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एग्जिट पोल के नतीजों में तेजस्वी यादव के लिए क्या मैसेज है?

बिहार चुनाव पर एग्जिट पोल के नतीजों में एनडीए की सरकार बनने के संकेत मिल रहे हैं. हमेशा की तरह इस बार भी एग्जिट पोल के अनुमान और असली नतीजों के बीच फर्क पर सबकी नजर है. ये चुनाव तेजस्वी यादव के लिए बहुत बड़ा मौका है, और वो एग्जिट पोल के प्रति न्यूट्रल सोच रखकर चल रहे हैं.

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एग्जिट पोल में तेजस्वी यादव को कठघरे में खड़ा करने वाले बाद में उनके फैसलों को मास्टरस्ट्रोक बताएंगे. (Photo: PTI)
एग्जिट पोल में तेजस्वी यादव को कठघरे में खड़ा करने वाले बाद में उनके फैसलों को मास्टरस्ट्रोक बताएंगे. (Photo: PTI)

बिहार विधानसभा चुनाव का रिजल्ट 14 नवंबर को आएगा, और तब तक एग्जिट पोल के नतीजे चर्चा में छाए रहेंगे. एग्जिट पोल बार बार गलत साबित होता है, फिर भी असली नतीजों से पहले खूब चर्चा होती है. 2015 में कांटे की टक्कर होने का दावा किया गया था, लेकिन तब नीतीश कुमार ने लालू यादव के साथ बहुमत का पताका फहरा दिया. 2020 में महागठबंधन की बढ़त की बात हो रही थी, और नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ मिलकर बहुमत की सरकार बना ली. सबसे बड़ी पार्टी बनकर भी आरजेडी सत्ता से दूर रह गई, और तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बनते बनते रह गए. 

बाद में नीतीश कुमार ने फिर लालू यादव से हाथ मिला लिया, और 2020 में महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार रहे तेजस्वी यादव को दोबारा डिप्टी सीएम बना दिया. लेकिन, आम चुनाव से पहले नीतीश कुमार बीजेपी के साथ चले गए, और तेजस्वी यादव मन मसोस कर रह गए. क्योंकि, उससे पहले तेजस्वी यादव को यही नीतीश कुमार उत्तराधिकारी बनाने तक का संकेत दे चुके थे. 

पांच साल बाद, अब एग्जिट पोल बता रहा है कि बिहार में एनडीए को बहुमत मिलने जा रहा है. कुछ एग्जिट पोल में महागठबंधन को भी बहुमत हासिल करते बताया गया है - लेकिन, तेजस्वी यादव एग्जिट पोल के सर्वे को पूरी तरह खारिज कर रहे हैं. वो ऑपरेशन सिंदूर के दौरान मीडिया रिपोर्ट में पाकिस्तान पर फतह की खबरों का हवाला दे रहे हैं. 

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एग्जिट पोल पर तेजस्वी यादव का कहना है, देखिए... हम ना सर्वे में खुशफहमी में रहते हैं... ना गलतफहमी में रहते हैं. ये सर्वे, केवल मनोवैज्ञानिक तौर पर ... जितने भी अधिकारी चुनाव में लगाए गए हैं, उनके दबाव में ये सर्वे लाए गए हैं.

जब तक असली नतीजे नहीं आ जाते, लोग एग्जिट पोल के नतीजों के आधार पर महागठबंधन के प्रदर्शन का अपने अपने तरीके से आकलन कर रहे हैं. 

1. लालू यादव का रोड शो

लालू यादव ने पूरे चुनाव में सिर्फ एक रोड शो किया है. वो भी दानापुर में, आरजेडी प्रत्याशी रीतलाल यादव के लिए. रीतलाल यादव जेल में हैं. नामांकन के लिए तो अनुमति मिली, लेकिन कैंपेन के लिए पटना हाई कोर्ट ने छूट नहीं दी. रीतलाल यादव की गैरहाजिरी में उनका परिवार घूम घूमकर वोट मांग रहा था. 

रीतलाल यादव पाटलिपुत्र लोकसभा की दानापुर सीट से चुनाव मैदान में हैं. पाटलिपुत्र लालू यादव की बड़ी बेटी मीसा यादव का संसदीय क्षेत्र है. मीसा यादव ने पूर्व केंद्रीय मंत्री रामकृपाल यादव को आम चुनाव में शिकस्त दी थी. पहले मीसा भारती को हार का मुंह देखना पड़ा था. माना जा रहा था कि लालू यादव ने मीसा भारती को मजबूती देने के लिए ही रीतलाल यादव के लिए रोड शो किया था. 

