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आम आदमी पार्टी की तीसरे मोर्चे की मांग, क्या इसकी वैलिडिटी सिर्फ पंजाब चुनाव तक ही है?

आम आदमी पार्टी ने इंडिया ब्लॉक से अलग होकर तीसरे मोर्चे की पहल की है. दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री आतिशी ने विपक्षी दलों के ऐसा गठबंधन खड़ा करने की पहल की है, जिसमें कांग्रेस को शामिल न किया जाए - लेकिन, अरविंद केजरीवाल को ऐसा करने से क्या फायदा होगा?

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आम आदमी पार्टी की तीसरे मोर्चे की मांग सिर्फ कांग्रेस विरोध की राजनीति लगती है.
आम आदमी पार्टी की तीसरे मोर्चे की मांग सिर्फ कांग्रेस विरोध की राजनीति लगती है.

आम आदमी पार्टी ने INDIA ब्लॉक से खुद को पूरी तरह अलग कर लिया है. ये स्टेटस अपडेट, दिल्ली विधानसभा चुनाव जैसी परिस्थितियों से बिल्कुल अलग है. दिल्ली चुनाव के दौरान अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी तब और कांग्रेस नेता राहुल गांधी को आमने सामने चुनाव मैदान में भिड़ते देखा गया था. तब और अब की स्थिति में बुनियादी फर्क साफ है.

तब AAP और कांग्रेस तो एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे थे, लेकिन अरविंद केजरीवाल को इंडिया ब्लॉक के दो राजनीतिक दलों का सपोर्ट मिला हुआ था. अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी का सपोर्ट मुहैया कराया था, और ममता बनर्जी ने तृणमूल कांग्रेस का. अखिलेश यादव ने तो कांग्रेस के खिलाफ अरविंद केजरीवाल के लिए दिल्ली में वोट भी मांगे थे. 

ये चर्चा तो तभी शुरू हो गई थी कि दिल्ली चुनाव के बाद इंडिया ब्लॉक का अस्तित्व खत्म हो जाएगा. बिहार को लेकर राहुल गांधी की तत्परता देखकर कुछ दिनों के लिए ऐसा लगा भी था, लेकिन फिर आरजेडी और कांग्रेस दोनों की तरफ से मीडिया के सामने आकर बता दिया गया कि बिहार चुनाव दोनों साथ लड़ेंगे. 

और, इसी बीच ये भी मालूम हुआ है कि आम आदमी पार्टी भी बिहार चुनाव लड़ने जा रही है. और वो भी बिहार की सभी 243 विधानसभा सीटों पर. अब अगर ऐसा होगा तो अकेले ही लड़ना होगा. और, ये चुनाव क्षेत्रीय नेताओं को अपने बूते लड़ना होगा. आम आदमी पार्टी ने देश भर में विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए राज्यों को दो कैटेगरी में बांट दिया है. बिहार उस कैटेगरी में है जहां कैंपेन के लिए अरविंद केजरीवाल नहीं जाएंगे. अभी तो ऐसा ही संकेत मिला है. 

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विपक्षी दलों का तीसरा मोर्चा बनाये जाने की नई पहल

इंडियन एक्सप्रेस के साथ एक इंटरव्यू में आम आदमी पार्टी की नेता आतिशी ने कहा है, अब जरूरत है कि विपक्षी दल कांग्रेस से हटकर तीसरे मोर्चे के बारे में सोचना शुरू करें. आतिशी ने कांग्रेस का बीजेपी के साथ अघोषित गठबंधन होने का दावा किया है, और ऐसा ही दावा अरविंद केजरीवाल ने लुधियाना वेस्ट सीट पर हो रहे उपचुनाव को लेकर किया है. 

दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री आतिशी का कहना है कि गैर-कांग्रेसी विपक्षी दलों के नेता किसी न किसी तरीके के उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं, लेकिन कांग्रेस के साथ ऐसा नहीं है. आतिशी का कहना है बाकी विपक्षी दलों के नेताओं को तो केंद्र की बीजेपी सरकार परेशान कर रही है, लेकिन कांग्रेस नेताओं को बख्श दिया जा रहा है. 

जो सवाल अरविंद केजरीवाल दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान उठा रहे थे, आतिशी उसे ही दोहरा रही हैं, और पूछती हैं, कांग्रेस के नेता जेल क्यों नहीं जाते? दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान अरविंद केजरीवाल ने कहा था, 'मोदी जी तो शराब घोटाले जैसा फर्जी केस बनाकर भी लोगों को जेल में डाल देते हैं… आप और आपका परिवार नेशनल हेराल्ड जैसे ओपन एंड शट केस में अभी तक गिरफ्तार क्यों नहीं हुए? रॉबर्ट वाड्रा को बीजेपी से क्लीन चिट कैसे मिल गई?'

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INDIA ब्लॉक से AAP अलग

रही बात इंडिया ब्लॉक की, तो आम आदमी पार्टी अब पूरी तरह अलग हो चुकी है. संसद का विशेष सत्र बुलाये जाने की मांग को लेकर दिल्ली में हाल ही में एक मीटिंग हुई थी. खास बात ये रही कि दिल्ली चुनाव में अरविंद केजरीवाल का सपोर्ट करने वाली समाजवादी पार्टी और टीएमसी के नेता भी मीटिंग में शामिल हुए, लेकिन आम आदमी पार्टी ने दूरी बना ली. स्पेशल सेशन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक संयुक्त पत्र भेजा गया है, जिस पर 16 नेताओं ने हस्ताक्षर किये हैं - और उसमें शामिल न होकर आम आदमी पार्टी ने इंडिया गठबंधन से अलग होने का औपचारिक ऐलान कर दिया है. 

