दुनिया भर के तमाम समाचार स्रोतों जैसे न्यूयॉर्क टाइम्स और सीएनएन जैसे मीडिया हाउसेस की खबरें और भारत-पाकिस्तान के बीच युद्धविराम के पीछे की घटनाओं के आधार पर दावा किया जा रहा है कि 9 मई को भारतीय सेना के हमलों के बाद पाकिस्तानी परमाणु ठिकाने सुरक्षित नहीं रह गए हैं. दरअसल ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारतीय सेना ने पाकिस्तान के एयर बेसों पर धुंआं धुंआं कर दिया. समझा जा रहा है कि इसमें से कई एयर बेस ऐसे हैं जो परमाणु हथियारों के भंडारण, संप्रेषण और दुश्मन देश पर इस्तेमाल करने से संबंधित हैं. इन एयर बेसों तक भारत की पहुंच ये बताती है कि पाकिस्तान के परमाणु हथियार सुरक्षित नहीं रह गए हैं. भारत के इन हमलों में सबसे बड़ी भूमिका रूस के सहयोग से भारत में निर्मित और विकसित ब्रह्मोस मिसाइलों का बताया जा रहा है. इन हमलों ने पाकिस्तान के परमाणु हथियारों की सुरक्षा को खतरे में डाल दिया है. विशेष रूप से रावलपिंडी के नूर खान एयरबेस पर भारत ने जिस तरह की तबाही मचाई है उससे दुनिया खौफ में है.
1- नूर खान-मुरीदके -सुक्कुर एयरबेस पर हमले से खतरे में पड़ी परमाणु सुरक्षा
न्यूयॉर्क टाइम्स का दावा है कि अमेरिका को सबसे अधिक चिंता तब हुई जब 9 मई की देर रात पाकिस्तान के नूर खान एयरबेस के पास तीन बड़े धमाकों की खबर मिली. यह एयरबेस इस्लामाबाद से लगे शहर रावलपिंडी में स्थित है और पाकिस्तान की वायुसेना के लिए एक महत्वपूर्ण ठिकाना है. यह एयरबेस न केवल सैन्य परिवहन और एयर रिफ्यूलिंग के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके पास ही पाकिस्तान की स्ट्रैटेजिक प्लान्स डिवीजन (Strategic Plans Division) का मुख्यालय है, जो पाकिस्तान के परमाणु हथियारों की सुरक्षा और संचालन की जिम्मेदारी संभालता है. न्यूयॉर्क टाइम्स की इस रिपोर्ट के बाद उन अफवाहों और आशंकाओं को बल मिलने लगा जिनमें यह कहा जा रहा है कि भारतीय हमले में पाकिस्तान की परमाणु सुरक्षा खतरें पड़ गई है.
दरअसल नूर खान एयरबेस के पास तीन शक्तिशाली विस्फोट हुए, और पास ही स्थित है SPD (Strategic Plans Division) और NESCOM (National Engineering and Scientific Commission) — दोनों पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के स्तंभ माने जाते हैं.यह बेस पाकिस्तान की परमाणु कमांड और लॉजिस्टिक्स सपोर्ट के लिए जरूरी है. भारत के सटीक हमले इन दोनों स्थानों के पास हुए. इसका अर्थ यह भी हो सकता है कि भारत ने जानबूझकर उनके परमाणु नेटवर्क के कोर तक पहुंचने की क्षमता दिखाई. ये हमले भौगोलिक रूप से परमाणु तंत्र के अत्यंत संवेदनशील नोड्स के नज़दीक हुए — जो एक स्पष्ट साइकोलॉजिकल और स्ट्रैटेजिक चेतावनी है.
इसी तरह मुरीदके एयरबेस को भी पाकिस्तान की वायु सेना के लिए सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है. यहां से लंबी दूरी के स्ट्राइक मिशन ऑपरेट किए जा सकते हैं. सुक्कुर एयरबेस और उसके आसपास का क्षेत्र पाकिस्तान के पश्चिम में स्थित खुले और सुरक्षित माने जाने वाले परमाणु गोदामों के दायरे में आता है. भारत के हमलों में ये दोनों बेस शामिल थे. इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि भारत ने ऐसे हमलों के लिए ऐसे ठिकानों को चुना जो केवल परमाणु बमों के लाने या ले जाने के लिए अति महत्वपूर्ण थे.
