78 साल के पाकिस्तान पर 33 साल सैन्य शासकों ने राज किया. इसके लिए कुल छह बार उन्हें लोकतांत्रिक सरकारों को बेदखल करने के लिए तख्तापलट करना पड़ा. लेकिन, अब उसी पाकिस्तान में ऐसा कुछ होने जा रहा है, जिसका सपना वहां के सैनिक हुक्मरान पाकिस्तान के जन्म से ही देख रहे थे. पूरे मुल्क पर कब्जा, वह भी बिना जवाबदेही के. पाकिस्तान की मौजूदा सरकार अपनी कमजोरियों को छुपाने के लिए पाक आर्मी से जो मदद ले रही थी, उसके बदले सेना प्रमुख आसिम मुनीर ने फील्ड मार्शल के पद के बाद अब पूरा पाकिस्तान मांग लिया है. और 27वें संविधान संशोधन के साथ ऐसा होने भी जा रहा है. इतनी बड़ी डील अब तक किसी सेनाध्यक्ष को नहीं मिली थी. चाहे वो जिया उल हक हों, या परवेज मुशर्रफ. फील्ड मार्शल को ताउम्र पाकिस्तान का सर्वेसर्वा बनाया जा रहा है. यह बिल पाकिस्तानी संसद के ऊपरी सदन सिनेट में पास हो गया है. निचले सदन नेशनल असेंबली में भी सरकार के पास दो-तिहाई बहुमत है, इसलिए वहां भी इसके पास होने को लेकर किसी को शक नहीं है.
आइये, सबसे पहले थोड़ा बैकग्राउंड समझते हैं. पाकिस्तान का संविधान 1973 का है, लेकिन मिलिट्री ने इसे अपनी मर्जी से इतना छेदा है कि वो अब कागज का टिश्यू पेपर जैसा हो गया है. अयूब खान, याह्या, जिया-उल-हक, मुशर्रफ. इन सबने मर्जी से संशोधन करवाए. 26वां संशोधन तो अभी-अभी हुआ था, जिसमें आर्मी चीफ आसिम मुनीर का टर्म पांच साल का कर दिया गया. और अब लाया गया है 27वां संशोधन. ये तो फील्ड मार्शल बनाए गए मुनीर को सीधा 'बादशाह' बनाने का प्लान है. सरकार कह रही है कि ये 'रिफॉर्म्स' हैं, लेकिन विपक्ष चिल्ला रहा है, 'ये तो डिक्टेटरशिप का नया चैप्टर है!'
अब आते हैं मुख्य ड्रामे पर. ये संशोधन आर्टिकल 243 को नई शक्ल दे रहा है. आर्टिकल 243 में लिखा है कि आर्म्ड फोर्सेस का कंट्रोल कैसे होगा. पहले, प्राइम मिनिस्टर और प्रेसिडेंट मिलकर तीनों सेना के प्रमुख अपॉइंट करते थे. लेकिन अब संशोधन के बाद आर्मी चीफ को 'चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेस' (CDF) बना दिया जाएगा. मतलब, मुनीर न सिर्फ आर्मी का बॉस बनेगा, बल्कि नेवी और एयर फोर्स भी उसके अधीन आ जाएंगे. जॉइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ कमिटी के चेयरमैन का ओहदा 27 नवंबर 2025 से खत्म कर दिया जाएगा. इसी दिन जनरल साहिर शमशाद मिर्जा रिटायर हो रहे हैं. उसके बाद कोई 'बैलेंस' नहीं बचेगा. सब कुछ आर्मी के हाथ में.
फील्ड मार्शल को ताउम्र बादशाहत
जहां तक फील्ड मार्शल की कहानी है, मुनीर को ये रैंक पहले ही मिल चुकी है. अयूब खान के बाद इतिहास में सिर्फ दूसरी बार. संशोधन कहता है कि ये रैंक लाइफटाइम होगी. यूनिफॉर्म, सैलरी, प्रिविलेजेस – सब ताहयात रहेगा. अगर हटाना हो तो सिर्फ पार्लियामेंट से इम्पीचमेंट के द्वारा. लेकिन, ऐसा करने की हिम्मत किसी के पास कहां. आर्टिकल 248 की इम्यूनिटी मिलेगी. कोई क्रिमिनल केस नहीं चलेगा. न अरेस्ट. पोस्ट-रिटायरमेंट में भी 'ड्यूटीज' मिलेंगी, जो सरकार तय करेगी. बिना सेना उतारे, मुनीर अब प्रेसिडेंट और प्राइम मिनिस्टर से ऊपर हैं.
