पहलगाम हमले में 26 भारतीयों के जान गंवाने के बाद भारत सरकार ने तत्काल एक्शन लेते हुए 1960 में हुए सिंधु जल समझौते को रद्द कर दिया है.जाहिर है कि ये एक्शन भारत के तमाम बड़े अफसरों और नेताओं के विचार विमर्श के बाद लिया गया. इस एक्शन के पहले विपक्ष को भी भरोसे में लिया गया होगा. पर आश्चर्य है कि सिंधु नदी का पानी रोकने के मुद्दे पर जिस तरह का विधवा विलाप देश के कुछ नेताओं ने शुरू किया है वह न केवल हास्यास्पद है बल्कि उनकी विश्वसनियता पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है. भारत के इस फैसले के बाद जहां पाकिस्तानी अवाम और सरकार में डरावनी हलचल है. वहीं भारत में नरेंद्र मोदी सरकार को पसंद नहीं करने वाले ऐसे तर्क गढ़ रहे हैं जिसे सुनकर कोई भी देशप्रेमी शर्मिंदा हो सकता है. भारत में खुद को बुद्धिजीवी समझने वाले लोग ऐसी बातें कह रहे हैं कि जैसे सिंधु जल समझौता तोड़कर भारत की शामत आ जाएगी. कोई कह रहा है कि ऐसा संभव ही नहीं हो सकता. हद तो यह है कि पाकिस्तान के लगातार अमानवीय कृत्यों के बाद भी कुछ लोग पानी रोकने में मानवीय पहलू ढूंढ रहे हैं.
पाकिस्तान का पानी बंद करने पर मोदी सरकार का विरोध करने वाले शायद ये नहीं जानते
सिंधु नदी जल समझौते को स्थगित करने पर मोदी सरकार के खिलाफ कैसे-कैसे तर्क ढूंढे जा रहे हैं सुनकर कभी आप अपना माथा पीट लेंगे तो कभी शर्मिंदगी से आपका सर झुक जाएगा. एक कांग्रेस समर्थक हैं मनीष सिंह. एक्स पर एक लंबी पोस्ट के जरिए वो समझाते हैं कि किस तरह यह संधि तोड़ने की बात दिखावा है. वो तो अच्छा ये रहा कि उनकी पोस्ट आने के बाद खुद पाकिस्तान सरकार के मंत्रियों ने यह जता दिया कि यह संधि तोड़ना पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध छेड़ने जैसा ही है. नहीं तो मनीष सिंह ने तो यह साबित कर दिया था कि जल संधि तोड़ने की बात हवा हवाई है . इससे पाकिस्तान का कुछ बिगड़ने वाला नहीं है. मनीष के अनुसार मोदी सरकार ने केवल अपनी झेंप मिटाने के लिए ये फैसला लिया है.
AIMIM नेता और सांसद असदुद्दीन ओवैसी के विरोध का आधार भारत की पानी को रखने की क्षमता पर है. असदुद्दीन ओवैसी ने इस फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि यदि भारत पाकिस्तान का पानी रोकेगा, तो इतना पानी भारत में कहां रखेगा. उनकी बात पर प्रश्नचिह्न लगाने के पहले ही पाकिस्तान से खबर आ गई कि भारत ने इतना पानी छोड़ दिया है कि वहां बाढ़ की नौबत आ गई है. हो सकता है ओवैसी को यह बात समझ में आ गई होगी कि समझौता तोड़ने का मतलब केवल पानी को रोकना ही नहीं, पानी को अधिक मात्रा में छोड़ना भी होता है.
कांग्रेस के एक नेता हैं मणिशंकर अय्यर उनका मानना है कि भारत कैसे अंतरराष्ट्रीय संधि तोड़ सकता है.अय्यर एक आईएएस अफसर रहे हैं पर उन्हें यह नहीं पता है कि दुनिया के तमाम देश राष्टहित के आगे कई संधियों को तोड़ चुके हैं. इसके साथ ही हर संधि में यह उपबंध होता है कि अगर सामने वाला देश शांति भंग करता है तो दूसरे पक्ष को संधि तोड़ने की पूरी आजादी होती है.वैसे भी भारत ने संधि को तोड़ा नहीं है केवल स्थगित किया है. यानि केवल धमकी दी है कि पाकिस्तान सुधर जाए.
किसान नेता नरेश टिकैत ने तो हद ही कर दी. वे कहते हैं कि पूरा पाकिस्तान आतंकवादी नहीं है और पानी रोकना गलत है.टिकैत को शायद कश्मीर में मारे गए पर्यटक आतंकी लगते हैं. या इसके पहल मुंबई हमले, संसद हमले , करगिल हमले में मारे गए लोग आतंकी लगते हैं. इसलिए ही उन्हें पाकिस्तान से हमदर्दी महसूस हो रही है.
भारत अभी भी चीन जैसी आक्रामक जल नीति पर नहीं काम कर रहा है
1960 में जब भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि (IWT) पर हस्ताक्षर हुए, तो यह भारत की असाधारण उदारता का प्रतीक था. भारत ने सिंधु बेसिन के 80% से अधिक जल का नियंत्रण पाकिस्तान को सौंप दिया. यह संधि शांति और सहयोग की उम्मीद पर आधारित थी. परंतु, पिछले छह दशकों में पाकिस्तान ने भारत की इस सद्भावना का उत्तर बार-बार आतंकवाद के जरिए दिया है - संसद हमले से लेकर मुंबई हमलों, उरी और पुलवामा हमलों तक. इसलिए भारत को पूरा अधिकार है कि वह इस संधि से खुद को अलग कर ले.
अंतरराष्ट्रीय कानून - विशेष रूप से वियना कन्वेंशन (VCLT) - यह स्पष्ट करता है कि यदि कोई पक्ष संधि का गंभीर उल्लंघन करता है या परिस्थितियाँ मूलतः बदल जाती हैं, तो दूसरा पक्ष संधि को निलंबित या समाप्त कर सकता है. भारत ने इस निर्णय में भी संतुलन बनाए रखा है. उसने स्पष्ट कर दिया है कि उसका उद्देश्य पाकिस्तान के आम नागरिकों को नुकसान पहुंचाना नहीं है, बल्कि पाकिस्तान की ‘डीप स्टेट’ को कड़ा संदेश देना है. भारत किसी मानवीय संकट से बचते हुए जिम्मेदारी से कार्य करेगा. जबकि चीन ने ऐसे मौके पर अपने पड़ोसियों के साथ आक्रामक जलनीति दिखाई है. भारत खुद ब्रह्मपुत्र नदी के संदर्भ में चीन की आक्रामक नीति का दर्द हर साल झेल रहा है.