देश में इमरजेंसी लगाये जाने के 50 साल पूरे होने पर बीजेपी ने कांग्रेस को घेरने का पहले से ही पूरा बंदोबस्त कर लिया था. केंद्र की बीजेपी सरकार ने पिछले साल ही 25 जून को संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाये जाने की घोषणा कर दी थी.
प्रधानमंत्री संग्रहालय में आपातकाल के 50 वर्ष की पूर्व संध्या पर आयोजित कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने कहा, आपातकाल से पहले की रात, आजादी के बाद की सबसे लंबी रात थी... क्योंकि, इसकी सुबह 21 महीने बाद हुई, जब देश का लोकतंत्र फिर से पुनर्जीवित हुआ.
बीजेपी आज संविधान हत्या दिवस मना रही है. अमित शाह ने कहा, मोदी जी ने संविधान हत्या दिवस मनाने का निर्णय इसलिए लिया, ताकि देश की चिर स्मृति में यह बना रहे... जब कोई सरकार तानाशाह बनती है, तो देश को कैसे भयानक दुष्परिणाम भुगतने पड़ते हैं.
25 जून की रात को ही 1975 में देश में इमरजेंसी लागू किये जाने की घोषणा की गई थी. तब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं, और इसी के चलते कांग्रेस आज बीजेपी के निशाने पर है. इमरजेंसी का विरोध तो पहले भी होता रहा है. और, बीजेपी के ही सबसे सीनियर नेता लालकृष्ण आडवाणी ने दस साल पहले एक इंटरव्यू में कहा था, "मैं आश्वस्त नहीं हूं कि आपातकाल दोबारा नहीं लग सकता ." बीजेपी नेता आडवाणी इमरजेंसी लगाये जाने के 40 साल पूरे होने पर कहा था, '1975-77 में आपातकाल के बाद के वर्षों में मैं नहीं सोचता कि ऐसा कुछ भी किया गया है, जिससे मैं आश्वस्त रहूं कि नागरिक स्वतंत्रता फिर से निलंबित या नष्ट नहीं की जाएगी.'
50 साल बाद इमरजेंसी पर बहस तो खूब हो रही है, लेकिन लालकृष्ण आडवाणी को यकीन देने लायक कोई भी कोशिश हुई हो, ऐसा तो नहीं लगता. राहुल गांधी के सरेआम इमरजेंसी को गलत मान लेने के बावजूद कांग्रेस अब भी बचाव की मुद्रा में ही है - और भारतीय जनता पार्टी ने इमरजेंसी के मुद्दे पर आक्रामकर रुख अख्तियार कर लिया है.
सवाल है कि आखिर ऐसा क्या है कि 50 साल बाद इमरजेंसी को याद करके बीजेपी फायदा उठाना चाहती है? देखें तो बीजेपी को बस इतना ही फायदा है कि इमरजेंसी के मुद्दे पर वो कांग्रेस को घेरकर बचाव की मुद्रा में ला सकती है. और बहुत हद तक सफल भी है - लेकिन, बड़ा सवाल ये है कि बीजेपी को ये सब करने का मौका किसने दिया है?
इमरजेंसी पर बीजेपी को मौका तो कांग्रेस ने ही दिया है
2024 के आम चुनाव में कैंपेन के दौरान एक दूसरे के खिलाफ बहुत कुछ कहा जा रहा था. संविधान पर मंडराते खतरे से लेकर 'मंगलसूत्र' तक बेच डालने की बातें हुईं. चुनाव नतीजे बीजेपी की अपेक्षा के अनुरूप तो नहीं थे, लेकिन विपक्ष को भी बस मजबूती से खड़े होने का मौका दे रहे थे. जो बातें चुनाव तक खत्म हो जानी चाहिये थीं, वे आगे भी जारी रहीं. चुनावी रैलियों की झलक संसद तक देखी गई.
