19 जून को शिवसेना के स्थापना दिवस था, और दो टुकड़ों में बंट चुकी शिवसेना ने मौके पर जोरदार शक्ति प्रदर्शन किया. दोनों गुटों के नेता एक बार फिर आमने सामने थे. उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे दोनों ने एक दूसरे पर खूब हमले किये.
कॉमन बात ये दिखी कि दोनों पक्षों भाषण में राज ठाकरे का जिक्र तो था ही, नजर भी दोनों ओर के नेताओं की आने वाले बीएमसी चुनाव पर ही थी.
भाषणों पर गौर करें, तो एकबारगी लगता है कि महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे और शिवसेना (UBT) प्रमुख उद्धव ठाकरे दोनों ही एक दूसरे पर जबर्दस्त प्रहार कर रहे हैं, और ये कोई नई बात नहीं है. पिछले स्थापना दिवस समारोहों में भी ऐसा ही देखा गया है.
एक फर्क इस बार ये है कि निगाहें कहीं और नजर आती हैं, और निशाना कहीं और. उद्धव ठाकरे तो बीजेपी को पहले की तरह ही टार्गेट करते हैं, लेकिन एकनाथ शिंदे भी बीजेपी को बख्श देने के मूड में नहीं लगते.
वैसे भी बीजेपी ने उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे के साथ तकरीबन बराबर ही व्यवहार किया है. उद्धव ठाकरे की बीजेपी से तगड़ी नाराजगी तो है ही, एकनाथ शिंदे की भी कोई कम नहीं है. उद्धव ठाकरे को गुस्सा इस बात का है कि बीजेपी ने उनकी शिवसेना को तोड़ डाला, और एकनाथ शिंदे इसलिए खफा हैं क्योंकि बीजेपी ने उनको दोबारा मुख्यमंत्री नहीं बनने दिया.
फिर से, उद्धव ठाकरे बनाम एकनाथ शिंदे
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना नेता राज ठाकरे को नजरअंदाज तो किसी भी चुनाव में नहीं किया जाता है, लेकिन बीएमसी चुनावों को लेकर उनकी अहमियत कुछ ज्यादा ही बढ़ी हुई दिखाई देने लगी है. राज ठाकरे की अलग अलग मुलाकातों ने उनका महत्व और भी बढ़ा दिया है - उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे मुलाकातों को अपने अपने तरीके से पेश भी कर रहे हैं.
शिवसेना के लिए बेहद खास मौके पर महाराष्ट्र के लोगों से फिर से मुखातिब उद्धव ठाकरे ने कहा, महाराष्ट्र और आपके मन में जो है वहीं होगा… कुछ लोग चाहते हैं कि हम साथ में ना आयें… मराठी लोग एक साथ ना आयें… मालिक के कुछ लोग होटल में मिल रहे हैं… बहुत कोशिश कर रहे हैं कि हमारा गठबंधन ना हो, लेकिन हमें जो करना है वो हम करेंगे.
जाहिर है, उद्धव ठाकरे चचेरे भाई राज ठाकरे की बात कर रहे थे, और एकनाथ शिंदे भी राज ठाकरे के साथ गठबंधन को अपने हिसाब से देख रहे हैं, और कह रहे हैं, हिंदुत्व के विचार छोड़ने वाले की ऐसी हालत हो गई है कि युति-युति करते फिरते हैं… आपके साथ कोई नहीं खड़ा है.
एकनाथ शिंदे अपने हिसाब से समझाते हैं कि उद्धव ठाकरे अब महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना से भी गठबंधन करने के लिए तैयार हैं, ये दिखाता है कि वो सिर्फ सत्ता के भूखे हैं, और उसके लिए कुछ भी कर सकते हैं.
डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे फिर से अपना दावा दोहराते हैं, असली शिवसेना वही है जिसके पास धनुष-बाण का चुनाव निशान है, और जनता का साथ है. कहते हैं, हमने बाला साहेब की हिंदुत्ववादी विचारधारा को संभाला है, जबकि उन्होंने (उद्धव ने) उसे त्याग दिया. दावा ये भी है कि 2024 के विधानसभा चुनावों में शिवसेना (यूबीटी) को जो भी वोट मिले, उसकी वजह कांग्रेस है, असली शिवसैनिकों ने उद्धव ठाकरे को छोड़ दिया है.
शिंदे के निशाने पर उद्धव या बीजेपी?
महाराष्ट्र की राजनीति में अगला टार्गेट बीएमसी चुनाव ही है. हर राजनीतिक दल बीएमसी चुनाव की तैयारियों में ही जुटा हुआ है.
एकनाथ शिंदे लोगों को ये भी समझाने की कोशिश करते हैं कि कुछ लोग बीएमसी यानी बृहन्मुंबई महानगरपालिका को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी समझते हैं. फिर उद्धव ठाकरे और अपने में फर्क समझाते हैं, 'उनकी आत्मा बीएमसी के खजाने में है, लेकिन हमारी आत्मा हिंदुत्व में है'.
बीजेपी तो दोनों ही नेताओं के निशाने पर लगती है, फर्क ये है कि उद्धव ठाकरे खुलकर वार करते हैं, और एकनाथ शिंदे बहाने से, परोक्ष रूप से, बल्कि कहिये कि राजनीतिक तरीके से.
उद्धव ठाकरे का कहना है कि बीजेपी और एकनाथ शिंदे ठाकरे ब्रांड को खत्म करना चाहती हैं. उद्धव ठाकरे का आशय यहां राज ठाकरे के साथ उनके गठबंधन में बाधा खड़ी करने की कोशिश से हैं.
लिहाजा उद्धव ठाकरे साफ शब्दों में पहले से ही आगाह कर देते हैं, अगर आप ठाकरे ब्रांड को खत्म करने की कोशिश करेंगे, तो हम भाजपा को खत्म कर देंगे… मैं तैयार हूं… मैं भाजपा से कहना चाहता हूं, जब आप मुझे लेने आयें. अपने लिए एम्बुलेंस लेकर आयें.
एकनाथ शिंदे का तरीका बिल्कुल अलग है. अपने समर्थकों, शिवसैनिकों से कहते हैं, 'विधानसभा चुनाव के नतीजों से गुमराह मत होइए, अगला लक्ष्य स्थानीय निकाय चुनाव है'.
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 में एकनाथ शिंदे चूक गये थे, क्योंकि उनके हिस्से की शिवसेना की सीटें कम आई थीं, जबकि बीजेपी ने जीत का रिकॉर्ड दर्ज कर डाला था. 288 सीटों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में एकनाथ शिंदे के 57 विधायक ही चुनकर आ सके थे, जबकि बीजेपी ने 132 सीटों पर जीत दर्ज की थी.
एकनाथ शिंदे समर्थकों को यही समझा रहे हैं कि बीएमसी में बीजेपी से ज्यादा सीटें जीतने की कोशिश होनी चाहिये, ताकि कोई ऐसी हिमाकत न कर सके, जैसा विधानसभा चुनाव नतीजे आने के बाद हुआ.
मुख्यमंत्री बने रहने के लिए एकनाथ शिंदे ने हर संभव कोशिशें की. कभी समर्थकों से तो कभी खुद बयान दिये. अलग अलग तरीके से इशारे भी किये, और एक बार तो रूठकर मुंबई से अपने गांव भी चले गये थे - लेकिन, बीजेपी पर कोई असर नहीं हुआ, मजबूरन एकनाथ शिंदे को डिप्टी सीएम का पद स्वीकार करना पड़ा, और बीजेपी ने तो उनके मनमाफिक विभाग भी नहीं दिये.
एकनाथ शिंदे उसी खुन्नस के साथ समय काट रहे हैं. मौके का इंतजार है. अब हर वक्त वो बीजेपी को उसी की भाषा में जवाब देना चाहते हैं.