प्रधानमंत्री से आर्मी के पास पहुंचेगा न्यूक्लियर कमांड
पाकिस्तान के एटम बम का कंट्रोल नेशनल स्ट्रैटेजिक कमांड (NSC) के पास है. जिसे पहले प्राइम मिनिस्टर हेड करता था, लेकिन अब एक नया 'कमांडर ऑफ नेशनल स्ट्रैटेजिक कमांड' बनेगा. और वो भी सिर्फ आर्मी से. जिसे प्राइम मिनिस्टर अपॉइंट करेगा, लेकिन रेकमेंडेशन CDF (यानी मुनीर) की. मतलब, न्यूक्लियर बटन आर्मी के पास चला जाएगा. बिना किसी टैंक के मिलिट्री अब देश की सिक्योरिटी, इकोनॉमी और यहां तक कि विदेश नीति पर कंट्रोल कर लेगी.
सेना के आगे ज्यूडिशियरी भी 'निहत्थी'
27वें संशोधन के साथ सुप्रीम कोर्ट (SC) को भी 'निहत्था' बनाया जा रहा है. नया फेडरल कांस्टीट्यूशनल कोर्ट (FCC) बनेगा, जो कांस्टीट्यूशनल पेटिशन्स, फंडामेंटल राइट्स और गवर्नमेंट डिस्प्यूट्स हैंडल करेगा. आर्टिकल 184 पाकिस्तानी SC को जनहित के मुद्दों पर स्वत: संज्ञान देने की ताकत देता था. लेकिन, 27वें संविधान संशोधन के साथ SC अब सिर्फ अपील्स का कोर्ट बचेगा, जैसे कोई डिस्ट्रिक्ट या हाईकोर्ट. FCC के जजेस अब प्रेसिडेंट, प्राइम मिनिस्टर और पार्लियामेंट से अपॉइंट होंगे. और FCC के जजेस के फैसले सुप्रीम कोर्ट सहित सभी अदालतों पर लागू होंगे. आलोचक कहते हैं, ये ज्यूडिशियरी को मिलिट्री का चमचा बना देगा. कोई चेक एंड बैलेंस नहीं बचेगा. मिलिट्री के फैसले चैलेंज करने की हिम्मत कौन करेगा?
पाक मिलिट्री के बिजनेस एम्पायर की जय हो!
27वां संविधान संशोधन पाकिस्तान के मिलिट्री कैपिटलिज्म को भी कोडिफाई कर रहा है. पाकिस्तान की सेनाएं अपने आप में एक बिजनेस एम्पायर हैं. फौजी फाउंडेशन (आर्मी), बहरीया फाउंडेशन (नेवी) और शाहीन फाउंडेशन (एयरफोर्स) पाकिस्तान की GDP का 10% कंट्रोल करती है. SIFC (स्पेशल इनवेस्टमेंट फैसिलिटेशन काउंसिल) से विदेशी इनवेस्टमेंट भी मिलिट्री के पास आता है. ये संशोधन उसे कांस्टीट्यूशनल प्रोटेक्शन दे रहा है. मिलिट्री अब 'स्टेट विदिन स्टेट' नहीं, बल्कि स्टेट ही बन जाएगी. पार्लियामेंट के तमाशे में प्राइम मिनिस्टर रबर स्टैंप होंगे और मुनीर असली बॉस. बिना गोली चलाए, बिना कर्फ्यू लगाए. बस कागज पर साइन, और हो गया सैन्य शासन.
बेदम-बेजान रस्मी विरोधी, किसी की सेना के सामने बोलने की हिम्मत नहीं
हां, इमरान खान की पार्टी पीटीआई के कुछ नुमाइंदे संसद में इस संशोधन का विरोध कर रहे हैं लेकिन आसिम मुनीर और उनकी सेना के खिलाफ बोलने की हिम्मत उनके पास भी नहीं है. लाहौर, कराची, इस्लामाबाद की सड़कों पर कुछ लोग अलग अलग बैनर तले 'डाउन विद डिक्टेटरशिप', 'लॉन्ग लाइव डेमोक्रेसी' के नारे लगाते देखे गए हैं. वकीलों और सिविल सोसाइटी दबी जुबान में कह रहे हैं कि पाकिस्तान में 'हाइब्रिड रीजिम' के नाम पर डेमोक्रेसी का दिखावा होगा, लेकिन पावर मिलिट्री के पास रहेगा. इकोनॉमी तो पहले ही डूब रही, ये और बर्बादी लाएगा. विदेशी इनवेस्टर्स भागेंगे, क्योंकि कौन ट्रस्ट करेगा एक ऐसे सिस्टम पर जहां आर्मी चीफ लाइफटाइम इम्यून हो?
कुलमिलाकर पाकिस्तान की संसद वहां की सेना के पक्ष में दो-तिहाई मतों से अपना खुद का तख्तापलट करने जा रही है. जाहिर है कि इसके मास्टरमाइंड आसिम मुनीर हैं, जिनके इशारे पर शाहबाज शरीफ और पाकिस्तान के बाकी दल कदमताल कर रहे हैं. अब तक मजाक में कहा जाता था कि 'दुनिया में देशों के पास अपनी सेना होती है, लेकिन पाकिस्तान सेना के पास अपना एक देश है.' लेकिन, अब ये मजाक एक भयानक हकीकत बनने जा रहा है.