केंद्रीय मंत्री और अपना दल (एस) की प्रमुख अनुप्रिया पटेल मिर्जापुर लोकसभा सीट से तीसरी बार चुनाव लड़ रही हैं. मिर्जापुर की रवायत रही है कि कोई भी लगातार तीन बार सांसद नहीं बना है. इस बीच परिस्थितियां कुछ ऐसी बन गईं हैं कि कुंडा विधायक और जनसत्ता दल के प्रमुख रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया से उनकी ठन गई है. इसके चलते उनकी मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं. अभी तक तो दोनों तरफ से सिर्फ बयानबाजी हुई है. पर अगर राजा भैया उनके खिलाफ खुलकर चुनावी प्रचार में उतरते हैं तो अनुप्रिया पटेल को तो नुकसान होगा ही कम से कम बीजेपी को भी दूसरी 4 सीटों पर नुकसान का अंदेशा बढ़ सकता है. पिछले दिनों अनुप्रिया ने राजा भैया को लेकर एक बयान दिया था, जिससे राजा भैया आहत हैं. राजा भैया के साथ ही जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के कुछ दिग्गज नेता भी मिर्जापुर पहुंच कर अनुप्रिया के खिलाफ चुनाव प्रचार करने वाले हैं.
1-राजा भैया का कितना जोर
राजा भैया बीजेपी के लिए इस समय कितने महत्वपूर्ण हैं यह इससे समझ सकते हैं कि गृहमंत्री अमित शाह ने मुंबई में उनसे मुलाकात की. इस मुलाकात के बाद एक बारगी तो ऐसा लगा कि राजा भैया बीजेपी को समर्थन देने वाले हैं. लेकिन बाद में कुछ ऐसा हुआ कि राजा भैया ने किसी भी दल को समर्थन नहीं देने का ऐलान कर दिया. इस बीच राजा भैया के महल पर बीजेपी नेता संजीव बालियान स्थानीय बीजेपी प्रत्याशियों के साथ पहुंच पर बात नहीं बन सकी.
इसके बाद सियासी बयानबाजी तेज हो गई है. बाद में उत्तर प्रदेश में एंटीइनकंबेंसी की बात करके राजा भैया ने करीब करीब क्लियर कर दिया कि वो समाजवादी पार्टी के साथ हैं. बस इतना होने के बाद अनुप्रिया पटेल भी खुलकर खेलने लगीं. अभी तक राजा भैया का विरोध दबे जुबान पर होता था पर अब खुलकर अनुप्रिया ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया.
राजा भैया और पटेल के बीच तनातनी के पीछे प्रतापगढ़ में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी विनोद सोनकर की जनसभा में अनुप्रिया पटेल का एक बयान है. अनुप्रिया ने यहां भाषण में कहा था कि अब राजा लोकतंत्र में रानी के पेट से पैदा नहीं होता है. अब राजा ईवीएम के बटन से पैदा होता है. स्वघोषित राजाओं को लगता है कुंडा उनकी जागीर. उनके भ्रम को तोड़ने का अब आपके पास बहुत बड़ा और सुनहरा अवसर है. मैं आपसे कहना चाहती हूं कि इस बार ईवीएम का बटन दबाने जाएंगे तो याद रखिएगा कि केवल मतदाता ही सर्वशक्तिमान है.
राजा भैया ने बहुत संयमित जवाब दिया. उन्होंने बिना नरेंद्र मोदी या अमित शाह, योगी आदित्यनाथ आदि की आलोचना किए कहा कि राजा या रानी अब पैदा होना बंद हो गए हैं. EVM से राजा नहीं पैदा होता है, EVM से जनसेवक पैदा होता है या जनता का प्रतिनिधि पैदा होता है. EVM से पैदा होने वाले अगर अपने आप को राजा मान लेंगे तो लोकतंत्र की मूल भावना ही हार जाएगी. जनता जनार्दन आपको ये अवसर देती है कि आप मेरी और क्षेत्र की सेवा करें. राजतंत्र तो कब-का खत्म हो गया है. कुछ कुंठित लोग हैं जो ये करते हैं उनसे मुझे कोई शिकायत नहीं है. इस बीच ऐसा खबरें भी आ गईं कि राजा भैया के समर्थक नेता मिर्जापुर अनुप्रिया पटेल का विरोध करने पहुंच रहे हैं.
