बिहार चुनाव में नेताओं की एक उम्मीद तो नहीं टूट रही है. ये तो पहले ही पक्का हो गया है, बिहार जीत रहा है. चुनाव से पहले की एक अपील का साफ असर नजर आ रहा है. लोगों ने घर से निकलकर और आगे बढ़कर वोट डाले हैं.
महिलाओं ने तो वोट डालने के मामले में पुरुषों को भी पछाड़ दिया है. देखना है ये 'साइलेंट वोट' किसके पक्ष में जाता है? बहुमत चाहे जिस किसी को भी हासिल हो, लेकिन एक बात तो अभी से तय मान लेना चाहिए - बिहार हर हाल में जीत रहा है.
2014 के आम चुनाव से पहले गणतंत्र दिवस पर अपने संबोधन में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने लोगों से देश को मजबूत सरकार देने की मांग की थी. लोगों ने वैसा ही किया. पांच साल बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मजबूत सरकार का मतलब समझाया, और लोग मोदी की बात भी मान गए. पिछली बार लोगों से अपील के बजाए, एनडीए ने 400 पार का दावा किया था, लोगों ने नकार दिया.
अब ये वोट बिहार से शुरू हुए SIR का नतीजा है, तेजस्वी यादव के नौकरियों और तमाम चुनावी वादों का असर है, या फिर नीतीश कुमार के 20 साल तक के लंबे 'सुशासन' का रिजल्ट है - आने वाले दिनों में अलग अलग तरीके से समझने की कोशिश की जा सकती है.
फिलहाल तो ये समझना जरूरी हो गया है कि बिहार जीतकर किसे क्या देने वाला है? किसके हिस्से में क्या आने वाला है?
1. नीतीश कुमार
बिहार हुई बंपर वोटिंग भी भोजपुरी गानों के डबल मीनिंग की ही तरह लगती है. ये लोगों का मौजूदा सत्ता के लिए एनडोर्समेंट भी हो सकता है, और सत्ता विरोधी लहर का सबूत भी. लेकिन, बिहार से आ रही ज्यादातर रिपोर्ट में नीतीश कुमार के खिलाफ हाल फिलहाल सत्ता विरोधी कोई लहर नहीं महसूस की गई है. हां, जब चुनाव दूर था तब ऐसी बातें लगातार हो रही थीं. क्योंकि, संभावना तो ऐसी रहती ही है.
चुनाव कैंपेन पर नजर डालें तो चुनावी वादों की होड़ देखी गई है. लेकिन, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार की लड़ाई को ‘काम बनाम चुनावी वादा’ बनाने की कोशिश की है. नीतीश कुमार का इस काम में काफी हद तक सफल हो जाना ही तेजस्वी यादव के लिए सबसे बड़ी चुनौती है.
एक रैली के मंच से नीतीश कुमार कहते हैं, 'हमने काम से जवाब दिया है, वादे से नहीं... अब जनता हमारे काम का मूल्यांकन करेगी.'
सामने मौजूद भीड़ से आवाज आती है, 'काम हुआ है, बहुत हुआ है.'
नीतीश कुमार अपने खास अंदाज में मुस्कराते हैं और बोलते हैं, 'यही बिहार का बदलता चेहरा है... अब लोग काम की बात करते हैं.'
2020 विधानसभा चुनाव की आखिरी रैली में नीतीश कुमार ने कहा था, 'अंत भला तो सब भला.'
ऐसी बातें सुनने के लिए अभी दूसरे चरण के चुनाव प्रचार की आखिरी रैली का इंतजार करना होगा. नीतीश कुमार चुनाव से पहले तमाम दुश्वारियों से जूझते रहे हैं. बढ़ती उम्र के साथ उनकी गिरती सेहत, और सेहत पर उठते सवाल. लेकिन, कैंपेन के दौरान नीतीश कुमार को गाड़ी से उतरकर आराम से चलते देखा गया. कदम भले ही तेज न बढ़ते दिखे, लेकिन किसी के सहारे की जरूरत भी नहीं नजर आई.
2. तेजस्वी यादव
बंपर वोटिंग के दोहरे अर्थ के हिसाब से देखें तो तेजस्वी यादव के खिलाफ मौका तो है ही. बल्कि, बहुत बड़ा मौका है. अगर नीतीश कुमार के 'काम' की जगह लोगों को तेजस्वी यादव के 'वादों' पर ज्यादा यकीन होता है, तो नतीजे निश्चित तौर पर उनके पक्ष में भी आ सकते हैं.
सबसे बड़ी बात. तेजस्वी यादव के पास खुद को साबित करने का भी ये बड़ा मौका है. अगर गलती से भी चूके तो उनसे खार खाए सारे लोग घात लगाकर पहले से बैठे हुए हैं. ऐसे लोगों में अभी तेज प्रताप यादव ही आगे नजर आते हैं, लेकिन राहुल गांधी भी मौके के इंतजार में हैं. तेजस्वी यादव को एक छोटी सी चूक की भी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है. अगर, पहले से अलर्ट नहीं हैं तो.
तेजस्वी यादव के लिए बंपर वोटिंग को अपने पक्ष में समझ लेना समझदारी की बात तो बिल्कुल नहीं होगी. ग्रांउड रिपोर्ट पर गौर करना चाहिए. असलियत समझने की कोशिश होनी चाहिए. अगर कोई चीज खिलाफ जाती हुई लगे, तो अभी पूरा मौका है. आगे भूल सुधार की कोई गुंजाइश नहीं होगी.
