बीती रात कुछ ईरानी सोशल मीडिया अकाउंट्स से यह दावा किया गया कि "दुनिया को एक ऐसा सरप्राइज मिलने वाला है जिसे वह कभी नहीं भूलेगी." इसके कुछ ही देर बाद, तेल अवीव के आसमान में मिसाइलों के इंटरसेप्शन का नया फुटेज सामने आlता है और फिर एक हाइपरसोनिक मिसाइल आयरन डोम को चीरते हुए बिजली की रफ्तार से ज़मीन पर गिरती है. थोड़ी देर में आग के गोले के साथ धमाके की आवाज़ आती है. ये नजारा किसी को सुकून देता है तो किसी को खौफ.
मुझे याद है जब भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान जम्मू में ड्रोन मंडरा रहे थे, तब मेरे एक दोस्त, जिसके मां-बाप सैनिक कॉलोनी में रहते थे, ने अपने माता-पिता को फ़ोन करने की कोशिश की लेकिन संपर्क नहीं हो सका. वह बेसुध हो गई थीं.
ठीक इसी तरह तेल अवीव के उन लोगों के बारे में सोचिए जिनके अपार्टमेंट पर हाइपरसोनिक मिसाइल आयरन डोम को चीरते हुए गिरी. इसके बाद भले ही इजरायल ने ईरान में बमबारी की हो लेकिन मिसाइल के गिरने का खौफ इन लोगों के दिल से शायद ही निकल पाएगा.
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युद्ध अब सोशल मीडिया तक सीमित नहीं
सोशल मीडिया के इस दौर में यह भी साफ हो गया है कि अब जंगें सिर्फ सीमाओं तक सीमित नहीं रहीं हैं. ड्रॉइंग रूम में बैठकर लोग मज़ाक भी कर रहे हैं और रणनीति भी समझ रहे हैं. जब तक आप किसी युद्धरत देश की सबसे लंबी दूरी की मिसाइल की रेंज से बाहर हैं, तब तक आप उस पर मज़ाक भी बना सकते हैं और अपना मनपसंद खाना भी ऑर्डर करवा सकते हैं.
छह महीने पहले यह तकनीकी विश्लेषण आम नागरिक की ज़ुबान पर नहीं था, लेकिन युद्ध ने सब सिखा दिया. जब युद्ध आपके दरवाजे तक आए, तो सीखना पड़ता है. हर युद्ध असल में डिफेंस टेक्नोलॉजी कंपनियों के लिए एक प्रदर्शनी की तरह होता है जहां ड्रोन से लेकर आयरन डोम तक, हर चीज़ बिकाऊ है. ये वैसे ही है जैसे दिल्ली में एक रईस शख्स छतरपुर में एक शानदार फार्महाउस के साथ शुतुरमुर्ग भी पाल ले.
मुनीर के साथ ट्रंप का लंच
ईरान-इजरायल के इस संघर्ष के बीच अचानक खबर आती है कि डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान के आर्मी चीफ जनरल आसिम मुनीर को लंच पर बुलाया है. मोदी जी को भी बुलाया गया था, लेकिन खबर आई कि उन्होंने इनकार कर दिया. इसका मतलब ट्रंप को शाकाहारी खाने की चिंता नहीं करनी पड़ी होगी. मुनीर के साथ डाइनिंग टेबल साझा करने का मतलब है कि पाकिस्तान से कुछ एयरस्पेस मिलना तय है.
कहानी पुरानी है, लेकिन पटकथा बदली नहीं है. अमेरिका फिर से सिविल गवर्नमेंट को बायपास करते हुए सेना प्रमुख से डील करता है. पाकिस्तान एक बार फिर अपना किराया वसूलता है. वह अपनी एक सीमा पर पहले ही काफी किराया वसूल चुका है, अब दूसरी सीमा का फायदा उठाने का समय आ गया है. वहीं भारत की बात करें तो वह शायद कुछ और सुखोई और S-400 खरीदने की प्रक्रिया में लग जाए.
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वहीं भारत की मुख्य विपक्षी पार्टी, जो अभी तक 2019 के बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक से सत्तारूढ़ पार्टी को मिली वोट बढ़त से उबर नहीं पाई है,इस बार "ऑपरेशन सिंदूर" से सरकार को कोई लाभ न मिले, इसकी कोशिश में लगी है. ट्रंप का यह लंच न्योता उसी रणनीति को बल देता है, वो भी विदेश नीति के मामलों में राष्ट्रीय सहमति की कीमत पर.
इस तरह की घटनाएं पाकिस्तान में राजनीतिक प्रचार सामग्री बन जाती हैं जहां दिखाया जाता है कि विपक्षी नेता को जेल में रखने से कैसे "लाभ" मिलता है.
ट्रंप की नोबेल भूख
ये ट्रंप का समय हैं. हर देश, कहीं न कहीं, ट्रंप की नोबेल की भूख को तुष्ट करने के लिए अप्रत्यक्ष रूप से एक मोहरा बन चुका है. युद्ध ट्रंप के लिए अवसर हैं, और दुनिया के देश उन्हें अगला नोबेल शांति पुरस्कार दिलाने में मदद करने के लिए आपस में लड़ रहे हैं. उन्हें बस नोबेल चाहिए.
(लेखक- अभिषेक अस्थाना एक क्रिएटिव एजेंसी - जिंजरमंकी के संस्थापक हैं.)