अरविंद केजरीवाल भारतीय राजनीति में एक उम्मीद थे. ऐसी उम्मीद जिसका इतंजार लंबे अर्से से हो रहा था. आम आदमी पार्टी के जरिये अरविंद केजरीवाल ने जो उम्मीदें जगाई थीं, धीरे धीरे वे सारी बातें नाउम्मीदी में बदल गईं. जैसे कोई सपना टूट गया हो. जैसे वो भी सबसे मिले हुए थे. जैसे भीड़ में अलग होने का दावा, एक प्रोपेगैंडा ही था.
अरविंद केजरीवाल एक बार फिर उम्मीदें जगाने की कोशिश कर रहे हैं. ASAP यानी ‘एसोसिएशन ऑफ स्टूडेंट्स फॉर अल्टरनेटिव पॉलिटिक्स’ के जरिये. लेकिन, वक्त बदल चुका है. अरविंद केजरीवाल को लोग अच्छी तरह देख और परख चुके हैं, और उनके सारे ही दावों को खारिज कर दिया है.
केजरीवाल एंड कंपनी की अपने नेताओं के कट्टर इमानदार होने के दावे को दिल्ली के लोगों ने लगातार दो बार खारिज कर दिया है. पहले 2024 के लोकसभा चुनाव में, और उसके बाद 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में.
और, हाल फिलहाल तो सवाल उठ रहे हैं कि अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया ने दिल्ली को छोड़ ही दिया है, और पंजाब में डेरा डाल रखा है. करीब करीब वैसे ही जैसे राहुल गांधी काफी दिनों तक अमेठी के लोगों से रूठे हुए थे, और वायनाड में ही बचपन के किस्से सुना रहे थे, जैसे बचपन वहीं बीता हो. दिल्ली चुनाव हारने के बाद केजरीवाल ने दिल्ली में मंगलवार को पहली पब्लिक मीटिंग की है.
यह कार्यक्रम भी ऐसे समय में हुआ है, जब हाल ही में आम आदमी पार्टी के 15 पार्षदों ने इस्तीफा देकर अपना नया राजनीतिक फोरम खड़ा कर लिया है- इंद्रप्रस्थ विकास पार्टी. और फिर, दिल्ली नगर निगम की एकमात्र किन्नर पार्षद बॉबी किन्नर ने भी आम आदमी पार्टी छोड़कर नई नवेली इंद्रप्रस्थ विकास पार्टी का दामन थाम लिया है.
ASAP मौजूदा माहौल में डैमेज कंट्रोल की एक कोशिश भर ही लगती है. जब सवालों के जवाब नहीं होते, तो किसी न किसी नये बहाने की जरूरत होती है. जैसे 2012 में आम आदमी पार्टी की घोषणा देश में नई राजनीति के वादे के साथ अरविंद केजरीवाल ने की थी, 13 साल बाद युवाओं के लिए अल्टरनेटिव पॉलिटिक्स का ऐलान भी करीब करीब वैसा ही है.
अब AAP को चाहिये ASAP का सहारा
ASAP नाम अच्छा है. बिल्कुल AAP की तरह. जुबान पर आसानी से चढ़ जाने वाला. ASAP, ऐज सून ऐज पॉसिबल यानी जितना जल्दी संभव हो सके के लिए शॉर्ट में इस्तेमाल किया जाता है. और अब, आम आदमी पार्टी के छात्र विंग का नाम - एसोसिएशन ऑफ स्टूडेंट्स फॉर अल्टरनेटिव पॉलिटिक्स दिया गया है.
ऐसा भी नहीं कि छात्रों और युवाओं के लिए आम आदमी पार्टी ने ये काम पहली बार शुरू किया है. अरविंद केजरीवाल ने फ्रेश लुक देने के लिए नाम बदल दिया है. ताकि ताजगी महसूस हो.
पहले आम आदमी पार्टी ने CYSS यानी छात्र युवा संघर्ष समिति के नाम से अपना छात्र संगठन शुरू किया था. CYSS के बैनर तले डीयू में छात्रसंघ का चुनाव भी लड़ा गया था, लेकिन कामयाबी नहीं मिल पाई थी. धीरे धीरे संगठन की चर्चा और गतिविधियां नेपथ्य में चली गईं.
दिल्ली चुनाव में हार के बाद अब फिर से उसे एक्टिव करने की कोशिश लगती है, नये जोश और नये सिसे से ठोस तैयारी के साथ.
नई पैकेजिंग में खास क्या है
छात्रों के संगठन को नये नाम के साथ री-लॉन्च करते हुए अरविंद केजरीवाल फिर से पुराना राग ही दोहराते हैं. ASAP को बदलाव का आंदोलन बताते हुए अरविंद केजरीवाल कहते हैं, ये पहल का युवाओं को वैकल्पिक राजनीतिक रास्ता दिखाने के मकसद से शुरू की गई है, जो परंपरागत पार्टी पॉलिटिक्स की जगह शासन, शिक्षा और विकास पर केंद्रित हो - अगर याद करें, तो बिल्कुल यही सपना आम आदमी पार्टी की स्थापना के वक्त भी दिखाया गया था.
1. अरविंद केजरीवाल के मुताबकि, चुनाव लड़ना ही छात्र राजनीति नहीं है, ये सिर्फ उस राजनीति का एक हिस्सा भर है.
2. आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल का कहना है, ASAP के जरिये हम एक ऐसी युवा पीढ़ी तैयार करेंगे, जो राजनीति की परिभाषा बदलकर देश के लिए काम करेगी - युवाओं की ऊर्जा अब बदलाव की राजनीति में लगेगी.
3. अरविंद केजरीवाल ने बताया है, ASAP स्कूल-कॉलेजों में सोशल और कल्चरल ग्रुप बनाएगा, जहां छात्र विचार और रचनात्मकता के जरिये जुड़ेंगे, और काम करेंगे.
4. ASAP देश भर के 50 हजार कॉलेजों में 5 लाख देशभक्त युवाओं को तैयार करके एक नये रूप में वैकल्पिक राजनीति की नींव रखेगी.
5. ASAP की एक सोशल विंग भी होगी, जो छात्रों की सामाजिक और सेवा के कामों में भागीदारी बढ़ाएगी.
वैकल्पिक राजनीति में क्या अलग होगा
1. अरविंद केजरीवाल का नया फोरम ASAP छात्रों के लिए है. उनका कहना है कि छात्र राजनीति में चुनाव लड़ना जरूरी नहीं है, तो फिर मकसद क्या है? और कोई छात्र क्यों इसमें हिस्सा लेगा?
2. नये संगठन को लेकर भी अरविंद केजरीवाल वैसी ही बातें कर रहे हैं जो आम आदमी पार्टी और अपनी राजनीति को लेकर शुरू में कहा करते थे - फिर नया क्या है जो युवाओं को अपनी तरफ खींच सके.
3. जिस तरह से अरविंद केजरीवाल धीरे धीरे अपनी सारी बातें भूलते गये, क्या गारंटी है कि आगे से ऐसा नहीं होगा?
दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस नेता राहुल गांधी अरविंद केजरीवाल की ही पुरानी बातें याद दिलाकर हमला बोल रहे थे. नीली वैगन आर की चर्चा से कैंपेन शुरू हुआ था, और मामला ‘शीशमहल’ तक पहुंच गया.