2020 में तेजस्वी यादव बहुमत के करीब पहुंच कर चूक गए थे. तब और अब में फर्क ये है कि उनके पिता लालू यादव भी हर वक्त साथ हैं. चुनाव कैंपैन में रीतलाल यादव के रोड शो से ज्यादा भले न हो पा रहा हो, लेकिन बाकी सलाह मशविरा का तो पूरा मौका है ही.
प्रशांत किशोर अपनी तरफ से हर कोशिश पूरी कर चुके हैं. अब तक वो पक्के तौर पर एक ही बात मानकर चल रहे हैं, बिहार में बदलाव की बयार बहने वाली है. अगर ये बात उनके लिए लागू नहीं होती, तो तेजस्वी यादव के पक्ष में जा सकती है. क्योंकि, उनका तो मानना है कि जन सुराज पार्टी की 10 सीटें भी आ सकती हैं, और 150 भी. पक्का नहीं है. 150 से कम सीटें आने को भी वो हार की तरह ही लेंगे, ऐसा उनका ही कहना है.
शुरुआत वो चार विधानसभा सीटों पर उपचुनाव लड़कर कर चुके हैं. जन सुराज पार्टी को 10 फीसदी वोट भी दिला चुके हैं. और, इससे ये तो माना जा सकता है कि जन सुराज पार्टी वोट शेयर के मामले में अपनी मजबूत मौजूदगी जरूर दर्ज कराएगी. ये भी प्रशांत किशोर का ही कहना है अगर चुनाव जीतने के बाद उनके विधायक किसी और राजनीतिक दल का रुख करते हैं, तो वो रोकेंगे भी नहीं.
बंपर वोटिंग को बिहार में बदलाव की संभावना से भी जोड़कर देखा जा सकता है, लेकिन अभी तो किसी को भी नहीं लगता कि बदलाव की ये लहर प्रशांत किशोर के खाते में जा सकती है. प्रशांत किशोर को लोग अपने इर्द गिर्द तीन साल से देख रहे हैं. उनकी बातें सुन रहे हैं. प्रशांत किशोर की बातें भी लोगों को अच्छी लग रही हैं. लेकिन, जो रिपोर्ट आ रही हैं, लोग उनको अभी इंतजार कराना चाहते हैं. उनके दृढ़ संकल्प को परखना चाहते हैं. मुमकिन है आगे चलकर मौका भी दें. लेकिन, अभी तो ऐसा नहीं लगता.
4. राहुल गांधी
तेजस्वी यादव का मजबूत होना भी राहुल गांधी के लिए फायदेमंद ही रहेगा. तेजस्वी यादव में भी, तमाम विरोधों के बावजूद, वो अखिलेश यादव की तरह ही एक मजबूत साथी देख रहे होंगे. लेकिन, ऐसा मजबूत साथी जो नेतृत्व भी मन से स्वीकार करे. और, राहुल गांधी को भावी प्रधानमंत्री बताकर तेजस्वी यादव ने अपना इरादा तो जाहिर कर ही दिया है.
कांग्रेस का बिहार में जो हाल है, उसमें अभी तो बहुत फर्क नहीं पड़ने वाला है. अभी तो 2015 जैसी स्थिति हासिल करना भी काफी मुश्किल है. मुश्किल तो 2020 जैसी छोटी सी कामयाबी भी है. कांग्रेस के हिस्से में चुनावी जीत नीतीश कुमार के खिलाफ पड़े वोटों में ही छिपी है.
बिहार में राहुल गांधी का सब कुछ दांव पर लगा हुआ है. और, ये तेजस्वी यादव की सफलता और असफलता पर निर्भर करता है. राहुल गांधी का रवैया देखकर तो यही लगता है कि वो तेजस्वी यादव का हाल भी अरविंद केजरीवाल की तरह होते देखना चाहते हैं. ताकि कांग्रेस बिहार में अपने मन से काम कर सके. पप्पू यादव को कांग्रेस में औपचारिक तौर पर शामिल कर सके. कन्हैया कुमार को जगह जगह छुपाकर रखने की मजबूरी न रहे.
5. सम्राट चौधरी
सम्राट चौधरी जैसा उतार चढ़ाव तो बिहार चुनाव में शायद ही किसी ने देखा हो. प्रशांत किशोर के खुलेआम भ्रष्टाचार के आरोप लगाने से लेकर, केंद्रीय मंत्री अमित शाह के कोई बड़ा तोहफा देने के संकेत तक. ये तो पहले ही साफ हो गया था कि सम्राट चौधरी को बीजेपी नीतीश कुमार के लव-कुश समीकरण की काट में ही आगे लाई है. अब तक सम्राट चौधरी भले ही किसी काम के साबित न हुए हों, लेकिन बिना किसी बड़ी गलती के उनको किनारे करके बीजेपी नेतृत्व अपने फैसले को भी तो गलत साबित नहीं होने देगा.
अमित शाह का ये कहना कि सम्राट चौधरी को मोदी जी बड़ा आदमी बनाने वाले हैं, छत्तीसगढ़ चुनाव के दौरान विष्णुदेव साय (मौजूदा मुख्यमंत्री) को लेकर दिए गए बयान की याद दिलाता है - क्या मालूम, भविष्य के लिए बीजेपी नेतृत्व ने नीतीश कुमार का विकल्प खोज लिया हो.