विसावदर से ही पूरे गुजरात के लोगों को संबोधित कर रहे हैं. चुनावी रैली में अरविंद केजरीवाल कह रहे थे, बीजेपी ने 30 साल के राज में गुजरात को 50 साल पीछे ढकेल दिया है... आज गुजरात में बिजली, पानी, सड़कें, रोजगार कुछ भी नहीं है... हर तरफ हाहाकार मचा हुआ है... पूरी दुनिया में शानदार सड़कें बन रही हैं, लेकिन बीजेपी 30 साल में सड़क तक नहीं बना पाई... भले ही गुजरात में भाजपा 30 साल से है, लेकिन 20 साल से विसावदर के लोगों ने उसे जीतने नहीं दिया है... विसावदर का चुनाव महाभारत से कम नहीं है.
साफ है, अरविंद केजरीवाल विसावदर से ही पूरे गुजरात के लोगों को संबोधित कर रहे हैं. गुजरात में भी 2027 में ही विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं, लेकिन पंजाब के बाद. पंजाब में सत्ता में वापसी की चुनौती होगी, और गुजरात में बीजेपी के सामने धाक जमाने की.
2022 के गुजरात चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 5 सीटें जीती थीं, जबकि बीजेपी ने जीत का रिकॉर्ड कायम किया था. कांग्रेस तो 2017 जैसा प्रदर्शन नहीं कर पाई थी, क्योंकि आम आदमी पार्टी ने उसी के वोट बैंक में सेंध लगाई थी. आने वाले चुनाव में तो आम आदमी पार्टी को भी रेस में बने रहने के लिए अपना प्रदर्शन सुधारना होगा.
3. अगर नतीजे मनमाफिक नहीं आये
लुधियाना वेस्ट और विसावदर दोनों सीटों पर आम आदमी पार्टी को जीत मिल जाए, फिर कहना ही क्या. फिर तो शायद ये भी भूल जाये कि कुछ ही दिन पहले तो दिल्ली में शिकस्त मिली थी. कामयाबी तो ऐसे ही सुकून देती है. विसावदर न सही, सिर्फ लुधियाना वेस्ट ही हाथ लग जाये तो भी केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की गाड़ी फिर से रफ्तार पकड़ लेगी.
लेकिन जिस आत्मविश्वास से अरविंद केजरीवाल ने विपक्षी गठबंधन INDIA ब्लॉक से नाता तोड़ लिया है, अगर नतीजे मनमाफिक नहीं आये तो तेवर बदलने पड़ेंगे. राष्ट्रीय राजनीति में प्रासंगिक बने रहने के लिए समझौते भी करने पड़ेंगे. कांग्रेस से फिर से हाथ मिलाने का फैसला करना पड़ेगा. क्योंकि बीजेपी से अकेले लड़ना तो असंभव होता जा रहा है.