2-क्या परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की आशंका हो गई?
अमेरिकी मीडिया हाउसेस की रिपोर्ट बताती हैं कि 9 मई को अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन किया और पाकिस्तान की खतरनाक सैन्य योजना को लेकर अमेरिकी खुफिया जानकारी साझा की. संभवतः इसका संकेत परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की आशंका से था, जैसा कि CNN ने ट्रंप प्रशासन के अधिकारियों के हवाले से रिपोर्ट किया.
अगर यह सही है कि पाकिस्तान परमाणु हमले पर उतारू हो गया था तो यह भी सत्य है कि पाकिस्तान के परमाणु ठिकानों तक भारतीय मिसाइल पहुंच गए थे. क्योंकि दुनिया का कोई भी परमाणु हथियर संपन्न देश इसका इस्तेमाल तभी करता है जब उसके अस्तित्व पर संकट आ जाता है या कोई रास्ता उसके सामने नहीं बचता है. पाकिस्तान के हवाई अड्डों को जिस तरह घेरकर भारतीय मिसाइलें मार रही थीं उससे बचने का उपाय पाकिस्तान के पास केवल एक ही रह गया था. दरअसल पाकिस्तान को यह भी डर हो गया था कि भारत इसी तरह हमले करता रहा और वो परमाणु हथियारों की सुरक्षा नहीं कर पाया तो दुनिया भर की ताकतें मिलकर एटम बम पर कब्जा कर लेंगी. अमेरिका पहले से ही स्नैच एंड ग्रैब योजना पाकिस्तान के परमाणु बमों को हथियाने के लिए तैयार किए हुए है.
सीएनएन ने लिखा है कि वेंस ने यह खुफिया जानकारी पहले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को दी और फिर मोदी को फोन कर बताया कि यदि सप्ताहांत तक युद्ध जारी रहा, तो dramatic escalation की बहुत अधिक संभावना है.
3. पाकिस्तानी सेना का परमाणु ‘रैपिड मूवमेंट’ और घबराहट
भारत ने पाकिस्तान की मिसाइल तैयारियों को रियल टाइम में ट्रैक किया, जो संकेत देता है कि उसके पास सैटेलाइट,ह्यूमन और सिग्नल्स तीनों ही माध्यम के खुफिया तंत्र सक्रिय थे. इससे यह भी संकेत देता है कि भारत को पाकिस्तान के परमाणु लॉन्च पैटर्न, स्थानों और SOPs की पूर्व जानकारी थी, जो प्रभावी हमले या पूर्व-निवारक हड़ताल की क्षमता प्रदान करती थी. हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट बताती है कि यह निगरानी संभवतः सैटेलाइट, जैसे कि भारत के रिसैट और कार्टोसैट, और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ साझेदारी के माध्यम से हुई, जो क्षेत्र में खुफिया जानकारी साझा करता है. हालांकि, यह निगरानी पाकिस्तान के परमाणु हथियारों तक सीधी पहुंच का सबूत नहीं है, बल्कि उनकी गतिविधियों पर नजर रखने की क्षमता को दर्शाती है.
यूएस के साथ भारत की रणनीतिक साझेदारी और संघर्ष के दौरान यूएस की मध्यस्थता की भूमिका से संकेत मिलता है कि अमेरिका ने भी संभावित रूप से खुफिया जानकारी साझा की होगी. जैसा कि न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट बताती है कि 9 मई, 2025 को, यूएस उपराष्ट्रपति जेडी वैंस ने चिंताजनक खुफिया जानकारी प्राप्त करने के बाद भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी से संपर्क किया, जो यूएस की सक्रिय भागीदारी को दर्शाता है.
यह भी कहा जा रहा कि अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने भारत को बताया कि 10 मई को पाकिस्तान ने अपने कुछ परमाणु हथियारों को सुरक्षित स्थानों पर दोबारा तैनात करना शुरू कर दिया था.यह मूवमेंट असामान्य रूप से तेज़ और असंगठित था. यदि पाकिस्तान अपनी सबसे संवेदनशील संपत्ति को हड़बड़ी में एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने लगा, तो इसका सीधा मतलब है कि उसे लगा कि भारत इन स्थानों तक पहुंच सकता है या हमला कर सकता है.