राहुल गांधी और अखिलेश यादव सहित विपक्ष के तमाम सांसद हाथों में संविधान की प्रति लेकर संसद पहुंचे, और शपथ लेते वक्त भी उसे हाथ मे लिये रहे. विपक्ष की ये कोशिश बीजेपी को कदम कदम पर जलील करने वाली थी, लिहाजा बीजेपी ने भी काउंटर करने का उपाय खोज लिया.
बीजेपी ने संविधान के नाम पर ही पलटवार किया. पलटवार तो पूरे विपक्ष पर था, लेकिन बीजेपी ने ऐसा हथियार उठाया कि निशाने पर अकेले कांग्रेस नजर आने लगी. लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार द्वारा लगाई गई इमरजेंसी की बरसी पर खूब खरी खोटी सुनाई. इमरजेंसी को लोकतंत्र के इतिहास का काला अध्याय बताया, और जब तक राहुल गांधी और बाकी कांग्रेस नेता कुछ समझ पाते, ओम बिरला ने सदन में दो मिनट का मौन भी रखवा दिया.
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने बाद में स्पीकर ओम बिरला से अलग से मुलाकात की और सदन में इमरजेंसी के लंबे जिक्र और मौन पर ये कहते हुए आपत्ति दर्ज कराई कि ये कदम राजनीतिक था, और इससे बचा जा सकता था.
आपातकाल का आज भी मुद्दा बन जाना कांग्रेस की राजनीतिक कमजोरी है
सिर्फ इमरजेंसी ही नहीं, ऑपरेशन ब्लू स्टार और 1984 के दिल्ली दंगे भी - ये ऐसे मुद्दे हैं जो कांग्रेस को बड़ी आसानी से कठघरे में खड़ा कर देते हैं. मुश्किल ये है कि अफसोस जताने से लेकर माफी मांगने तक राहुल गांधी सारे ही नुस्खे आजमा चुके हैं, लेकिन ये मुद्दे गांधी परिवार का पीछा ही नहीं छोड़ते.
2021 में राहुल गांधी कांग्रेस शासन में देश में इमरजेंसी लगाये जाने के लिए माफी भी मांग चुके हैं. अमेरिका की कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर कौशिक बसु के साथ हुई बातचीत में गांधी ने साफ तौर पर कहा था कि देश में इमरजेंसी लगाने का पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का फैसला गलत था.
भारत के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु के इमरजेंसी पर पूछे गए सवाल के जवाब में राहुल गांधी ने कहा था, ‘मुझे लगता है कि वो गलती थी… बिलकुल, वो गलती थी… और मेरी दादी (इंदिरा गांधी) ने भी ऐसा कहा था.’
ये ठीक है कि राहुल गांधी ने ऐसी हिम्मत दिखाने में इतनी देर लगा दी. लेकिन, समस्या ये है कि अपनी बात को राजनीतिक तौर पर लोगों तक पहुंचा नहीं सके. तभी तो 50 साल बाद भी इमरजेंसी का वो दाग धुल पाना कांग्रेस के लिए मुश्किल साबित हो रहा है.
आखिर ये राजनीतिक चूक नहीं तो क्या है. इमरजेंसी के बाद भी लोगों ने जनता पार्टी की सरकार को नकार कर फिर से इंदिरा गांधी को सत्ता सौंप दी. 1977 से 2014 तक ज्यादातर वक्त कांग्रेस की ही सरकारें रही हैं. ये राजनीतिक कमजोरी नहीं तो क्या है कि जिन बातों को भुलाकर लोग इंदिरा गांधी को ही सत्ता सौंप देते हैं, बीजेपी के सामने कांग्रेस अब भी बचाव की मुद्रा में आ जाती है.
आपातकाल का जिन्न भी राहुल गांधी का पीछा वैसे ही नहीं छोड़ रहा है, जैसे ‘जंगलराज’ तेजस्वी यादव का - और, सबसे बड़ी मुश्किल तो ये है कि बिहार चुनाव में दोनों को मिलकर बीजेपी से लड़ना है.