राजा भैया अगर समाजवादी पार्टी के साथ खुलकर आते हैं तो प्रतापगढ़ और कौशांबी सीट पर बीजेपी को नुकसान होने की संभावना बढ़ जाती है. कारण कि इन दोनों ही सीटों पर राजा भैया की पार्टी ने अपने उम्मीदवार नहीं उतारे हैं, जबकि इस इलाके में उनका काफी प्रभाव है. कौशांबी में वोट पड़ चुके हैं. पर प्रतापगढ़, भदोही, मिर्जापुर, इलाहाबाद में अभी चुनाव होने वाले हैं. इन सभी सीटों पर राजा भैया का प्रभाव है. पर यह निर्भर इस पर करेगा कि राजा भैया के विरोध का स्तर क्या है. दरअसल राजा भैया भी नहीं चाहेंगे कि बेवजह का सरकार से पंगा लेना. डीएसपी हत्याकांड की फाइल अभी भी क्लोज नहीं हुई है. राजा भैया का इतिहास भी बहुत पाक साफ नहीं है. पुरानी फाइलें कब खुल जाएं यह पता नहीं चलेगा.
2-बीजेपी को कितना नुकसान
राजनीतिक विश्लेषक सौरभ दुबे कहते हैं कि पूर्वांचल के अधिकतर राजपूत नेता आज बीजेपी के साथ हैं इसलिए राजा भैया का कुछ खास प्रभाव पड़ता तो नहीं दिखता पर हां अगर वो अपने पर आ गए तो बीजेपी का नुकसान जरूर कर बैठेंगे. दरअसल पूर्वांचल में कई क्षत्रिय नेता हैं और कोई भी सर्वमान्य नहीं है. जौनपुर में धनंजय सिंह का अपना आधार है जिसका विस्तार आस पास के जिलों तक है. धनंजय अब पूरी तरह बीजेपी के साथ हैं. विनीत सिंह और ब्रजेश सिंह को भी विधानसभा में बीजेपी भेज चुकी है. इन लोगों का भी ठाकुर बिरादरी पर प्रभाव किसी से कम नहीं है. उसके बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राजनाथ सिंह के कद का वैसे भी कोई राजपूत नेता इस समय उत्तर भारत में नहीं है. इसलिए ये कहना अतिशयोक्ति ही होगी कि राजा भैया के विरोध से बीजेपी को नुकसान हो जाएगा. हां पर एक बात और है कि अनुप्रिया पटेल के विरोध का स्तर अगर अगड़े पिछड़े विरोध के लेवल का हो गया तो मुश्किल हो जाएगी. दुबे कहते हैं कि इन सबके बावजूद राजा भैया के एक इशारे पर कुछ हजार वोट तो कम हो ही जाएंगे.
3-अनुप्रिया को कितना नुकसान
अनुप्रिया पटेल केंद्रीय मंत्री रहते हुए मिर्जापुर का विकास कर सकती थीं पर ऐसा वो नहीं कर सकीं. मिर्जापुर के लोकल लोगों का कहना है कि जिले में सड़कों तक का विकास नहीं हुआ. जबकि बीजेपी राज में सड़कों का ही विकास दिखाई देता है. पूर्वी यूपी से जोड़ने वाला एक मात्र शास्त्रीनगर का पुल बरसों से कमजोर पड़ चुका है पर उसकी जगह पर नए पुल की अभी तक योजना नहीं बन पाई है. जर्जर पुल हर साल मरम्मत का मोहताज है. पत्रकार विनोद शर्मा कहते हैं कि स्थानीय लेवल पर अपनी अलोकप्रियता को खत्म करने के लिए अनुप्रिया पटेल राजा भैया के विरोध के जरिए अपनी जाति और पिछड़ी जाति के लोगों को गोलबंद करना चाहती हैं.