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एक वजह ये भी रही कि दानापुर के लिए लालू यादव को घर से दूर नहीं जाना पड़ा. सेहत ठीक नहीं होने के कारण वो गाड़ी में अंदर ही बैठे हुए इलाके के लोगों से मुखातिब हुए थे - लेकिन, जेडीयू नेता ललन सिंह ने लालू यादव के रोड शो को अपने लिए ढाल बनाकर इस्तेमाल किया. ललन सिंह मोकामा में जेल भेज दिए गए अनंत सिंह के लिए मोर्चा संभाले हुए थे. 

कुछ लोग रीतलाल यादव के सपोर्ट में लालू यादव के रोड शो को तेजस्वी यादव के प्रति लोगों में गलत मैसेज के रूप में देख रहे हैं - लेकिन, सही पैमाइश तो 14 नवंबर को नतीजे आने के बाद ही हो पाएगी. 

2. कांग्रेस के साथ तकरार

कांग्रेस के साथ आरजेडी की तकरार भी अच्छी नहीं कही जाएगी. और कुछ हो न हो, अगर कांग्रेस के वोट आरजेडी को नहीं मिले तो ये बात तो माननी ही पड़ेगी. वैसे तो लालू यादव ने दबाव डालकर दो कांग्रेस उम्मीदवारों के नामांकन वापस भी करा लिए, लेकिन नतीजे ही बताएंगे कि क्या फर्क पड़ा.

राहुल गांधी के साथ वोटर अधिकार यात्रा में तेजस्वी यादव बैकफुट पर नजर आए. राहुल गांधी को वो प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार भी बता डाला, लेकिन राहुल गांधी ने एक्सचेंज ऑफर ठुकरा दिया था. तेजस्वी यादव के समर्थकों में कुछ तो मैसेज गया ही होगा. 

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ये बात अलग है कि बाद में लालू यादव ने कांग्रेस नेतृत्व पर दबाव डालकर अपने मन का काम करा डाला. कांग्रेस नेतृत्व का दूत बनकर पटना पहुंचे अशोक गहलोत ने प्रेस कांफ्रेंस में वो सब बोल दिया जो लालू यादव ने कहा था. लेकिन, तब तक भरपाई की कम ही गुंजाइश बची थी. 

3. ओवैसी से दूरी बनाए रखना

माना जा रहा है कि चुनाव में मुस्लिम वोटर ने महागठबंधन के उम्मीदवारों के साथ खड़ा रहा है, लेकिन वोटों का बंटवारा भी तो हुआ ही होगा. कम से कम उन 11 सीटों पर तो बंटवारा हुआ ही होगा, जहां करीब करीब हर राजनीतिक दल ने मुस्लिम उम्मीदवार ही उतारे थे. 

चुनाव से पहले खबर आ रही थी कि AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी महागठबंधन के बैनर तले चुनाव लड़ना चाह रहे थे, लेकिन तेजस्वी यादव ने उनके लिए नो एंट्री का बोर्ड लगा दिया था. महागठबंधन में ओवैसी को नहीं लिया गया. माना जा रहा है कि ओवैसी को महागठबंधन में न लिए जाने का नुकसान उठाना पड़ सकता है. 

ये भी माना गया कि 2020 में 5 सीटें AIMIM के खाते में डाल देने वाले मुस्लिम वोटर ओवैसी से नाराज थे. क्योंकि, विधायक ओवैसी को छोड़कर चले गए. राहत की बात बस इतनी ही थी कि चार विधायक आरजेडी में ही शामिल हुए थे. 

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4. तेज प्रताप के लिए मैदान खुला छोड़ देना

जीत तो, एग्जिट पोल में, महुआ से तेज प्रताप यादव की भी पक्की नहीं मानी जा रही है. महुआ में आरजेडी उम्मीदवार मुकेश रौशन और तेज प्रताप यादव के बीच कांटे की टक्कर मानी जा रही है. अव्वल तो तेजस्वी यादव को राघोपुर से चुनाव जीत रहे बताया जा रहा है, लेकिन तेज प्रताप की वजह से नुकसान से कोई इनकार नहीं कर रहा है. 

चुनाव के दौरान लालू यादव तो चुप थे, लेकिन राबड़ी देवी और तेज प्रताप यादव की बहनें आशीर्वाद और शुभकामनाएं देती रहीं. तेज प्रताप यादव की जीत की कामना भी की जाती रही - लेकिन, क्या तेज प्रताप यादव को डैमेज करने से रोका नहीं जा सकता था?

ये भी समझा गया है कि तेजस्वी यादव के ही अड़ जाने के कारण तेज प्रताप यादव को परिवार और पार्टी से बेदखल किया गया - और बाद में भी नरम रुख देखने को नहीं मिला. 

बहरहाल, अब तो सब कुछ 14 नवंबर को ही साफ हो पाएगा. ध्यान रहे, जिन बातों को लेकर तेजस्वी यादव के फैसले पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं, एग्जिट पोल के नतीजे फिर से गलत साबित हुए, तो ये सब मास्टरस्ट्रोक कहे जाने लगेंगे.

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