आम आदमी पार्टी का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी को वो अलग से एक पत्र लिखेगी जिसमें पहलगाम अटैक और ऑपरेशन सिंदूर के बाद हालात पर चर्चा के लिए संसद का स्पेशल सेशन बुलाये जाने की डिमांड की जाएगी. मतलब, आम आदम पार्टी की डिमांड वही रहेगी, जो इंडिया ब्लॉक की है, लेकिन वो साथ नहीं रहेगी. अरविंद केजरीवाल का ये स्टैंड पहले भी देखा गया है. राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी खेमे से कांग्रेस के दूर रखे जाने के बावजूद आम आदमी पार्टी ने विपक्ष के उम्मीदवारों को ही वोट दिया था. 

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मगर, बात अब इतनी ही नहीं है. AAP नेता और दिल्ली विधानसभा में विपक्ष की नेता आतिशी ने देश में विपक्षी दलों का एक तीसरा मोर्चा बनाये जाने की मांग रखी है - ऐसा मोर्चा जो बीजेपी के खिलाफ तो हो, लेकिन उसमें कांग्रेस भी नहीं होनी चाहिये. 

पहले भी आम चुनावों से पहले तीसरे मोर्चे की कवायद होती रही है, लेकिन चुनाव की तारीख आने से पहले ही मोर्चे की कोशिशें धराशायी हो जाती रही हैं. गैर-बीजेपी और गैर-कांग्रेस मोर्चा खड़ा करने की कोशिश आम चुनाव से पहले तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव भी कर रहे थे, लेकिन इतिहास दोहरा दिया. 

बड़ा सवाल ये है कि तीसरा मोर्चा क्या AAP के लिए फायदेमंद हो सकता है. पंजाब में तो हो सकता है, लेकिन जिस तरह राष्ट्रीय स्तर पर अरविंद केजरीवाल राज्यसभा जाकर राजनीतिक करना चाहते हैं, संभव तो नहीं लगता - और सवाल ये भी है कि क्या ये दिल्ली में सफल हो पाएगा.

दिल्ली में तीसरे मोर्चे का फायदा तो मिलने से रहा

हाल ही में खबर आई थी कि आम आदमी पार्टी ने अगले दो साल में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए एक रोडमैप तैयार किया है. जाहिर है, अरविंद केजरीवाल की पार्टी के लिए सबसे खास पंजाब चुनाव ही है, जहां पार्टी सत्ता में है. साथ ही, अरविंद केजरीवाल गुजरात चुनाव की भी तैयारी कर रहे हैं - और सबसे महत्वपूर्ण तो दिल्ली है, लेकिन अभी तो उसमें पूरे पांच साल का वक्त है. 

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अब अगर अरविंद केजरीवाल राष्ट्रीय राजनीति की तैयारी कर रहे हैं, तो तीसरा मोर्चा फायदेमंद हो सकता है. कहा भी यही जा रहा है कि लुधियाना वेस्ट उपचुनाव जीतने के बाद संजीव अरोड़ा राज्यसभा की अपनी सीट छोड़ देंगे, और उस कोटे से अरविंद केजरीवाल संसद पहुंच जाएंगे - लेकिन ये प्लान फिलहाल उपचुनाव के नतीजे पर निर्भर करता है. 

अगर आतिशी ने पंजाब चुनाव को देखते हुए तीसरे मोर्चे की पहल की है, तो भी ठीक है. क्योंकि पंजाब में आम आदमी पार्टी की सीधी लड़ाई कांग्रेस से है, बीजेपी अभी पंजाब में मजबूत नहीं हो पाई है. कहने को तो अरविंद केजरीवाल बीजेपी और कांग्रेस पर मिले होने का आरोप भी लगा रहे हैं. अरविंद केजरीवाल ने अपनी पार्टी के प्रवक्ता नील गर्ग की पोस्ट को रिपोस्ट करते हुए लिखा है,  'बीजेपी ने कांग्रेस को पंजाब उप-चुनाव में समर्थन देने का ऐलान किया?' 

बीजेपी नेता मनजिंदर सिंह सिरसा का वीडियो शेयर करते हुए नील गर्ग ने सोशल साइट एक्स पर लिखा है, अब शक की कोई गुंजाइश नहीं बची... कांग्रेस और बीजेपी एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं. दोनों का राजनीति का मॉडल है – जनता को मूर्ख बनाओ, कुर्सी बांटो. जब कांग्रेस कमजोर पड़ती है, बीजेपी मजबूत होती है और जब बीजेपी पर गुस्सा आता है, कांग्रेस को आगे कर दिया जाता है.

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दिल्ली के राजनीतिक समीकरण पंजाब से अलग हैं. जैसे बीजेपी पंजाब में कमजोर है, कांग्रेस दिल्ली में कमजोर है. दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की लड़ाई बीजेपी से है, लेकिन आम आदमी पार्टी का मानना है कि कांग्रेस के कारण ही अरविंद केजरीवाल को दिल्ली सत्ता से हाथ धोना पड़ा - फिर क्या तीसरे मोर्चे की मांग की वैलिडिटी सिर्फ पंजाब चुनाव तक ही है?
 

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